राजस्थान की लोक देवियां

राजस्थान की लोक देवियां

आवड़ माता

1. आवड़ माता का उपनाम "आईनाथ महाराज चारण " देवी है ।
2. आवड़ माता चारण वंश की कुलदेवी है ।
3. आवड़ माता हिंगलाज का अवतार है ।
4. आवड़ माता जैसलमेर के भाटियों की आराध्य देवी है ।
5.आवड़ माता सात बहनों के रूप में प्रसिद्ध है ।
6. आवड़ माता का प्रतीक चिन्ह "सुगन चिड़ी" है ।
7. आवड. माता का मुख्य मेला "शुक्ल आश्वीन सप्तमी "  को लगता है ।
8. स्तुति गायन - चीरजा ( धड़ाऊ सिंगाऊ )
9.मांड क्षेत्र की सर्वाधिक प्रसिद्ध देवी है ।




पिता - मामड़जी चारण
जन्म स्थान - चेलक गांव (जैसलमेर )विक्रमी संवत 808 में देवी हिंगलाज अंश के रूप में सात बहीनों के रूप में अवतार लिया।

सात बहनें
1.आवड़ महामाया
2.गुल्लो (गुलाब बाईसा )
3. डुली ( डुलास बाईसा )
4. रेपल ( रूपल बाईसा )
5. आछो ( सांसल बाईसा )
6. चाचिक ( रंग बाईसा )
7. लाचो ( खोडियार बाइसा )

आवड़ माता का भाई - मेहरखा गढ़वी ( भैरव का अवतार )

सात बहनों की संयुक्त प्रतिमा को ठाला कहते है ।

आवड माता के विभिन्न रूप : -

1. तेमड़ा राय :-

तेमड़ा पर्वत (जैसलमेर )पर देवी ने हुण आक्रमणकारी तेमड़ा राक्षस का वध किया था इसलिए "तेमड़ा राय " कहलाई |

2. मां घटियाल माता :-

तनोट जैसलमेर मार्ग पर सुरक्षा बल द्वारा पूज्य स्थान घटीयाल राक्षस का वध कर अंशदान किया ।इसलिए घटियाल माता कहलाई ।

3. तनोट माता : -

सन 1965 के भारत-पाक युद्ध में तनोट माता ने परमाणु बम फटने नहीं  दिए थे Iइसलिए इसे "थार की वैष्णो देवी", "रुमाल वाली माता", "जवानों की देवी" कहा जाता है।

4. भादरिया राय :-

बहादुर जी भाटी द्वारा निर्मित मंदिर से नाम भादरिया राय पड़ा |
संत हरवंशी सिंह निर्मल की तपोभूमि जोधपुर से जैसलमेर मार्ग पर मंदिर बना है यहां राजस्थान की सबसे बड़ी लाइब्रेरी बनी है।

5. पनोधर राय माता जी : -

6. कलिडुगर राय माता / नभडुगर राय माता :-

7. देगराय माता : -

बुला जी सागरिया की भैंसों में भैंस रूपी राक्षस का वध कर देग में पकाया और लहू से अपना वेश ( सुनरी ) रंगाया ।


स्वांगिया माता 

स्वांगिया माता जैसलमेर के भाटियों की कुलदेवी है ।
प्रतीक चिन्ह - "मुड़ा हुआ भाला " ( संवाग )है ।
मंदिर निर्माण - "रावल गज सिंह प्रथम " ने करवाया।
स्थान -  "गजरूप सागर " (जैसलमेर )


स्वांगिया माता का वर्तमान स्वरूप जवाहर सिंह द्वारा निर्मित है ।
श्री कृष्ण के वंशज यदुवंशी या यादव राजवंश (भाटी राजवंश ) की कुलदेवी है ।

स्वांगिया माता का मुख्य मंदिर त्रिकूट पहाड़ी पर स्थित है ।


करणी माता



करणी माता का मुख्य मंदिर "देशनोक (बीकानेर )"में स्थित है ।

मुख्य पर्व "शुक्ल सप्तमी आश्वीन " को मनाया जाता है ।

करणी माता का प्रतीक चिन्ह" सफेद चील" है ।

करणी माता का वास्तविक नाम "रिद्धि बाई" था । 

करणी माता चारण जाति व बीकानेर के राठौड़ वंश की कुलदेवी है ।

करणी माता के उपनाम "चुहों वाली देवी / दाढ़ी वाली माता/ काबा वाली देवी / करनला किनियणी है ।

करणी माता के मंदिर में निवास करने वाले चूहों को काबा कहा जाता है ।

करणी माता का मुख्य मंदिर मढ कहलाता है ।

करणी माता का जन्म सुवाप गांव (ओसियां ) विक्रम संवत 1444 आश्विन शुक्ला सप्तमी को हुआ ।

करणी माता का विवाह साठीका गांव (बीकानेर )मैं हुआ ।

करणी माता का समाधि स्थल धिनेर तलाई देशनोक (बीकानेर) हैं।
करणी माता ने चैत्र शुक्ल नवमी विक्रम संवत 1595 को समाधि ली थी ।
करणी माता  के पिता का नाम मेहाजी केनिया था।

करणी माता के पति का नाम देपोजी बिट्टू था।
देपोजी बिट्ठू की संतान देपावत गोत्र कहलाती थी।

करणी माता के मंदिर का निर्माण महाराजा करणी सिंह ने करवाया था ।

करणी माता के मंदिर का वर्तमान स्वरूप गंगा सिंह द्वारा निर्मित करवाया गया ।

करणी माता के पुजारी कुलेदार कहलाते हैं ।

सफेद चूहे का दर्शन करणी मां का दर्शन देशनोक मंदिर में माना जाता है ।
 
करणी माता के मंदिर में निवास करने वाले चूहों को काबा कहते हैं ।

सच्चियाय माता:-

सच्चाई माता का मुख्य मंदिर उपकेशपट्टनम और ओसियां जोधपुर में है।

ओसवाल एवं परमार वंश की कुलदेवी।

अहिंसक रूप के लोक देवी के रूप में पूजा जाता है।

उत्पल देव परमार (वत्सराज प्रतिहार वंश का सामंत) ने मंदिर का निर्माण 8वीं सदी में करवाया।

महामारू शैली का प्रसिद्ध मंदिर बना हुआ है। नवदुर्गा स्वरूप में लघु मंदिरों से युक्त।

सच्चियाय माता का वास्तविक नाम साची या साचल देवी था।

हिंदू परंपरा के अनुसार असरुराज पोलामा की पुत्री है।

पति का नाम वृत था ।

जैन परंपरा के अनुसार सच्चियाय माता को महावीर जैन की बहन माना जाती है।

इस देवी को चार भूजा वाली देवी के रूप में पूजी जाती है ।
नारियल , मिठाई और मक्खन का भोग लगाया जाता है ।

इस देवी के मंदिर के आगे 9 तोरण द्वार बने हुए हैं, इस मंदिर के चारों दिशाओं में नवदुर्गा स्वरूप स्थापित है ।

चामुंडा माता :-

इस देवी का मुख्य मंदिर मेहरानगढ़ (जोधपुर) में बना हुआ है ।

प्रतिहार वंश की कुलदेवी ।

रोद्र रूप में तानसिक रूप।

जोधपुर के राठौड़ वंश की आराध्य देवी ।

सन 1857 में आकाशीय बिजली गिरने से मंदिर क्षती ग्रस्त हो गया ।

महाराजा तख्त सिंह द्वारा इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया ।

इस देवी का दूसरा मंदिर चावण्डा का में बना हुआ है ।

आई माता : -

मुख्य मंदिर बिलाड़ा (जोधपुर) में बना हुआ है ।

इस देवी का उपनाम केसर वाली देवी , जागृत जगत जननी के नामों से भी पूजा जाता है ।

प्रतीक :- अखंड ज्योति एंव नीम के वृक्ष के नीचे थान ।

आई माता राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता रामदेव जी की शिष्या थी ।

सांप्रदायिक सद्भाव वाली देवी ।

इस देवी को नव दुर्गा का अवतार माना जाता है ।

इनके धर्मगुरु दीवान कहलाते हैं ।

बैल पर सवार नव दुर्गा का अवतार आई माता कहलाती है।

जन्म स्थान :- सिंध देश

पिताः- बीका डाभी

आई माता ने मालवा के बादशाह नासीरउद्दीन मोहम्मद  को अपना पर्चा दिखाया ।

आई माता ने जाणोजी राठौड़ के पुत्र को गोद लिया ।

सीरवी जाति के धर्मगुरु दीवान कहलाए ।

नागणेची माता:-

नागणेची माता का मुख्य मंदिर नागाणा धाम कल्याणपुर बाड़मेर

राठौड़ वंश की कुलदेवी ।

मुख्य पर्व :- चैत्र शुक्ल सप्तमी ।

प्रतीक :- चील व नीम का वृक्ष ।

नागणेशी माता की प्रतिमा अट्ठारह भुजाओं वाली लकड़ी से निर्मित प्रतिमा।

चक्रेश्वरी देवी के रूप में पूजी जाती है।

विरात्रा माता :-

विरात्रा माता का मुख्य मंदिर चौहटन बाड़मेर में है ।

उपनाम :- वाकल माता ।

परमार वंश / भोपा जाती की कुल देवी ।

महाराजा विक्रमादित्य द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया ।

रेगिस्तान को पुनः आबाद करने वाली लोक देवी ।

उज्जैन में उसे भद्रकाली माता के नाम से पूछी जाती है ।

झुकी हुई गर्दन के कारण से बाकी माता कहा जाता है ।

मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में महाराजा विक्रमादित्य द्वारा ।

जीण माता:-

मुख्य मंदीर :- रेवासा ग्राम में काजल की पहाड़ियां में (सीकर)

उपनाम :- भ्रमर वाली माता , जीवण माता, जयंती माता ।

प्रतीक :- भ्रमर / मधुमक्खी ।

चौहान जाति की कुलदेवी ।

मुख्य पर्व :- चैत्र शुक्ल अष्टमी ।

शेखावटी क्षेत्र में शेखावत , मीणा ,जाट आदि जातियों के लोकप्रिय आराध्य देवी ।

मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा शाही निशान नगाड़ भेंट किया गया तथा सवा मण तेल दान देने का वचन दिया ।

ढाई प्याले शराब और मांस का भोग लगाया जाता है ।

धंधु गांव के गंगोजी / धाँधल चौहान की पुत्री ।
माताः- उर्वशी

दो भाई बहनों की अमर गाथा "हर्ष-जीण कथा" पुस्तक में मिलती है ।

नव दुर्गा का अवतार और दुर्गा का रूद्र रूप ।

मंदीर निर्माण :- आठवीं सदी में चौहान शासक गुवक/ गोविंद राय के सामंत राजा हठ्ठड के पुत्र अल्लट चौहान द्वारा निर्माण ।

मंदिर का निर्माण महामारु शैली में किया गया ।

लोक देवियों में सबसे लंबा भक्ति गीत जीण माता का है जिसे स्तुति गायन भी कहा जाता है । 

सकराय माता / शाकम्भरी माता : -

मुख्य मंदिर मालकेतु पर्वत (सीकर) में बना हुआ है ।

उपनाम : शकरामाता /शाकंभरी माता।

खंडेलवाल जाति की कुलदेवी ।

इस देवी ने अकाल के समय जनता की रक्षा हेतु फल फूल, शाख, पत्तियां उत्पन्न कर जनमानस की रक्षा की। इसका वर्णन दुर्गा चालीसा व दुर्गा आरती में मिलता है ।

नोट :-शाकंभरी का एक अन्य मंदिर सांभर जयपुर में है, जो कि चौहान वंश की कुलदेवी है ।

देवी के मंदिर के बाह्य भाग पर एक प्रतिमा एक एक उल्लेखित है ।

शाकंभरी माता का दूसरा प्रसिद्ध मंदिर सांभर झील के मध्य स्थित है जिसके निर्माता वासुदेव चौहान (बिजोलिया शिलालेख में वर्णित) चौहान वंश की कुलदेवी है ।

रानी सती माता :-

मुख्य मंदिर :- झुंझुनू ।

उपनाम :- दादी सती ।

अग्रवाल जाति की कुलदेवी ।

मुख्य पर्व :-भाद्रपद अमावस्या ।

वास्तविक नाम :-नारायणी देवी ।

प्रतीक :- लाल चुनरी व सिंदूर ।

पति :- तनधन दास अग्रवाल, पति के साथ सती हुई ।

नारायणी माता :-

मुख्य मंदिर :-बरवाड़ा डूंगरी (सरिस्का अभ्यारण अलवर )

नाई जाति की कुलदेवी ।

वास्तविक नाम : - करमेती बाई ।

मुख्य पर्व :- वैशाख शुक्ल एकादशी I

देवी का मंदिर नाई व मीणा जाति में विवादित मंदिर l

यह देवी अपने पति करण सैन के साथ सती हुई थी ।

माताः - रामहेती।
पिताः- विजय चंद्र सेन ।

जिलाणी माता :-

मुख्य मंदिर :- बहरोड अलवर में ।

आही जाति की कुलदेवी ।

इस देवी ने मध्यकाल में धर्म परिवर्तन अभियानों पर रोक लगाई।

शीला देवी :-

मुख्य मंदीर :-आमेर दुर्ग जयपुर

कच्छवाह वंश की आराध्य देवी ।

उपनाम :- बिल्कुल अन्नपूर्णा माता ।

मंदिर निर्माण :- महाराजा मानसिंह प्रथम द्वारा ।

इस देवी को शराब और मांस का भोग लगाया जाता है।

मुख्य पर्व :- अश्विन शुक्ल अष्टमी ।

नोटः-राजा मानसिंह प्रथम ने बंगाल की द्वित्तीय सुबेदारी के दौरान राजा केदार से यह अष्टभुजी प्रतिमा छीनकर राजस्थान लाए तथा यह महिषासुर मर्दिनी का तामसिक रूप है जिसे बंगाली पद्धति में पूजा जाता है।

जमुवाय माता :-

मुख्य मंदिर :- जमुवारामगढ़ (रामगढ़) I

कछवाहा वंश की कुलदेवी ।

मंदिर निर्माण :- तेजकरण/ दूल्हेराय / ढोला ने मंदिर का निर्माण करवाया ।

दूसरा मंदिर भोड़की गांव झुंझुनू में है।

शीतला देवी :-

मुख्य मंदिर :- शील की डूंगरी चाकसू (जयपुर)

उपनाम :- महामाया , सैढल माता , शिशु रक्षक I

चेचक रोग की मुक्तिदाता ।

खंडित लोक देवी ( विश्व में एकमात्र खंडित लोक देवी ) ।

मुख्य पर्व :- चैत्र कृष्ण अष्टमी । ( बास्योड़ा पर्व ) ।

मंदिर निर्माण:- सवाई माधोसिंह प्रथम द्वारा 1765 ईस्वी में ।

चार हाथों वाली देवी गद्दे पर सवार प्रतिमा ।

प्रतीक :-परिंडे में रखी मटकी व ईटों पर श्वेत वस्त्र की पूजा ।

इस देवी को ठंडे और वासी भोजन का भोग लगाया जाता है ।

पुजारी :-  कुम्हार जाति के लोग ।

उसके मंदिर में बैल गाड़ियों का मेला भी लगता है ।

जोधपुर में इस देवी की कागा की पहाड़ियों मंडोर में भी मेला लगता है ।

भाटुन्दा गांव पाली में आदिवासी क्षेत्र के लोगों का प्रमुख मंदिर।

केला देवी माता :-

मुख्य मंदिर :- त्रिकूट पर्वत (करौली) ।

उपनाम :- डांग की महारानी, श्री कृष्ण की बहन , योगमाया का अवतार ।

करौली के गोदान वंश की कुलदेवी ।

मंदिर निर्माण :- महाराजा गोपाल सिंह द्वारा ।

मीणा जनजाति,डांग के वस्त्र दस्यु डंकेतों की की आराध्य देवी।

लांगुरिया गीत व नृत्य के लिए प्रसिद्ध देवी।

भक्त बोहरा की छतरी पर भूत प्रेत की व्याधि का निवारण।
कैला देवी के मंदिर के सामने बोहरा की छतरी बनी हुई है।

चामुंडा देवी का रोद्र रूप।

केवाई माता :-

मुख्य मंदिर :- किनसरिया गांव परबतसर (नागौर) ।

दहिया राजवंश की कुलदेवी ।

10 वीं सदी में चचदैव दहीया द्वारा निर्मित प्राचीन मंदिर ।

बाण माता :-

मुख्य मंदिर :- चित्तौड़गढ़ दुर्ग ।

उपनाम :- वायणेश्वरी / बाणेश्वरी /बायण माता ।

गुहिल / गहलोत /सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी ।

मुख्य मंदिर निर्माण :- बप्पा रावल द्वारा ।

अन्य मंदीर :- कुंभलगढ़ (राजसमंद), उदयपुर, प्रतापगढ़ आदि।

बप्पा रावल के गुरु द्वारा हरित ऋषि से प्राप्त बाण से उत्पन्न देवी।

अन्नपूर्णा माता :-

सिसोदिया राजवंश की आराध्य देवी ।

मंदिर :-चित्तौड़गढ़ दुर्ग में ।

उपनाम : - बीरवड़ी माता , चारण भवानी ।

मंदिर निर्माण :- राणा हमीर देव सिसोदिया द्वारा ।

ब्राह्मणी माता:-

मुख्य मंदिर:- सोरसन गांव (बारां)। यहां पर देवी का श्रंगार हम पूजा की जाती।

आशापुरा माता :-

मुख्य मंदिर :- नाडोल पाली में ।

चौहान राजवंश की कुलदेवी ।

10 वीं सदी में लक्ष्मण राज चौहान द्वारा निर्मित प्राचीन मंदिर ।

आशापुरा मूल रूप से शाकंभरी माता का दूसरा रूप है ।

सोनगरा चौहानी ईसे महोदरी माता /मोदरा माता के रूप एवं हाड़ा चौहान इसे भदाणा माता के रूप में पूजते हैं ।

बिसा जाति की कुलदेवी का मंदिर पोकरण जैसलमेर में बना हुआ है ।

त्रिपुर सुंदरी माता :-

मुख्य मंदिर :- आनंदपुरी धाम तलवाड़ा (बांसवाड़ा ) ।

उपनाम :- तरुतई माता ।

पांचाल जाति की कुलदेवी ।

प्रसिद्ध तांत्रिक शक्ति पीठ ।

इस देवी की पीठ पर परमार युग की प्रशस्ति एवं श्रीयंत्र अंकित है ।

काले पत्थर से निर्मित परमार कालीन प्रतिमा ।

सुंधा माता :-

मुख्य मंदिर:- सुंधा पर्वत जसवंतपूरा (जालौर) |

उपनाम :-चामुंडेश्वरी माता ।

राजस्थान का प्रथम रोप वे 2008 में यहीं पर लगाया गया।

यहाँ सामी नदी का उद्गम स्थल है ।

यह प्रथम भालू अभ्यारण प्रस्तावित है ।

नोट : - यहां देवी चामुंडा शीश की पूजा की जाती है ।

आवरा माता :-

मुख्य मंदिर निकुंभ गांव चित्तौड़गढ़ मैं बना हुआ है ।

उपनाम :-आसावरा माता ।

लकवा रोग के उपचार के लिए प्रसिद्ध देवी ।

भक्त गण इस देवी के मंदिर में बनी तिबारिया में सात फेरी लगाते हैं ।

राजस्थान की अन्य लोक देवियां :-

परमेश्वरी माता का मंदिर कोलायत बीकानेर में बना हुआ है ।

सरवड़ी माता का मंदिर कुबेर बीकानेर में बना हुआ है । चारणान की लोक देवी ।

भद्रकाली माता का मंदिर भटनेर हनुमानगढ़ में बना हुआ है ।

ब्राह्मणी माता का मंदिर पल्लू हनुमानगढ़ में बना हुआ है ।

अंजना माता का मंदिर सालाचर हनुमानगढ़ मैं बना हुआ है।

स्यानण माता का मंदिर फतेहपुर सीकर में बना हुआ है ।

मंसा माता का मंदिर झुंझुनू में बना हुआ है । यह देवी शरीर पर सफेद दाग, तिल, मसे के उपचार के लिए प्रसिद्ध है।

रानी भटियाणी माता का मंदिर जसोल बाड़मेर में बना हुआ है, वास्तविक नाम स्वरूप कवर, अपने पुत्र लाल सिंह के साथ सती हुई थी।

सुभद्रा माता का मंदिर थुम्बा गांव जालौर में बना हुआ है।

जौमा माता का मंदिर भाद्राजून जालौर में बना हुआ हैं।

गाजण माता का मंदिर धरमधारी गांव पाली में बना हुआ है।

मारकंडी माता का मंदिर नीमच गांव पाली में बना हुआ है। महामारू शैली में बना मंदिर।

केबाज माता का मंदिर झाला की चौकी, सेदड़ा (पाली ) में बना हुआ है।

हर गंगे माता का मंदिर बिजासन की पहाड़ियां पाली में बना हुआ है ।

लोटीयाल माता या लटियाल माता का मंदिर फलोदी शहर जोधपुर में बना हुआ । उष्ट्रवाहीनी देवी के रूप में भी पूजा जाता है ।कल्ला ब्राह्मणों की कुलदेवी या श्रीमाली समुदाय की कुलदेवी । विश्व की एकमात्र ऊंट पर स्वार देवी की प्रतिमा।

नकटी माता का मंदिर भवानीपुरा जयपुर में बना हुआ है।

सींक माता का मंदिर गोपाल जी का रास्ता जयपुर मैं बना हुआ है।

ज्वाला माता का मंदिर जोबनेर जयपुर में बना हुआ है। खंगारोत जाति की आराध्य देवी।

खलकाणी माता का मंदिर मनियावास जयपुर में बना हुआ है यहां पर गधों के मेले का आयोजन होता है।

बिलावरी माता / बिलोरी माता का मंदिर अलवर में बना हुआ है।

गंगा माता का मंदिर कामा भरतपुर जिले में बना हुआ है ।गंगा दशहरा प्रतिवर्ष जेष्ठ शुक्ल दशमी को मेला लगता है, भरतपुर की आराध्य देवी ।

राजराजेश्वरी माता का मंदिर लोहागढ़ दुर्ग भरतपुर बना हुआ है, भरतपुर की कुलदेवी ।

हर्षेदमाता का मंदिर आभानेरी दौसा में बना हुआ है ।

चौथ माता का मंदिर बरवाड़ा गांव सवाई माधोपुर में बना हुआ है ।

सावित्री माता का मंदिर पुष्कर में रत्नागिरी पहाड़ी पर बना हुआ है ।

गायत्री माता का मंदिर पुष्कर में बना हुआ है ।

नौसर माता का मंदिर कोटड़ा अजमेर में बना हुआ है ।

आतीड़ माता का मंदिर अजमेर में बना हुआ है ।

बाड़ी माता का मंदिर विजयनगर अजमेर में बना हुआ है ।

राधा रानी का मंदिर निंबार्क तीर्थ अजमेर में बना हुआ है ।

रूपाहेली माता का मंदिर रूपाहेली गांव टोंक में बना हुआ है ।

भदाणा माता का मंदिर कोटा में बना हुआ है ।
मुठ, जादू ,टोना का उपचार। कोटा के हाडा राजवंश की कुलदेवी।

बिजासण माता/ इंद्रगढ़ माता का मंदिर लाखेरी बूंदी में बना हुआ।

दधिमती माता का मंदिर गोठ मांगलोद नागौर में बना हुआ है ।

भंवाल माता का मंदिर नंद गांव नागौर में बना हुआ है।

सायर बाईसा का मंदिर नागौर जिले में बना हुआ है।

डाकन या डाड देवी का मंदिर गंगाधर झालावाड़ में बना हुआ है।

बंक्यारानी माता का मंदिर आसींद भीलवाड़ा मैं बना हुआ है।

खाटारानी माता का मंदिर जहाजपुर भीलवाड़ा में बना हुआ है।

पति वाली या घनोट माता का मंदिर शाहपुरा भीलवाड़ा में बना हुआ है ।

भरक माता का मंदिर लाखोला गांव भीलवाड़ा में बना हुआ है।

जोगणिया माता का मंदिर बेगू तहसील चित्तौड़गढ़ में बना हुआ है।

भादवा माता का मंदिर आतरी गांव चित्तौड़गढ़ में बना हुआ है।

झातला माता का मंदिर पांडोली गांव चित्तौड़गढ़ में बना हुआ है।

नरमी माता का मंदिर राशमी चित्तौड़गढ़ में बना हुआ है।

बीड़मड़ी माता का मंदिर अकोला चित्तौड़गढ़ में बना हुआ है।

तुलजा भवानी का मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में बना हुआ है ।

कालिका माता का मंदिर चित्तौड़ दुर्ग में बना हुआ है ।

सीता माता का मंदिर छोटी सादड़ी प्रतापगढ़ जिले में बना हुआ है।
भ्रमर माता का मंदिर छोटी सादड़ी चित्तौड़गढ़ में बना हुआ है ।

सीस माता व त्रिपुर सुंदरी माता का मंदिर बांसवाड़ा जिले में है।

धन माता का मंदिर आशापुर की पहाड़ी पर डूंगरपुर में बना हुआ है ।

सांड माता का मंदिर देवगढ़ राजसमंद में बना हुआ है ।

घेवर माता का मंदिर नौ चौकी पाल पर राजसमंद जिले में बना हुआ है।

चारभुजा माता का मंदिर खमनौर राजसमंद बना हुआ है ।

पीपलाद माता का मंदिर उनवास गांव राजसमंद में बना हुआ है।

आमज माता का मंदिर रिछेड गांव राजसमंद में बना हुआ है।
भीलों की कुलदेवी।

अधर देवी का मंदिर माउंट आबू सिरोही में बना हुआ है ।

खीमज माता का मंदिर बसंतगढ़ में बना हुआ है।

उदयपुर जिले की लोक देवियां :-

नीमच माता, फतेहसागर
झेला माता
राढासण
मनसापूर्ण करणी माता-दूसरा रोपवे
ईडाणा माता - अग्नि स्नान के लिए प्रसिद्ध देवी।
झांडोल माता
हीसकी माता
रूपण माता

सुगाली माता का मंदिर पाली जिले में बना हुआ है, 1857 की क्रांति की माता के रूप में जाना जाता है।✍️✍️🙏🙏


























































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