राजस्थान के प्रमुख पर्वत, पहाड़ियां का पठार (भूगोल)

राजस्थान के प्रमुख पर्वत, पहाड़िया व पठार (भूगोल)

गुरु शिखर 

अरावली की पहाड़ियों में माउंट आबू सिरोही में स्थित राजस्थान की सबसे ऊंची पर्वत चोटी जिसकी ऊंचाई 1722 मीटर है, यह हिमालय व पश्चिमी घाट की नीलगिरी के मध्य स्थित सर्वाधिक ऊंची चोटी है ।
कर्नल टॉड ने इसे संतो का शिखर कहा है कुछ पुस्तकों में इसकी ऊंचाई 1727 मीटर दी गई है जो सही नहीं है ।

सेर (सिरोही)

1597 मीटर ऊंची राज्य की दूसरी सबसे ऊंची चोटी ।

दिलवाड़ा

1442 मीटर ऊंची राज्य की तीसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी ।

जरगा (उदयपुर )


जरगा 1431 मीटर ऊंची राज्य की चौथी  सबसे ऊंची चोटी है जो भोरठ के पठार में स्थित है ।

अचलगढ़ (सिरोही)

1330 मीटर ऊंची पर्वत श्रेणी है ।

रघुनाथगढ़ (सीकर)

1055 मीटर

खौ ( सीकर )

920 मीटर

तारागढ़

873 मीटर

मुकुंद वाड़ा की पहाड़ियां

कोटा व झालरापाटन के बीच स्थित इस भूभाग का ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है । अतः चंबल नदी दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है ।

मालखेत की पहाड़ियां

सीकर जिले की पहाड़ियों का स्थानीय नाम ।

हर्ष की पहाड़िया

सीकर जिले में स्थित पहाड़ी जिस पर जीण माता का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है ।

सुण्डा पर्वत

भीनमाल (जालौर ) के निकट स्थित पहाड़ियां जिसमें सुंधा माता का मंदिर स्थित है। इस पर्वत पर 2006 में राज्य का पहला रोप वे प्रारंभ किया गया ।

मालाणी पर्वत श्रृंखला

लूनी बेसिन का मध्यवर्ती घाटी भाग जो मुख्यतः जालौर एवं बालोतरा में स्थित है ।

मेसा पठार

620 मीटर ऊंचा पठारी भाग जिस पर चित्तौड़गढ़ किला स्थित है ।

उड़िया पठार

राज्य का सबसे ऊंचा पठार जो गुरु शिखर से नीचे स्थित है ।
आबू पर्वत से 160 मीटर ऊंचा है ।

आबू पर्वत

आबू पर्वत खंड का दूसरा सबसे ऊंचा पठार (उड़िया पठार के बाद )जिसकी औसत ऊंचाई 1200 मीटर से अधिक है । तथा यह सिरोही जिले में स्थित है यहीं पर टोड रॉक एवं हॉर्न रॉक स्थित है ।

अन्य चोटियां

कुंभलगढ़ 1224 मीटर, कमलनाथ की पहाड़ी 1001 मीटर, ऋषिकेश पहाड़ी 1017 मीटर, सज्जनगढ़ पहाड़ी 938 मीटर एवं लीलागढ़ पहाड़ी 870 मीटर।

भोरठ का पठार

आबू पर्वत खंड के बाद राज्य का उच्चतम पठार जो उदयपुर के उत्तर-पश्चिम में गोगुंदा व कुंभलगढ़ के बीच स्थित है ।
इसकी औसत ऊंचाई 1225 मीटर है ।
जरगा पर्वत इसी में स्थित है ।

भाकर

पूर्वी सिरोही क्षेत्र में अरावली की तीव्र ढाल वाली उबड़ खाबड़ कटक पहाड़िया को स्थानीय भाषा में भाकर नाम से जानी जाती है । 

गिरवा

उदयपुर क्षेत्र में  तश्तरी नुमा पहाड़ी  श्रंखला को स्थानीय भाषा में गिरवा कहते हैं ।

मेरवाड़ा की पहाड़ियां :-
अरावली पर्वत श्रेणियों का टॉडगढ़ के समीप का भाग जो मारवाड़ के मैदान को मेवाड़ के उच्च पठार से अलग करता है ।

छप्पन की पहाड़ियां व नाकोडा पर्वत :-
बाड़मेर में सिवाना पर्वत क्षेत्र में स्थित मुख्यतः गोलाकार पहाड़ियां इन्हें नाकोडा पर्वत के नाम से भी जाना जाता है।

लासडिया का पठार :-
उदयपुर में राजसमंद से आगे पूर्व की ओर विच्छेदित कटा फटा पठार ।

त्रिकूट पहाड़ी :-
जैसलमेर किला इसी पर स्थित है |

ऊपरमाल :-
चित्तौड़गढ़ के भैंस रोड गढ़ से भीलवाड़ा बिजोलिया तक का पठारी भाग रियासत काल में ऊपर माल के नाम से जाना जाता था ।

चिड़ियाटूक पहाड़ी :-
जोधपुर का मेहरानगढ़ किला इसी पर स्थित है ।

तारागढ़ (अजमेर) ,नाग पहाड़ (अजमेर) । मध्य अरावली की सबसे ऊंची चोटी । 

आडावाला पर्वत :-
बूंदी जिले में स्थित है ।

भैराच एवं उदयनाथ :-
अलवर में स्थित पहाड़ियां ।

मगरा :-
उदयपुर का उत्तर पश्चिमी पर्वतीय भाग । यही जरगा पर्वत चोटी स्थित है ।

जयपुर जिले में व बाबई झुंझुनू में स्थित पहाड़ीयाँ ।

डोरा पर्वत :-
जसवंतपुरा पर्वतीय क्षेत्र जालौर में स्थित ।

रोजा भाखर 730 मीटर , इसराना भाकर 839 मीटर एवं झारोला पहाड़यह सभी जालौर पर्वती क्षेत्र जसवंतपुरा की पहाड़ियां में स्थित है ।

नाल :- अरावली श्रेणियों के मध्य मेवाड़ क्षेत्र में स्थित तंग रास्ता (दर्रा ) को स्थानीय भाषा में नाल कहते हैं ।

मेवाड़ की प्रमुख नालें :-
1. जीलवा की नाल ( पगल्या नाल) :-यह मारवाड़ से मेवाड़ आने का रास्ता प्रदान करती है ।
2. सोमेश्वर की नाल :-देसूरी से कुछ मिल उत्तर में स्थित निकटतम दर्रा।
3.हाथी घोड़ा की नाल :-देसूरी से दक्षिण में 5 मील दूरी पर स्थित नाल ।
कुंभलगढ़ का किला इसी नाल के नजदीक है।

ब्यावर तहसील में अरावली की चादर हैं जो बर का दर्रा, परवेरिया का दर्रा, शिवपुर घाट का दर्रा, सूरा घाट दर्रा ।

जसवंतपुरा की पहाड़ियां :-
आबू क्षेत्र के पश्चिम में जालौर तक स्थित पहाड़ियां। डोरा पर्वत चोटी यही स्थित है।

महत्वपूर्ण तथ्य :-

पश्चिमी शुष्क रेतीला मैदान पाकिस्तान सीमा के सहारे सहारे कच्छ की खाड़ी से पंजाब तक विस्तृत है । यह मरुस्थल विश्व का एकमात्र मरुस्थल है, जो दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं द्वारा निर्मित है ।

चंबल बेसिन में 5 से 30 मीटर गहरी खंड युक्त बीहड़ भूमि को स्थानीय भाषा में खादर कहते हैं।

रेगिस्तान देश के बड़े-बड़े टीले जिनकी आकृति लहरदार होती है उसे धोरे कहा जाता है ।

रेगिस्तान में रेत के अति सुंदर आकार बड़े-बड़े टीले बरखान कहा जाता है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर गतिशील रहते हैं।

महान थार मरुस्थल का पूर्वी भाग जो कस से बीकानेर तक फैला है उससे लघु मरुस्थल कहते हैं।

बीड़ह भूमि या कंदराएँ :-

चंबल नदी के द्वारा मिट्टी के भारी कटाव के कारण प्रवाह क्षेत्र में बन गई गहरी घाटियां व टीले ।राजस्थान में सर्वाधिक बीहड़ भूमि धौलपुर जिले में है ।राजस्थान और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती जिले भिंड, मुरैना, धौलपुर आदि में कंदराएं बहुत है

खड़ीन :-
जैसलमेर के उत्तर दिशा में बड़ी संख्या में स्थित प्लाया झीले जो प्राइस कागारों से घिरी रहती है।

धरियन :-जैसलमेर जिले के एक भाग में जहां आबादी लगभग नगण्य है ,स्थानांतरित बालुका स्तूप को स्थानीय भाषा में धरियन नाम से पुकारते हैं ।

वागड़ ( वाग्वर) :-
बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ डूंगरपुर के क्षेत्र को स्थानीय भाषा में वागड़ कहते हैं ।

बांगड़ (बांगर ) :-यह अरावली पर्वत एवं पंश्चिमी मरुस्थल के मध्य का भाग है जो मुख्यतःझुंझुनू, सीकर, नागौर जिले में विस्तृत है ।

छप्पन का मैदान :-बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ के बीच माही बेसिन में 56 ग्राम समूहों (56 नदी नालों का प्रवाह क्षेत्र ) का क्षेत्र।

पीडमान्ट मैदान :-अरावली श्रेणी में देवगढ़ के समीप स्थित प्रथक निर्जन पहाड़िया जिनके उच्च भूभाग टीले नुमा है।

बिजासन का पहाड़ :-मांडलगढ़ के कस्बे के पास स्थित है।

विन्ध्यानचल पर्वत :-राजस्थान के दक्षिण पूर्व में मध्य प्रदेश में स्थित है ।

रनः -पश्चिमी मरू प्रदेश में बालुका स्तूप के बीच की निम्न भूमि में जल भर जाने से निर्मित अस्थाई झीले व दलदली भूमि को रन कहते हैं ।

लाठी सीरीज क्षेत्र :-जैसलमेर में पोकरण से मोहनगढ़ तक पाकिस्तानी सीमा के सहारे सहारे विस्तृत एक भूगर्भीय जल की चौड़ी पट्टी जहां उपयोगी सेवण घास अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है ।

कूबड़ पट्टी :-राजस्थान के नागौर जिले एवं अजमेर जिले के कुछ क्षेत्रों में भूगर्भीय पानी में फ्लोराइड की मात्रा अत्यधिक होने के कारण वहां के निवासियों की हड्डियों में टेढ़ा पन आ जाता है एवं पीठ झूक जाती है इसलिए उसे कुबङ पट्टी कहते हैं ।

ढाढ या थली : -बरखान बालुका स्तूप की दोनों भुजाओं के बीच वायु की रगड़ से बने  गरत को स्थानीय भाषा में थली कहते हैं इसमें वर्षा पानी भरने से प्लाया झील का निर्माण हो जाता है ।

बग्गी या काठी :- घग्घर मैदान में पाई जाने वाली समतल व उपजाऊ चिकनी मिट्टी क स्थानीय भाषा का नाम है '

सांभर झील आंतरिक जल प्रवाह का अच्छा उदाहरण है ।

3सी छोटी गाँव :-श्रीगंगानगर से 12 किलोमीटर दूर स्थित गांव जो देश का पहला नियोजित रूप से बचा हुआ गांव है ।✍️✍️✍️✍️🙏🙏🙏





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