राजस्थान की जलवायु (भूगोल)

 राजस्थान की जलवायु

जलवायु :-

किसी निश्चित भूभाग में औसत वायुमंडल के दशाओं की बड़ी या दीर्घ अवधि जलवायु कहलाता है ।

मौसम : -
किसी निश्चित भूभाग में औसत वायुमंडलीय दशाओ (तापमान ,वर्षा ,आद्रता व वायु दाब )की लघु या छोटी अवधि मौसम कहलाती है ।

मौसम की लंबी अवधि को जलवायु कहा जाता है ।

उदाहरण:-भारत में 35 से 50 वर्ष का समय
जलवायु के तत्व :-
जलवायु के तत्व तापमान तथा वर्षा है ।

जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक :-

1 .अक्षांश :-अक्षांश रेखाओं के आधार पर जलवायु का निर्धारण किया जाता है ।

भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ने के कारण तापमान अधिक रहता है ।
ध्रुवों पर सूर्य की किरणें तिरसी पड़ने के कारण यहां का तापमान कम रहता है ।

भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर तापमान कम होता है और वायुदाब बढ़ता है ।

0 डिग्री अक्षांश से 23.5डिग्री के मध्य उष्णकटिबंधीय जलवायु पाई जाती है ।

23:5डिग्री अक्षांश से 66.5डिग्री अक्षांश के मध्य शीतोष्ण कटिबंध जलवायु पाई जाती है ।

66.5डिग्री अक्षांश से 90डिग्री अक्षांश के मध्य शीत कटिबंध यह जलवायु पाई जाती है ।

राजस्थान में उष्णकटिबंधीय जलवायु तथा शीतोष्ण कटिबंधीय जलवायु पाई जाती है ।

2 .समुद्र तल से ऊंचाई / उच्चावच :-

वायुमंडल धरातल की दीर्घ / पार्थवीक की किरणों से अधिक गर्म होता है तथा सूर्य की लघु किरणों से कम गर्म होता है।

अतः ऊंचाई की ओर जाने पर तापमान कम होता है जिस की दर 6.5॰ c / 1000 M या 165 मीटर पर 16० C होती है इससे ही सामान्य ताप पतन के नाम से जाना जाता है ।

3 .समुद्र तट से दूरी :-

राजस्थान समुद्र तट से अधिक दूर होने के कारण विषम कारी जलवायु पाई जाती है ।
 
समुद्र से दूरी बढ़ने पर वर्षा की मात्रा घटती है ।

समुद्र तट से अधिक दूरी होने के कारण राजस्थान का दैनिक तापांतर अधिक पाया जाता है ।

तटीय प्रदेशों में समकारी जलवायु होती है ।
तटीय प्रदेशों का दैनिक तापांतर कम होता है ।

4 .पर्वतों की स्थिति व दिशा : -

पर्वत जलवायु को दिशा व स्थिति के आधार पर प्रभावित करते हैं । .

अरावली पर्वतमाला की दिशा दक्षिण पूर्व मानसून की अरब सागरीय दशा के समांतर होने के कारण राजस्थान में वर्षा कम होती है । (10%)

 अरावली पर्वत माला पूर्वी बंगाल की खाड़ी मानसून शाखा के लंबवत होने के कारण पूर्वी राजस्थान में अधिक वर्षा होती है तथा पश्चिमी राजस्थान में कम वर्षा होती है ।

मरुस्थल अरावली का छाया वृष्टि प्रदेश होने के कारण या वर्षा बहुत कम होती है ।

पवनों की उत्पत्ति :-

यदि पवन गर्म प्रदेश से आ रही है तो तापमान बढ़ा देती है  ।
जैसे - लू

यदि पवन ठंडे प्रदेश से आ रही है तो तापमान को घटा देती है जैसे - शीत लहर

यदि पवन सागर से आ रही है तो उच्च आर्दता वाली यह पवने वर्षा के लिए उत्तरदाई होगी ।
जैसे -दक्षिणी पूर्वी मानसूनी हवाएं

धरातल का स्वरूप :-

यदि धरातल काली मिट्टी ब्लू मिट्टी या रेतीली मिट्टी है तो तापमान उच्च होगा ।

मरुस्थल की बलुई मिट्टी के कारण यहां का अत्यधिक उच्च तापमान रहता है ।

यदि धरातल हिमाच्छादित (श्वेत )है तो तापमान कम होगा क्योंकि  परावर्तन अधिक करता है ।

वनाच्छादन

जहां वन अधिक है वहां कम तापमान होगा और अधिक वर्षा होगी ।

मेघाच्छादन :-

यदि आकाश मेघो (बादल) से ढका है तो तापमान कम होगा ।

समुद्री धाराएं :-

गर्म जलधारा तापमान को बढ़ाएगी तथा ठंडी जलधारा तापमान को कम करेगी ।

भारतीय संस्कृति के अनुसार सहित ने बताई गई है -

बसंत ऋतु -मार्च-अप्रैल
ग्रीष्म ऋतु -मई जून
वर्षा ऋतु -जुलाई-अगस्त
शरद ऋतु -सितंबर अक्टूबर
शीत ऋतु -नवंबर दिसंबर
हेमंत ऋतु -जनवरी-फरवरी

मौसम विभाग के अनुसार ऋतुएँ :-

1 .ग्रीष्म ऋतु
2शीत ऋतु 
3.वर्षा ऋतु
4.शरद ऋतु

.पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5डिग्री झुकी हुई है ।
यह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है ।

ग्रीष्म ऋतु :-

ग्रीष्म ऋतु 15 मार्च से 15 जून तक होती है ।

ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें सीधी पड़ती है इसलिए राजस्थान में गर्मी ज्यादा होती है ।

राजस्थान का सबसे गर्म स्थान -बीकानेर है

राजस्थान का सबसे गर्म व ठंडा जिला चूरु है ।

राजस्थान का सबसे ठंडा स्थान माउंट आबू है ।

ग्रीष्म ऋतु मे छावनी क्रिया में आंधी व लू की हवाए अधिक तापमान के कारण गर्म होकर ऊपर उठ जाती है
 और यहां पर निम्न वायुदाब बन जाता है ।

शीत ऋतु

शीत ऋतु में सूर्य की किरणें तिरछी पड़ने के कारण यहां का तापमान कम होता है और ठंड ज्यादा पड़ती है ।

शीत ऋतु में प्रति चक्रवातीय स्थिति रहेगी ।

राजस्थान में शीत ऋतु में तापमान निम्न वायुदाब उच्च रहेगा ।

राजस्थान में सबसे ठंडा जिला चुरू है ,वसबसे ठंडा स्थान माउंट आबू है ।
लूः - 
यह ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली स्थानीय गर्म शुष्क कष्टदायक धूल भरी पहने हैं जो बलूचिस्तान से भारत के राजस्थान व विशाल मैदान में चलती है ।

लू राजस्थान के तापमान को बढ़ाती है वह तापांतर को कम करती है ।

यह पवन ग्रीष्म ऋतु में मार्च अप्रैल-मई में चलती है ।
यह बाड़मेर को सर्वाधिक प्रभावित करती है तथा इसकी राजस्थान में सर्वाधिक गति जयपुर में होती है ।

आंधी : -
यह एक ग्रीष्म ऋतु में सहवनीय क्रियाओं के फल स्वरुप उत्पन्न एक धूल भरी आद्र घटना है जो तापमान को कम करती है ।

आंधी से वर्षा भी होती है ।

सर्वाधिक आंधी श्री गंगानगर , हनुमानगढ़ में चलती है ।

भभूल्या :-

यह ग्रीष्म ऋतु की सक्रवाती है घटना है जो निम्न वायुदाब के कारण हवाओं के द्वारा सकरा कार गति है।

यह धूल भरी घटना है ।
इसके केंद्र में निम्न वायुदाब होगा और केंद्र से बाहर की ओर जाने पर वायुदाब बढ़ेगा ।

इसकी आकृति गोलाकार , अंडाकार , vआकार की होती है ।
सर्वाधिक भभूल्या बीकानेर में आते है 


दोगड़ा / दगोड़ा :-

यह ग्रीष्म ऋतु में राजस्थान में मानसून पूर्व की वर्षा है ।

यह तेज हवा आंधी के साथ वर्षा होती है ।
मार्च, अप्रैल में होती है ।

शीत लहर :-

शीत लहर राजस्थान के तापमान को अधिक नीचा कर देती है ।

फतेहपुर सीकरी का तापमान शीत लहर के कारण की हीमांक से भी नीचे चला जाता है । .

शीत लहर राजस्थान के जनजीवन को प्रभावित करती है ।

तापीय प्रतिलोमन :-

शीत ऋतु में ऊंचाई की ओर जाने पर तापमान घटने के बजाय बढ़ता है इसे ही प्रतिलोमन तथा तापक्रम  व्यूत्क्रमण कहा जाता है ।

तापीय प्रतिलोमन के लिए आवश्यक दशाएं :-
1 .आकाश साफ चाहिए ।
२.शीत ऋतु होनी चाहिए ।
3 .लंबी रातें होनी चाहिए ।
4 .आवाज शांत होनी चाहिए ।

मावठ : -

शीत ऋतु में होने वाली वर्षा मावठ कहलाती है ।

यह वर्षा जनवरी-फरवरी में होती है ।

राजस्थान में मावठ वर्षा ओलो के रूप में भी होती है ।

इस वर्षा को गोल्डन रेन के नाम से जाना जाता है ।

राजस्थान में मावठ वर्षा से रबी की फसल को लाभ होता है ।

जलवायु वर्गीकरण :-

राजस्थान में जलवायु वर्गीकरण के दो प्रकार है -

1 .सामान्य वर्गीकरण
मौसम विभाग के अनुसार जलवायु प्रदेश है ।इसे वर्षा के आधार पर वर्गीकृत किया गया है ।

2 .व्यक्तिगत वर्गीकरण -
                -कोपेन का वर्गीकरण
                - ट्रिवार्थी का वर्गीकरण
                - थार्नवेट का वर्गीकरण 

सामान्य जलवायु वर्गीकरण :-

1 .शुष्क जलवायु प्रदेश - O-20 cm थार मरुस्थल
2.अर्ध शुष्क जलवायु प्रदेश - 20 - 40 cm अरावली
3 . उपआर्द जलवायु प्रदेश - 40 -60 cm पूर्वी मैदान
4. आर्द जलवायु प्रदेश - 60-80 cm दक्षिण पूर्व पठार
5. अति आदर जलवायु -80-100 Cm दक्षिण पूर्वी पठार

कोपेन का वर्गीकरण

कोपेन जर्मनी के रहने वाले ।
कोपेन ने सन 1900 , 1901,1918,1936 मे वर्गीकरण किया ।
औसत वर्षा का औसत तापमान के आधार पर वर्गीकरण किया ।

कैंडल के वनस्पति वर्गीकरण पर आधारित है ।

राजस्थान के जलवायु प्रदेशों के नाम

1.उष्ण मरुस्थल तुल्य जलवायु प्रदेश = B wh w  25 cmवर्षा रेखा से कम ।
उष्ण मरुस्थल तुल्य जलवायु प्रदेश वनस्पति विहीन है ।

2.स्टेफी तुल्य जलवायु प्रदेश = Bsnw 25 से 50 सेंटीमीटर वर्षा रेखा ।
घास के मैदान से गिरे हुए वन ।

3 .शीतोष्ण कटिबंधीय मैदानी जलवायु = cwg 60 से 80 सेंटीमीटर वर्षा रेखा ।
शीतोष्ण कटिबंधीय मैदानी जलवायु में कृषि मैदान पाए जाते है।

4.समान अतुल्य जलवायु प्रदेश = A w 100 सेंटीमीटर वर्षा रेखा ।
अधिक वन पाए जाते हैं ।

ट्रिवार्थी :-

यह अमेरिका जलवायु भूगोल वेन्ता है।

ट्रिवार्थी सन 1948 में वर्गीकरण किया ।

इन्होंने औसत वर्षा का तापमान के आधार पर वर्गीकरण किया ।

कोपेन          ट्रिवार्था                    वर्षा
BWhw      -BWh                  10 cm
BShw        -BSh                  30 cm
Cwg          -Caw                  70 cm
AG            -Aw                    100 cm

थॉर्नवेट का वर्गीकरण :

कोपेन की तरह थार्नवेट ने वनस्पति वाष्पीकरण की मात्रा वर्षा एवं तापमान के मौसम एवं मासिक वितरण के आधार लेते हुए जलवायु प्रदेश का वर्गीकरण किया है इस के वर्गीकरण के आधार पर राजस्थान में निम्न जलवायु प्रदेश पाए जाते हैं :- Ca'w या उप आर्द शुष्क एव आर्द शुष्क  जलवायु प्रदेश ।

क्षेत्र = दक्षिण पूर्वी उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, झालावाड़, बांरा एवं कोटा ।

DA'w या उष्ण आर्द ( अर्द्ध शुष्क )जलवायु प्रदेश :-

क्षेत्र :-सिरोही ' पूर्वी जालौर, अजमेर, पाली, बूंदी , कोटा ' चित्तौड़गढ़ , सवाई माधोपुर, जयपुर , अलवर , भीलवाड़ा, टोंक, भरतपुर , करौली , सीकर, दौसा, झुंझुनू आदि जिले ।

DB'w या अर्ध शुष्क ( मिश्रीत ) जलवायु प्रदेश :-

क्षेत्र :गंगानगर, चूरू, बीकानेर, एवं हनुमानगढ़ जिला का अधिकांश भाग।

EA'dया उष्ण शुष्क ( मरुभिद ) जलवायु प्रदेश :

क्षेत्रः- बाड़मेर,जैसलमेर, जोधपुर जिला का पंचमी भाग एवं दक्षिणी पूर्वी बीकानेर जिला आदि ।✍️✍️✍️🙏🙏🙏



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