राजस्थान के लोक देवता

 राजस्थान के लोक देवता

मारवाड़ के अंचल में पांचों लोक देवताओं :- पाबूजी, हड़बूजी , रामदेवजी , गोगाजी , मांगलिया मेहाजी को पंच पीर माना गया है ।

पंच पीर :-

1. गोगाजी : -



जन्मः - ददरेवा ( चूरू में ) 11 वीं सदी में विक्रम संवत 1003 को पिता जेवर सिंह व माता बांछल के घर ।

गुरु- गोरख नाथ ।

उपनाम - जाहर पीर, चांपों का देवता, गुगो बापा, राजा मण्डलीक ।

मुख्य पर्व - भाद्रपद कृष्णा नवमी जिसे बोलचाल की भाषा में गोगा नवमी भी कहा जाता है ।

प्रतीक - खेजड़ी के वृक्ष एवं पत्थर पर अंकित सर्प की मूर्ति ।

मुख्य मंदिर - गोगा मेडी धाम हनुमानगढ़ ।

गोगा जी के जन्म स्थल ददरेवा को शीर्ष मेडी तथा समाधि स्थल को गोगामेडी भी कहते हैं। गोगामेडी में प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगा नवमी) को विशाल मेला भरता है ।

गोगाजी का विवाह कोलूमंड जोधपुर में केलम दे / फुलम दे से हुआ ।

गोगाजी के राज्य का विस्तार सतलज से हासी परगने तक था।

सर्प यज्ञ करने वाले देवता ।

गोगाजी के दो मौसेरे भाई थे जिनका नाम अर्जुन और सर्जुन के मध्य गो सर भूमि के लिए संघर्ष हुआ ।
भटनेर के युद्ध में मोहम्मद गजनवी और गोगाजी के मध्य संघर्ष हुआ तथा मोहम्मद गजनवी अर्जुन और सर्जुन के तरफ से थे ।

गोगाजी 47 पुत्रों तथा 60 - 65 भतीजों के साथ वीरगति को प्राप्त हुई ।
गौ रक्षा हेतु बलिदान दिया ।

कुम्हार जाती के द्वारा गोगा नवमी के दिन गोगाजी के प्रतीक के रूप में घर घर मिट्टी का घोड़ा बनाया जाता है ।

गोगा जी के पुत्र केसरिया कुंवर को सफेद नेजा चढ़ाया जाता है।

गोगामेडी में दो पुजारी होते है हिंदू और मुस्लिम ।

कायमखानी मुस्लिम इन्हें जाहर पीर के रूप में पूछते हैं ।

गोगामेडी का वर्तमान स्वरूप गंगासिंह द्वारा बनाय गया ।

गोगाजी का एक अन्य मंदिर - गोगाजी की ओलड़ खिलेरियों की ढाणी सांचौर जालौर में बना हुआ है तथा सबसे बड़ा मेला गोगामेडी में लगता है ।

डेरु नामक वाद्य यंत्र के साथ गोगाजी का गायन व फङ वाचन करने वाले नाथ अनुयाई कहलाए ।

किसान वर्षा के बाद हल जोतने से पहले गोगाजी के नाम की "गोगा राखड़ी" हल और हाली के बांधता है।

गोगा जी की सवारी "नीली घोड़ी " थी ।

2.पाबूजी राठौड़



उपनाम - प्लेग रक्षक , ऊंट वाला देवता ,लक्ष्मण का अवतार , बाई और झुकी हुई पाग वाला देवता,केसर कालमी रा असवार ।

मुख्य मंदिर - कोलूमंड फलोदी (जोधपुर) ।

मुख्यपर्व - चैत्र अमावस्या । 

जन्म - तेहरवी शताब्दी में 1239 ई.( विक्रम संवत 1296 ) फलोदी जोधपुर के निकट कोलूमंड में ।
पिता- धांधल जी राठौड़ ।
माता - कमलादे 
बङे भाई- बुढोजी 
राठौड़ों के मूल पुरुष राव सिहा के वंशज थे ।

अमरकोट के राजा सूरजमल सोढा की पुत्री सोढ़ी / सुप्यार दे से विवाह के समय जिंद राव खिची से देवल सारणी की गाय छुड़ाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । 

पाबूजी की बहन का विवाह जायल ( नागौर )  के राजा जिंद राव खींची के साथ हुआ ।

राजस्थान में सबसे लोकप्रिय फड़ पाबूजी महाराज की है ।

मेहर जाति के मुस्लिम पीर के रूप में पूछते हैं ।

ऊंटों को पालने वाली जाति रायका (रेबारी) इन्हें अपना आराध्य देव मानती है ।

पाबूजी से संबंधित कथा गीत "पाबूजी के पावङे " माठ वाघ यंत्र के साथ नायक एवं रेबारी जाति द्वारा गाए जाते हैं ।

पाबूजी की फड़ नायक जाति के भोपा द्वारा रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बासी जाती है।

राजस्थान के सबसे पहले लोक देवता है जो अश्पृश्यता को मिटाने का प्रयास किया ।

पाबूजी की धर्म बहन देवल बाईसा चारणी थी ।

पाबूजी की घोड़ी केसर कालमी देवल सारणी के द्वारा दी गई थी।

गुजरात के राजा आना बघेला के विरुद्ध जाकर थोरी जाति के सात भाइयों को शरण दी - 1. चांदा 2. डेम्बा 3. खलमल 4. सांचल 5. पेमा 6. खाँपू 7. खंगार ।

पाबू प्रकाश ग्रंथ के लेखक आशिया मोड़ थे।

3. हड़बूजी



उपनाम - बैलगाड़ी वाला बाबा, शास्त्र का ज्ञाता, असहाय और पंगु गायों का सेवक ।

मुख्य पर्व - चैत्र माह

प्रतीक - लकड़ी की बैलगाड़ी ।

मुख्य मंदिर - बैंगटी की गांव जोधपुर में बना हुआ है ।

सांखला जाति के मुस्लिम इन्हें पीर के रूप में पूजते हैं ।

इन्होंने राव जोधा को काहनू गांव में चांदी की कटार और मंडोर विजय का आशीर्वाद दिया था ।

यह रामदेव जी के मौसेरे भाई थे ।

जन्म- भूडोल गांव नागौर ।

पिता- महाराजा सांखला (मेहाजी सांखला) ।

गुरु - बालीनाथ, गुरु दीक्षा लेकर बैलगाड़ी में चारा पानी लेकर असहाय, लाचार, , गायों की सेवा मैं अपना जीवन बिताया ।

राव जोधा के द्वारा बैंगटी की जागीर प्रदान की गई ।

हड़बूजी भविष्य दृष्टा, वचन सिद्ध पुरुष, सुकून शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र पुरुष थे ।

हड़बूजी के पुजारी सांखला राजपूत है ।

मनोती पूर्ण होने पर जंगल में सियार या गीदड़ को चावल का भोग अर्पित किया जाता है ।

4.रामदेवजी



जन्म- भादवा सुदी दूज संवत 1462 ( 1405 ई ) उण्डकश्मीर, शिव तहसील बाड़मेर।

पिता- अजमाल जी तंवर ।
माता- मैणादै ।
भाई- वीरमदेव (बलराम का अवतार)
बहीन - सुगणा (सुभद्रा का अवतार)
गुरु- बालीनाथ । बालीनाथ से सातलमेर आश्रम (पोकरण) में दीक्षा ली ।
विवाह- अमरकोट के सोढा राजपूत दलै सिंह की पुत्री निहालदे / नैतल से ।

उपनाम - रुणिचा रा धणी,रामसापीर, बाबा रामदेव के नाम से प्रसिद्ध लोक देवता तथा इन्हें माण्ड देश रो राजा, लीला रो असवार , द्वारकानाथ रो अवतार के नाम से भी पूजा जाता है।

मुख्य पर्व -भाद्रपद शुक्ल द्वीतीया ( बाबे री बीज) ।

प्रतीक - पदचिन्ह/ पगल्या ।

पंच पीरों में सर्वाधिक लोकप्रिय देवता जिन्हें मुस्लिम संप्रदाय में रामसापीर के नाम से पूछते हैं ।

रामदेव जी कवि थे, इनकी रचित 24 बानिया प्रसिद्ध है ।
रामदेव जी ने कमड़ीया पंथ चलाया ।

समाधी स्थल- रुणिचा धाम रामदेवरा में भाद्रपद शुक्ल एकादशी विक्रम संवत 1515 ( सन् 1958) में जीवित समाधि ली ।

मुख्य मंदीर - रामदेवरा रुणिचा जैसलमेर में रामदेव जी का विशाल मंदिर है, जहां भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक विशाल मेला भरता है । 
जिसकी विशेषता सांप्रदायिक सद्भाव व तेरहताली नृत्य से हैं ।

तेरहताली नृत्य की सबसे प्रसिद्ध कलाकार मांगी बाई थी।

अन्य मंदिर - जोधपुर में मसूरिया पहाड़ी पर ।
बिरांटिया एवं सुरता खेड़ा (चित्तौड़गढ़)।

अर्जुन के वंशज माने जाते हैं।

रामदेव जी ने समाज में व्याप्त छुआछूत ऊंच-नीच को दूर कर समरसत्ता स्थापित की ।

सातलमेर के भैरव नामक क्रूर व्यक्ति से लोगों को क्रूरता से मुक्ति दिलाई और सातलमेर कस्बे को पुनः बचाया ।

सातलमेर (पोकरण) जागीर को अपनी भतीजी को दहेज में दे दिया ।

मेघवाल जाति के भक्त "रिखिया" कहलाते हैं।

रात्रि में की जाने वाली भजन संध्या को "जमा " कहते हैं ।

रामदेव जी के मंदिरों को " देवरा " कहते हैं ।

रामदेव जी की पूजा स्थल को आलया या बीज कहते हैं ।

रामदेव जी के पांच रंग की ध्वजा को नेजा कहते हैं ।

धर्म बहन - डाली बाई ।
डाली बाई मेघवाल ने रामदेवरा में रामदेव जी से 1 दिन पूर्व समाधि ली थी ।

प्रमुख सेवक - हरजी भाटी ।

जमा मे महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य तेरहताली नृत्य कहलाता है ।

रामदेव जी ने मक्का मदीना के पांच पीरों को पर्चा दिया और उन पीरों ने रामदेव जी को पीरों का पीर कहा।

राजस्थान में सांप्रदायिक सद्भाव का सबसे बड़ा मेला ।

कपड़े से बना घोड़ा भक्तों द्वारा घोड़ा चढ़ाया जाता है जिसे घुड़लिया कहते हैं ।

5.मांगलिया मेहाजी 



उपनाम - मांगलिया वाटी रा धणी, किरड - काबरा घोड़े रा असवार, मांगलिया घर कृष्ण अवतार ।

मुख्य मंदिर - बापणी गांव (फलोदी जोधपुर) ।

मुख्य पर्व - भाद्रपद कृष्णा अष्टमी ( मेहा अष्टमी ) ।

प्रतीक - किरड काबरा घोड़ा

मांगलिया मुस्लिमों के द्वारा पीर के रूप में पूजा जाता है ।

गौ रक्षा हेतु जैसलमेर के शासक राणग देव भाटी से युद्ध में शहीद ।

जन्म - पंवार कुल में मांगलिया गोत्र (सिसोदिया) परिवार  में ननीहाल में भाद्र कृष्ण जन्माष्टमी के दिन जन्म हुआ ।

मांगलिया गोत्र के मेहा जी के मुख्य पुजारी का वंश में वृद्धि नहीं होती हैं ।

तेजाजी



उपनाम - गायों का मुक्तिदाता,नाग देवता, काला और बाला का कृषि कार्य का उपकारक देवता ।
खड़नाल केभैरव अवतार के रूप में देवता ।

मुख्य मंदिर - सुरसुरा धाम रुपनगढ़ अजमेर ।

मुख्य पर्व - भाद्रपद शुक्ला दशमी ( तेजा दशमी ) ।

प्रतीक - घुड़सवार एवं भाले पर सर्प ।

पंच पीरों के बाहर राजस्थान का सर्वाधिक लोकप्रिय देवता ।

जन्म - 1073 ई. में खरनाल (नागौर) में धोलिया वंश में ।
पिता - ताहड़जी 
माता- रामकुवरी
बहन- राजल बाई
विवाह - पीपल पूनम विक्रम संवत 1131 को नौ माह की आयु में बाल विवाह रायमल की पुत्री 6 माह की आयु में पेमल से हुआ ।
ससुराल पनेर गांव में था।

घोड़ी का नाम - लीलण सिणगारी ।

लाचा गुजरी की गाया को सेदरिया गांव में मेर के मीणा से युद्ध करके गायों को छुड़ाकर लाया ।

सुरसुरा गांव में तेजाजी को सर्प दंश हो तथा भाद्रपद दशमी के दिन विक्रम संवत 1160 को अपना शरीर त्याग दिया ।

सुरसुरा गांव में तेजाजी के समाधि स्थल के नाम से सुरसुरा धाम बना हुआ है ।

सन 1730 में महाराजा अभय सिंह के द्वारा पनेर से परबतसर मूर्ति लेकर गए और वहां पर पशु मेला शुरू हुआ ।

वीर तेजा पशु मेला भाद्रपद शुक्ला दशमी से पूर्णिमा तक भरता है ।

सहरिया जनजाति के द्वारा इनकी पूजा की जाती है ।

तेजाजी के सर्वाधिक मंदिर अजमेर जिले में बने हुए है ।

राजस्थान के किसान कृषि कार्य के समय तेजा गायन करते हैं उसे तेजा नाच व तेजा टेर कहते हैं ।

सर्प व कुते काटे प्राणी का इलाज ।

सुरसुरा में तेजाजी की जागीर्ण निकाली जाती है। जाट जाति में इनकी अधिक मान्यता है ।

तेजाजी के भोपों को घोड़ला कहते है । इनकी घोड़ी लीलण थी।

अजमेर जिले के प्रमुख लोक देवता ।

तेजाजी पर 8 सितंबर 2011 को ₹5 का डाक टिकट जारी किया गया ।

देव नारायणजी



उपनाम - बगड़ावतों का श्याम ,  बगड़ावतों का धणी,  ईटो वाला श्याम, नीम रूपी , आयुर्वेद का ज्ञाता , पशु चिकित्सकों का ज्ञाता , 11 वीं कला का अवतार, गुर्जरों का मुक्तिदाता, कृष्ण का अवतार ।

मुख्य मंदिर - गोठां दड़ावत आसींद ( भीलवाड़ा ) ।

मुख्य समाधी - देव माली गांव अजमेर ।

प्रतीक - नीम का वृक्ष व कच्छी ईंट ।

राजस्थान में सबसे लंबी और सबसे छोटी फड़ देवनारायण की है।

8 दिसंबर 2011 में लोक देवता देवनारायण पर ₹5 का डाक टिकट जारी किया ।

 जन्म - शुक्ल षष्ठी 1243 ईस्वी में मालासेरी डूंगरी गांव गोठ दड़ावत भीलवाड़ा में ।
पिता - सवाई भोज बगड़ावत ।
माता- सेढु बाई ।
जन्म नाम - उदय सिंह ।
पत्नि - जय सिंह परमार की पुत्री पीपल दे ।

चमत्कार - अपनी पत्नी को कुष्ठ रोग से मुक्त किया,नदी की सूखी हुई धारा को पुनर्जीवित किया, मरे हुएसेठ को पुनर्जीवित किया ।

देवनारायण जी के पुत्र व पुत्री का नाम बाला और बाली था ।

बगड़ावत भोपे जंतर वाद्य यंत्र के साथ देवनारायण जी की फड़
 का वाचन करते हैं ।

भाद्र शुक्ल सप्तमी (समाधि स्थल) के दिन मेला लगता है ।

घोड़े का नाम - लीला घर ।
सहयोगी का नाम - माकड़ जी परमार ।

देवनारायण ने अपने अंश के रूप में 11 ईटों का निर्माण किया तथा 10 ईंटों को देवमाली में रखा गया और 1 ईंट को नाग पहाड़ी पर रखी गई ।

सन् 1992 में फड़ पर डाक टिकट जारी किया गया।

प्रमुख मंदीर -
सवाई भोज मंदिर ( गोंठा दड़ावत )आसींद भीलवाड़ा,देवमाली मंदिर मसूदा अजमेर,देव धाम जोधपुरिया निवाई (टोंक), देवडूंगरी चित्तौड़गढ़,मालासेरी डूंगरी गोट दड़ावत भीलवाड़ा |

देवनारायण जी की पड़ को चित्रित करने वाला पांचाजी जोशी को विश्व का पहला फड़ चित्रकार माना जाता है ।

मल्लीनाथ जी

मुख्य मंदिर- तिलवाड़ा बाड़मेर।

उपनाम - मालाणी रा धणी ।

मुख्य पर्व - चैत्र पूर्णिमा ।

संप्रदाय - कुंडा पंथ के आरंभकर्ता ।

पिता - राव सलखा जी राठौड़ ।
माता- जाणी दे ।
जन्म- 1354 ई. ।

राज्यभिषेक - 1378 ईस्वी में मेहवा के जागीरदार बन गए ।

विवाह- जैसलमेर की राजकुमारी रूपादे के साथ हुआ ।

गुरु- उगम सिंह भाटी से संन्यास की दीक्षा लेकर कुंडा पंथ चलाया ।

इन्हें मालाणी का राजा कहा जाता है ।

अपने भाई वीरमदेव के पुत्र राव चुंडा राठौड़ को चालोड़ी की जागीर दी ।

राव चुंडा को नागौर विजय में सहायता देने वाला लोक देवता ।

मल्लिनाथ जी ने 1398 ईसवी में तिलवाड़ा में मारवाड़ के संतों का सम्मेलन आयोजन किया ।

जजिया कर का विरोध करते हुए दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक को पराजित किया एवं मालाणी के संतों का सम्मेलन किया ।

मल्लिनाथ जी के वंशज मेहचा व जेतमाल राठौड़ है।

मल्लिनाथ जी की पत्नी "तोरल जैमल " लोक देवी के रूप में पूजी जाती है ।

कल्लाजी राठौड़



उपनाम - चार हाथ वाला लोक देवता , कमधजकेहर, शेषनाग का अवतार, केसरिया वीर, योगी सिद्ध पुरुष, छप्पन धरा का राव ।

समाधी स्थल - भैरव पोल चित्तौड़गढ़ दुर्ग ।

मुख्य मंदिर - रनैला धाम, सलूंबर (उदयपुर) ।

मुख्य पर्व - अश्विनी शुक्ला नवमी ।

प्रतीक - सहस्त्र फण, चैसनाग ।

पिता- आसकरण ( अचलाजी ) ।
ताऊ - जयमल ।
बुआ - मीरां बाई ।
जन्म - विक्रम संवत 1601 ( 1544 ई.) में ।
जन्म स्थान - शामियाना गांव नागौर ।

भूत- पिशाच ग्रस्त लोग व रोगी पशुओं का इलाज ।

कल्लाजी को शेषनाग का अवतार माना जाता है। सांमलिया डूंगरपुर मै इनकी प्रतिमा बनी हुई है ।

चित्तौड़ के तीसरे साके में मुगल सेना के विरुद्ध सन् 1568 में भैरव पोल चित्तौड़ में वीरगति को प्राप्त हुए । 

तल्लीनाथ जी

उपनाम - पचोटा पहाड़ राजधानी, मुंक पशुओं रा रक्षक ।

वास्तविक नाम - गांगदेव राठौड़ ।

मुख्य मंदिर - पांचोटा पहाड़ , आहोर (जालोर) ।

गुरु - योगी जालंधर नाथ ।

मुख्य पर्व - भाद्र शुक्ला पंचमी ।

यह मंडोर के राव सुंडा के अनुज और राव मल्लीनाथ के भतीजे है।

इनका ओरण गोडवाड़ क्षेत्र में सबसे बड़ा ओरण है ।

यह जालौर के प्रसिद्ध प्रकृति प्रेमी लोक देवता है ।

आलमजी

उपनाम - धोरा रा धणी ।

मुख्य पर्व - भाद्र शुक्ल द्वितीया ।

मुख्य मंदीर - आलम जी रा धोरा गुडामालानी बाड़मेर (गुडामालानी व धोरीमना के सरहद पर बना मंदिर ) ।

इन्हें घोड़ों का पारखी माना जाता है व जैतमाल राठौड़ कुल से थे।

वीर झुंझार जी

उपनाम - तंवरावाटी रा धणी ।

मुख्य मंदिर - स्वालोदड़ा गांव (सीकर) ।

मुख्य पर्व - राम नवमी (चैत्र शुक्ल नवमी)।

कांतली नदी का प्रवाह क्षेत्र तोरावाटी / तंवरावाटी कहलाता है।

वीर विग्गाजी

उपनाम - जाखड़ गोत्र के कुल देवता , जांगल देश के वीर ।

मुख्य मंदिर - रिडो गांव बीकानेर में 14 अक्टुबर को वीर विग्गाजी का मेला लगता है ।

पिता - मोहन जाखड़ ।

माता - सुल्तानी ।

बीकानेर जिले में जन्मे विग्गाजी ने मुस्लिम लुटेरों से गायों की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर कर दिये ।

जाखड़ समाज इन्हें कुल देवता मानता है।

वीर पनराजजी

जन्म स्थान - नंगा गांव जैसलमेर

मुख्य पर्व - भाद्रपद शुक्ल द्वितीया ।

मुख्य मंदिर - पनराजसर जैसलमेर ।

यह काठेड़ी गांव में पालीवालों की गौरक्षार्थ शहीद हुए ।

ईलोजी

उपनाम - मंडोर  रा राजा ।

मुख्य पर्व - गुरुवार ।

हिरण्यकश्यप के बहनोई और होलिका के प्रेमी के रूप में प्रसिद्ध।

हरीराम बाबा

उपनाम - सुजला क्षेत्र के देवता ।

मुख्य मंदिर - झोरडा गांव नागौर ।

प्रतीक - सांप की बाबी।

मुख्य पर्व - भाद्रपद शुक्ल पंचमी ।

पिता - राम नारायण ।

माता - चंदणी

सर्पदंश और विषैले जीव के काटे का उपचार हेतु डोरा या ताती बांधकर फेरी दी जाती है ।

देव बाबा

उपनाम - मेवात क्षेत्र के देवता,गुर्जर ग्वाला और चरवाहों के देवता, पशु चिकित्सा का ज्ञाता ।

मुख्य मंदिर - नंगला जहाज ( भरतपुर ) ।

मुख्य पर्व - भाद्रपद शुक्ल पंचमी ।

बहन - ऐलादी माता ।
मनोकामना पूर्ण होने पर गवालों और चरवाहों को भोजन दिया जाता है ।

भूरिया बाबा

उपनाम - आदिवासी मीणा के कुलदेवता, गौतम ऋषि या गौतमेश्वर ।

मुख्य मंदिर- पोसलिया गांव (सिरोही) सुकड़ी नदी के तट पर ।

दूसरा मंदिर - अरनोद प्रतापगढ

मुख्य पर्व - वैशाख शुक्ल त्रयोदशी ।

गोमतेश्वर महादेव जी के मंदिर को आदिवासी मीणा व काठल का हरिद्वार कहा जाता है ।

वीर बावसी


उपनाम - गोडवाड़ के आदिवासीयों के देवता ।

मुख्य मंदिर - काला टोकरा भीमण गांव (पाली) ।

मुख्य पर्व - चैत्र शुक्ल पंचमी ।

प्रतीक - कुते की प्रतिमा, घुड़सवार ।

खेतपालजी

उपनाम - खेतलाजी, क्षेत्रपाल, भैरव ।

मुख्य मंदीर - सोनाणा खेतला, देसुरी (पाली) ।

मुख्य पर्व - चैत्र शुक्ल द्वितीया ।

भोमियाजी

गाँव के भूमि रक्षक देवता ।

देव भूमि या प्रसिद्ध है - 1. नाहरसिंह भोमिया (नाहरगढ़ जयपुर) ।
2.सूरज सिंह भोमिया दोसा किले में मंदिर बना हुआ है ।

मामा देव

गांव में बरसात के देवता ।

प्रतीक - लकड़ी का तोरण ।

अकाल के समय अच्छी वर्षा की कामना में भैंसें की बलि ।

डूंगजी - जवाहरजी

शेखावटी क्षेत्र के लोक देवता ।

यह धनी लोगों को लूट कर उनका धन गरीबों एवं जरूरतमंदों में बांटते थे ।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।

केसरिया कुंवरजी 

गोगा जी के पुत्र जो लोक देवता के रूप में पुज्य हो गये।

इनका भोपा सर्पदंश के रोगी का जहर मुंह से चूस कर निकाल देता है ।

वीर फताजी 

साथूं गांव जालौर के फताजी ने लुटेरों से अनुयायियों की रक्षार्थ अपना बलिदान दिया ।

साथूं गांव में इनका मंदिर बना हुआ है, जहां भाद्रपद शुक्ला नवमी को मेला भरता है ।

रुपनाथजी (झरड़ा जी राठोड.)

यह पाबूजी के भतीजे थे ।

मंदीर - कोलूमंड (जोधपुर ) एवं सिभूथड़ा (बीकानेर ) में इनके थान है।

हिमाचल प्रदेश में इन्हें बालक नाथ के रूप में पूजते हैं ।

रूपनाथ जी ने अपने पिता एवं अपने चाचा पाबूजी की मृत्यु का बदला लेने हेतु जींदराव खींची की हत्या कर दी ।
✍️✍️✍️🙏🙏🙏











 















टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राजस्थान मे सड़क परिवहन

राजस्थान की लोक देवियां