आंतरिक अपवाह तंत्र (भूगोल)
आंतरिक अपवाह तंत्र :-
वे नदियों जो अपना जल किसी नदी या समुद्र में न गिरा कर धरातल पर ही विलुप्त हो जाती है उसे आंतरिक अपवाह तंत्र कहा जाता है ।
घग्गर नदी
घग्गर नदी का उद्गम स्थल हिमाचल प्रदेश में शिवालिक पर्वतमाला मे कालका पर्वत से है ।
घग्गर नदी हनुमानगढ़ टीबी स्थान से राजस्थान में प्रवेश करती है ।
घग्गर नदी हनुमानगढ़ के भटनेर सामान्यतः विलुप्त हो जाती है ।
अगर घग्गर नदी के उद्गम स्थल पर अधिक वर्षा है तो यह नदी सूरतगढ़ ,अनूपगढ़ के बाद अंतर्राष्ट्रीय सीमा को पार करते हुए बहावलपुर के फोर्ट अब्बास तक जाती है ।
2007 में यह नदी फोर्ट अब्बास तक गई और यह सामान्यतः भटनेर में लुप्त हो जाती है ।
घग्गर नदी की कुल लंबाई लगभग 465 किलोमीटर है ।
घग्गर नदी के किनारे कालीबंगा वह पीलीबंगा हड़प्पा कालीन कांस्य युगीन सभ्यता है।
हनुमानगढ़ जंक्शन घग्घर नदी के तल से भी नीचे स्थित है ।
घग्गर नदी पर हनुमानगढ़ में तलवाड़ा झील बनती है ।
प्राचीनतम सरस्वती नदी के स्थान पर प्रवाहित होने वाली इस नदी को द्रस्वती नदी के नाम से जाना जाता है ।
इसे मृत नदी और नाली प्रदेश के नाम से जाना जाता है ।
पाकिस्तान में हकरा के नाम से जाना जाता है ।
कांतली नदी
कान्तली नदी का उद्गम स्थल सीकर में खंडेला की पहाड़ियां में है ।
यह नदी दो जिले (सीकर,झुंझुनू )मैं प्रवाहित होती है ।
झुंझुनू को यह लगभग दो बराबर भागों में बांटती है ।
कंतली नदी की लंबाई लगभग 100 किलोमीटर है ।
इस नदी के तट पर सीकर में गणेश्वर /ताम्र जननय सभ्यता है ।
झुंझुनू में इसके तट पर सुनारी सभ्यता पनपी है ।
इसके आसपास के क्षेत्र को तोरावटी प्रदेश के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां तंवर वंशिय शासकों का शासन था ।
काकनेय ( काकनी ) / मसुरदी नदी
काकनी नदी का उद्गम जैसलमेर से 27 किलोमीटर दूर कोटरी गांव की पहाड़ियों से होता है ।
यह नदी 17 किलोमीटर के बाद लुप्त हो जाती है अगर वर्षा अधिक होती है तो यह बुझ झील में गिरती है ।
इसकी लंबाई लगभग 17 किलोमीटर है ।
रूपारेल नदी
रूपारेल नदी का उद्गम अलवर के उदयनाथ से होता है ।
यह नदी भरतपुर में विलुप्त हो जाती है ।
भरतपुर में इस नदी पर मोती सागर बांध बनाया गया है ।
इस बांध के पीछे मोती सागर झील बनती है ।
इस झील को भरतपुर की जीवन रेखा कहा जाता है ।
इस झील में हरित शैवाल पाए जाते हैं ।
साबी नदी
साबी नदी का उद्गम स्थल जयपुर में शाहपुरा केसर की पहाड़ियों से होता है ।
और यह उत्तर की तरफ प्रवाहित होती है ।
यह राजस्थान में दो जिला (जयपुर ,अलवर ) मे प्रवाहित होती है ।
यह नदी गुरुग्राम (गुड़गांव )के पटौदी (हरियाणा ) मे लुप्त हो जाती है ।
जयपुर के अंदर साबी नदी पर जोधपुरा सभ्यता स्थित है ।
जोधपुरा सभ्यता से हाथी दांत के प्रमाण या साक्ष्य मिले है ।
साबी नदी की लंबाई लगभग 185 किलोमीटर है ।
नफजगढ नाला के नाम से जानी जाती है ।
यह राजस्थान की एकमात्र ऐसी नदी है जो उत्तर की ओर प्रवाहित होती है ।
अभीकेंद्रीय अपवाह तंत्र
ऐसा अपवाह तंत्र जहां चारों ओर से अंदर की ओर नदियां आती है अभीकेंद्रीय अपवाह तंत्र कहलाता है ।
अभी केंद्रीय अपवाह तंत्र का मुख्य उदाहरण सांभर झील है ।
मनोहरपुरा की पहाड़ियों से निकलने वाली मेंथा (मेढा)नदी सांभर झील में गिरती है ।
मेंथा नदी सांभर झील में सर्वाधिक नमक लेकर आती है ।
मेंथा लूनी नदी की लंबाई लगभग 747 मीटर है ।
किशनगढ़ की पहाड़ियों से रुपनगढ़ नदी निकलती है और यह सांभर झील में गिरती है ।
खंडेला नदी सीकर से आती है और सांभर झील में गिरती है ।
खारी नदी भी सांभर झील में गिरती है ।
सांभर राजस्थान का सबसे निम्नतम भाग है ।
सांभर झील भारत के कुल नमक का 8.7 % नमक का निर्माण करती है ।
यह राजस्थान की रामसर साइट है ।
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