सिंचाई व पेयजल

राज्य की प्रमुख वृहद सिंचाई परियोजनाएं





राजस्थान राज्य में मरुस्थलीय भाग होने के कारण तथा वर्षा की अनियमितता व पेयजल की समस्या होने कारण राजस्थान में सिंचाई परियोजनाएं चलाई गई।
राजस्थान की कुल जनसंख्या का लगभग 62% भाग कृषि कार्य से जुड़ा हुआ है। भारतीय कृषि को मानसून का जुआ भी कहा जाता है राजस्थान भारत में सबसे कम वर्षा 58% से भी कम जो कि 57.51 सेमी  वर्षा राजस्थान में होती है।
राज्य में सिंचाई के प्रमुख स्त्रोत कुएँ , नलकूप, नेहरें व तालाब है। कुल सिंचित का लगभग 67 से 70% भाग कुओं व नलकूपों द्वारा, लगभग 23 से 27% भाग नेहरों द्वारा , 1 से 2% भाग तालाबों द्वारा व शेष 1% भाग अन्य साधनों द्वारा सिंचित है।

राज्य में सर्वाधिक सिंचाई वाला जिला श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ है।

राज्य में न्यूनतम सिंचाई जिला राजसमंद है ।

जिलों में सिंचित क्षेत्र के प्रतिशत के आधार पर चूरू में सबसे कम सिंचित क्षेत्रफल है । फसलों में सर्वाधिक सिंचित क्षेत्र क्रमश: गेहूं , राई , सरसों व कपास का है ।

वर्ष 2014-15 में राज्य में सकल सिंचित क्षेत्र 101.71 लाख हेक्टेयर व वास्तविक सिंचित क्षेत्र 78.82 लाख हेक्टेयर था ।

इंदिरा गांधी नहर परियोजना

यह राजस्थान की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना है ।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य सतलज व व्यास नदियों के जल से राजस्थान को आवंटित 8.6 MAF पानी में से 7.59 MAF पानी का उपयोग कर पंचमी राजस्थान में सिंचाई व पेयजल उद्देश्यो की पूर्ति करना है।

इस परियोजना की आधारशिला 31 मार्च 1958 को तत्कालीन गृह मंत्री श्री गोविंद सिंह बल्लभ पंत द्वारा रखी गई।

11 अक्टूबर 1961 को उप राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा प्रथम बार नोरंगदेसर वितरिका से पानी छोड़ा गया।

इस नहर का उद्गम पंजाब में फिरोजपुर के निकट सतलज, व्यास नदी के संगम पर बने हरिके बैराज से है। इसकी कुल लंबाई 449 किलोमीटर है l जिसमें 204 किलोमीटर की लंबी फीडर व 445 किलोमीटर लंबी मुख्य नहर है।

राजस्थान में नहर का प्रारंभ मसीतावली (हनुमानगढ़) से होता है

इसे मरुस्थल की मरू गंगा व मरुस्थल की जीवन रेखा भी कहा जाता है ।

मरुस्थलीय जिले पाली व जालौर को छोड़कर अन्य सभी 10 जिलो में सिंचाई व पेयजल उपलब्ध करवाती है ।

यह परियोजना 6 जिलों में सिंचाई व पेयजल दोनों ही सुविधाएं उपलब्ध कराती है (श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर)।
4 जिलों में केवल पेयजल उपलब्ध करवाती है ( झुंझुनू, सीकर, नागौर, बाड़मेर)।

इसने से 19.63 लाख हेक्टेयर सिंचाई का लक्ष्य रखा गया है।

राजस्थान में फीडर की लंबाई 34 किलोमीटर है ।

इस परियोजना से सन 1961 में सिंचाई  प्रारंभ हो गई थी ।

इस नहर की प्रेरणा गंग नहर से ली गई है ।

2 नवंबर 1984 से इससे इंदिरा गांधी नहर कहा जाने लगा इससे पहले राजस्थान नहर के नाम से जाना जाता था।

इस परियोजना की रूपरेखा प्रथम बार बीकानेर रियासत के मुख्य सिंचाई अभियंता ( इंजीनियर )कंवर सेन द्वारा 1948 में प्रस्तुत की गई ।

कंवर सेन का लेख ( पुस्तक ) :-बीकानेर जल की आवश्यकता ।

 प्रशासनिक दृष्टि से योजना को दो चरणों में बांटा गया है।

प्रथम चरण

204 किलोमीटर लंबी इंदिरा गांधी फीडर मसीतावाली हैड से पुगल हैड तक।189 किलोमीटर लंबी मुख्य नहर तथा उससे संबंधित 5. 86 लाख हेक्टेयर है। सिंचित क्षेत्र के लिए 3454 किलोमीटर वितरण प्रणाली के कार्य सम्मिलित है। मुख्य नहर का कार्य वर्ष 1986 में पूर्ण किया जा चुका है।

द्वितीय चरण

इंदिरा गांधी नहर परियोजना के द्वितीय चरण का कार्य वर्तमान में चल रहा है । इस चरण में मुख्य नहर की लंबाई 556 किलोमीटर पुगल हैड से मोहनगढ़ (जैसलमेर) तक। द्वितीय चरण के अंतर्गत वितरण प्रणाली की कुल प्रस्तावित लंबाई 5959 किलोमीटर एवं प्रस्तावित क्षेत्र 10.71 लाख हेक्टेयर है।
मुख्य नहर का निर्माण कार्य दिसंबर 1986 में पूर्ण कर लिया था तथा मुख्य नहर के अंतिम सौर मोहनगढ़ जैसलमेर तक 1 जनवरी 1987 को पानी प्रवाहित कर दिया गया था। 

इंदिरा गांधी परियोजना की पेयजल परियोजनाएं

राजीव गांधी लिफ्ट नहर

जोधपुर शहर व रास्ते के गांवों को पानी उपलब्ध कराने हेतु आरंभ योजना इसका नाम परिवर्तित कर राजीव गांधी जलोत्थन नहर परियोजना कर दिया है ।

आपणी योजना (गंधेली साहबा परियोजना)

हनुमानगढ़,चूरू व झुंझुनूं ज़िलों में जर्मनी की KFW कंपनी के द्वारा वित्तीय सहयोग से आरंभ योजना।

कंवर से लिफ्ट परियोजना

5 जुलाई 1968 को आरंभ । मुख्य नहर के बिर्धवाल हेड से निकली इस नहर की लंबाई 151.64 किलोमीटर है।

नहर प्रणाली पर स्थित 7 लिफ्ट नहरे :-

लिफ्ट नहर                           लाभान्वित जिले 

चौधरी कुंभाराम लिफ्ट नहर      हनुमानगढ़, चूरू, बीकानेर,                                                    झुंझुनू 

कंवर सैन लिफ्ट नहर                बीकानेर एवं गंगानगर 
(सबसे लंबी)

पन्नालाल बारूपाल लिफ्ट नहर   बीकानेर ,नागौर

वीर तेजाजी लिफ्ट नहर              बीकानेर
(सबसे छोटी)

डॉक्टर करणी सिंह लिफ्ट नहर   जोधपुर व बीकानेर

गुरु जंभेश्वर लिफ्ट नहर             जोधपुर, बीकानेर व जैसलमेर

जय नारायणव्यास लिफ्ट नहर    जैसलमेर, जोधपुर


इंदिरा गांधी ने से निकलने वाली 9 मुख्य शाखाएं :-

शाखा                             लाभान्वित जिले

रावतसर शाखा                   हनुमानगढ़ (नहर के बायी तरफ )

सूरतगढ़ शाखा                    गंगानगर

अनूपगढ़                            गंगानगर

पूगल                                बीकानेर

दातोर                                बीकानेर

बिसलपुर                           बीकानेर

चारणवाला                        बीकानेर व जैसलमेर

शहीद बीरबल                    जैसलमेर

सागरमल गोपा                   जैसलमेर


तीन शाखांए है :-
लीलवा, वीगा (जैसलमेर) ,बाबा रामदेव उपशाखा (बाड़मेर)

इंदिरा गांधी नहर की समस्याओं का निदान

समस्याएं

सेम (जलभराव)की समस्या :- नहरी जल रिसाव व अत्यधिक सिंचाई के कारण भू जल स्तर के ऊपर आ जाने से भूमि का दलदली हो जाना ही सेम समस्या है ।

भूमि में लवणीयता क्षारीयता की वृद्धि ।

वातावरणीय कारकों में आए तीव्र बदलाव से शुष्क क्षेत्रीय वनस्पति एवं जैव विविधता को खतरा ।

पारिस्थितिकीय परिवर्तन के कारण उत्पन्न समस्याएं ।

निदान -सेम की समस्या हेतु

दलदली क्षेत्र में पानी की निकासी हेतु ड्रिप ड्रेनेज कैनाल का निर्माण ।

रिसाव को न्यूनतम करने हेतु नहर की मरम्मत व लाइनिंग कार्य।

बूंद बूंद सिंचाई पद्धति व फव्वारा सिंचाई पद्धति का प्रयोग।

नेहर के दोनों और संघन वृक्षारोपण ।

सिंचाई योग्य क्षेत्र में वृद्धि ।

लवणीयता क्षारियता को दूर करने हेतु रॉक फास्फेट,जिप्सम ढैंचा की हरी खाद व चुने का उपयोग ।

फलों के वृक्षों की कतारों के मध्य सेवण घास रोपण ।

जैविक विविधता के संरक्षण हेतु अभ्यारण का विकास |

गंग नहर परियोजना (बीकानेर नहर )

गंग नहर परियोजना राज्य की प्रथम सिंचाई परियोजना है।

बीकानेर रियासत के महाराजा श्री गंगा सिंह जी द्वारा 1921 से 27 की अवधि में निर्मित ।आधारशिला 5 सितंबर 1921 को महाराज गंगा सिंह द्वारा रखी गई व उद्घाटन 26 अक्टूबर 1927 को वायसराय लार्ड इरविन द्वारा शिवपुर हैडवर्क्स पर ।

गंग नहर का उद्गम फिरोजपुर पंजाब के निकट हुसैनीवाला में सतलज नदी से ।

चूने से निर्मित मुख्य बीकानेर नहर 129 किलोमीटर (प्रथम 112 किलोमीटर पंजाब में तथा 17 किलोमीटर राजस्थान शिवपुर श्रीगंगानगर तक ) लंबी है ।

नहर की सिंचाई की क्षमता 3. 08 लाख हेक्टेयर है।

लाभान्वित जिला श्रीगंगानगर

राजीव गांधी सिद्धमुख नहर सिंचाई परियोजना

इस परियोजना का शिलान्यास यूरोपीय आर्थिक समुदाय के सहयोग से 5 सितंबर 1989 को भीरानी गांव के समीप हुआ

इनका लोकापर्ण12 जुलाई 2002 को किया गया ।

लाभान्वित क्षेत्र :-हनुमानगढ़ जिले की नोहर व भादरा तहसील तथा चूरू जिले की राजगढ़ तहसील की कुल 113 गांव की 111498 हैक्टेयर कृषि भूमि ।

सिद्धमुख रतनपुरा वितरिका

योजना का प्रारंभ नाबार्ड के वित्तीय सहयोग से 1999 को हनुमानगढ़ जिले की भादरा तहसील से भीरानी गांव में हुआ ।

इस योजना से लाभान्वित क्षेत्र हनुमानगढ़ व चूरू जिले की 18350 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि में सिंचाई सुविधा।

नर्मदा नहर परियोजना

नर्मदा नहर में राजस्थान का हिस्सा 0.50 MAF

इसका उद्गम सरदार सरोवर बांध से 458 किलोमीटर गुजरात में तथा 74 किलोमीटर राजस्थान में ।

स्प्रिंकलर  (फवारा )सिंचाई पद्धति :इस पद्धति के प्रयोग वाली राज्य की पहली परियोजना ।

लाभान्वित जिला जालोर और बाड़मेर है ।

नर्मदा नहर परियोजना में निर्माणाधीन लिफ्ट परियोजनाए :-सांचौर लिफ्ट नहर,भादरेडा लिफ्ट नहर, पनोरिया लिफ्ट नहर ।

बिसलपुर परियोजना

इसका प्रारंभ 1988 से 89 में हुआ ।

570 मीटर लंबा एवं 39.5 मीटर ऊंचा बांध ।

टोडाराय सिंह (टोंक) के पास बीसलपुर गांव में बनास नदी पर स्थित है।

इन परियोजना से लाभान्वित क्षेत्र जयपुर, अजमेर, केकड़ी, नसीराबाद, सरवाड़, ब्यावर, किशनगढ़ एवं रास्ते में आने वाले गांवों को पेयजल सुविधा व टोंक जिले के 256 गांव की 81800 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि को सिंचाई सुविधा।

बीसलपुर परियोजना हेतु आर्थिक सहायता नाबार्ड के ग्रामीण आधार ढांचा विकास कोष द्वारा

ईसरदा बांध परियोजना

ईसरदा गांव टोंक व सवाई माधोपुर जिले की सीमा पर बनास नदी पर स्थित है ।

लाभान्वित जिले जयपुर , टोंक एवं सवाई माधोपुर |

अन्य वृहद परियोजनाएं

भीखाभाई सागवाड़ा नहर

इस परियोजना में माही नदी पर माही साइफन का निर्माण कराकर भीखाभाई सागवाड़ा में (125 किलोमीटर लंबी) से डूंगरपुर सागवाड़ा में 21000 हेक्टेयर क्षेत्र के अतिरिक्त सिंचाई सुविधा उपलब्ध की जाएगी।

जाखम परियोजना

अनूपपुरा (प्रतापगढ़) में जाखम नदी पर निर्मित बाध ।परियोजना 1997 - 98 मै पूर्ण हुई ।
इस परियोजना से प्रतापगढ़ जिले के आदिवासी क्षेत्रों को सिचाई  सुविधा व पेयजल उपलब्ध होती है ।

गुडगांव नहर

वर्तमान में नेहर  का नाम 'यमुना लिंक नहर परियोजना' कर दिया गया है । इस नहर परियोजना के तहत यमुना जल समझौते में राजस्थान को आवंटित जल का  70% भाग उपयोग में लिया जाएगा इसे भरतपुर जिले में 33959 हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी 1885 में नहर का निर्माण कार्य पूरा हुआ।

भरतपुर नहर 

28 किलोमीटर लंबी इस नहर का निर्माण कार्य 1964 में पूर्ण हुआ।

यमुना जल सिंचाइ परियोजना

भरतपुर, झुंझुनू व चुरू जिले में सिंचाई हेतु।

यमुना रिवर बोर्ड

सरकार द्वारा यमुना समझौते की सुचारू क्रियान्वित के लिए 11 मार्च 1995 को यमुना रिवर बोर्ड का गठन किया गया।

घग्घर बाढ़ नियंत्रण परियोजना

घग्घर बाढ़ के पानी से जानमाल के नुकसान को बचाने के लिए सरकार द्वारा घग्घर परियोजना प्रारंभ  कर डाइवर्जन चैनल का निर्माण कार्य बुर्जी 0 से 158.7 तक किया गया ।

मनोहर थाना

झालावाड़ जिले के मनोहर थाना कस्बे के करीब परवन नदी पर प्रस्तावित ।

कालीसिंध

झालावाड़ जिले में कालीसिंध नदी पर प्रस्तावित योजना ।

माही उच्च स्तरीय नहर परियोजना

माही नदी पर प्रस्तावित ।

अन्य मध्यम परियोजनाएं

भीमसागर परियोजना झालावाड़ जिले में ।

अरवाड़ परियोजना भीलवाड़ा जिले में ।

सुकली -भीलवाड़ा प्रयोजना सिरोही व सुकली नदी पर ।

कालीसिंध परियोजना करौली जिले में ।

पीपल्दा लिफ्ट परियोजना सवाई माधोपुर चंबल नदी पर ।

सूरवाल परियोजना सवाई माधोपुर मे।

वागन परियोजना चित्तौड़गढ़ में ।

छाकड़ परियोजना नैनवा बूंदी में चाकर नदी पर।

आलनीया परियांजना कोटा में।

कराई , हथियादेह परियोजना बारा में ।

गोपालपुरा कोटा में ।

हिडलोत परियोजना बांरा जिले में ।

प्रमुख पेयजल परियोजनाएं व कार्यक्रम

मानसी वाकल परियोजना

गोराना गांव (झाडोल तहसील)उदयपुर में संचालित परियोजना राज्य सरकार हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड की 70:30 भागीदारी की साझी परियोजना है ।
परियोजना के तहत देवास बांध अलीगढ़ बांध से पानी 4.7 किलोमीटर लंबी सुरंग के माध्यम से पिछोला झील तक लाया जाएगा 7 जून 2006 को निर्मित देश का सबसे लंबी जल सुरंग है इससे पहले देवास परियोजना में 2.1 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाई गई थी।

देवास द्वितीय परियोजना

इस योजना के तहत साबरमती की सहायक नदी पर झाडोल तहसील के आकोदड़ा गांव में अकोदरा बांध और गिरवा तहसील में  मादड़ी गांव में मादड़ी बांध बनाया गया है। इस परियोजना का नाम बदलकर मई 2011 में 'मोहनलाल सुखाड़िया देवास जल परियोजना ' कर दिया गया है। इस योजना में 11.05 किलोमीटर लंबी सुरंग द्वारा पानी पिछोला झील तक लाया जाएगा। पूर्ण हो जाने पर यह देश की सबसे लंबी जल सुरंग होगी ।

रैणी बांध

अलवर जिले में स्थित है ।

चिकलवास बांध

राजसमंद जिले में 1997 में निर्मित ।

पेयजल परियोजना राजगढ़ , झालावाड़

20 अक्टूबर 2015 को स्वीकृत राजगढ़ बांध का झालावाड़ में निर्माण होगा ।

रेवा पेयजल परियोजना

24 दिसंबर 2014 को लोकापर्ण ।
इससे लाभान्वित जिला झालावाड़ है

सिंचाई पेयजल एवं जल प्रबंधन के लिए अन्य प्रयास

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना :- के तहत कोटा , बूंदी , दोसा , सवाई माधोपुर , अजमेर , बारा , बाड़मेर , बीकानेर , शुरू . डूंगरपुर , बांसवाड़ा , भीलवाड़ा , चित्तौड़गढ़ , झुंझुनू , पाली, राजसमंद एवं सिरोही जिला में अकाल प्रभावित क्षेत्रों हेतु योजना केंद्र और राज्य के मध्य 60:40 I

राजस्थान जल क्षेत्र पूनः सरचना परियोजना :-योजना का आरंभ 21 मई 2002 को किया गया इस योजना में 8 बांधों पार्वती , गंभीरी , अलनिया ,मोरेल , गुड्डा और नंद समंद , जगर बांध का सुदृढीकरण व 89 सिंचाई प्रणालियों कि पुनरुद्धार किया ।

राजस्थान लघु सिंचाई सुधारीकरण परियोजना :-31 मार्च 2005 से आरंभ यह योजना जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग द्वारा वित्त पोषित है ।  परियोजना के तहत 26 जिलों में 518 लघु सिंचाई योजनाओं का पुनरुद्धार किया गया है ।

वर्षा जल संचय योजना :-7 नवंबर 2004 को सीकर में आरंभ ।

यूरोपियन यूनियन राज्यसभागीता कार्यक्रम :-राजस्थान सरकार को जल सुधार कार्यक्रम में सहायता प्रदान करने हेतु यूरोपियन यूनियन द्वारा 11 अगस्त 2006 को हस्ताक्षर किए गए यूरोपियन यूनियन के साथ समझौता दिसंबर 2017 तक है , राज्य में 11 जिलों में लागू ।

सिंचाई प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान , कोटा :-अगस्त 1984 में संयुक्त राज्य अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी के सहयोग से स्थापित । 

प्रोजेक्ट जलधारा :- चुरू और आसपास के इलाके में पानी की उपलब्धता हेतु स्टील किंग लक्ष्मी निवास मित्तल द्वारा आरंभ योजना ।

राजस्थान फ्लोरोसिस नियंत्रण कार्यक्रम :-राज्य के भू जल में फ्लोराइड की मात्रा काफी अधिक है इसमें दाता व हड्डियो का फ्लोरोसिस हो जाता है फ्लोरोसिस से प्रभावित नागौर अजमेर क्षेत्र के गांव की पट्टी का नाम कुबड़ पट्टी पड़ गया है इस हेतु राज्य सरकार ने फ्लोरोसिस समस्या के स्थाई समाधान के लिए यूनिसेफ की सहायता से चरणबद्ध फ्लोरोसिस नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया ।

अपनी योजना : -समस्त व्रत पेयजल योजनाओं के संचालन हेतु पद्धति ।
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