राजस्थान के वन

 राजस्थान के वन

भारत में सर्वप्रथम 1984 में वन नीति घोषित की गई स्वतंत्रता के पश्चात 1952 में राष्ट्रीय वन नीति घोषित की गई । इस वन नीति के अनुसार देश की कुल भूमि की 33% भाग पर वन होने चाहिए। सन 1950 में राज्य की कुल भौगोलिक क्षेत्र के 13% भाग पर वन थे जबकि वर्तमान में राज्य के 9.57% भाग पर वन है।

1972 में राष्ट्रीय वन्यजीव नीति बनाई गई। विश्व का प्रथम पर्यावरण सम्मेलन 1972 में स्वीडन में विश्व का प्रथम पर्यावरण सम्मेलन बनाया गया।

अप्रैल 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर योजना चालू किया गया। 

राज्य में अधिकतर वन दक्षिणि व दक्षिणी पूर्वी भाग में पाए जाते हैं, देश में सर्वाधिक वन मध्य प्रदेश में पाए जाते हैं।

18 फरवरी 2010 को राजस्थान द्वारा राज्य वन नीति बनाई गई।

1950 में राजस्थान में वन विभाग की स्थापना की गई।

1953 में राजस्थान राज्य वन अधिनियम लाया गया।

वन रिपोर्ट 2015 के अनुसार राज्य में अत्यंत संघन वन क्षेत्र 76 वर्ग किलोमीटर, सामान्य संघन वन क्षेत्र 26 वर्ग किलोमीटर व खुले वन क्षेत्र 11669 वर्ग किलोमीटर है।

राज्य में अभी लिखित रिकॉर्ड के अनुसार 32737 वर्ग किलोमीटर व 9 .57% भाग पर वन पाए जाते है ।
क्षेत्रफल में सर्वाधिक वन वाले जिले :-
उदयपुर2757 वर्ग किलोमीटर
अलवर 1196वर्ग किलोमीटर
प्रतापगढ़ 1036 वर्ग किलोमीटर

प्रतिशत में सर्वाधिक वन वाले जिले : -
उदयपुर 23 .51%
प्रतापगढ़ 23.33 %
सिरोही 17.76 %

क्षेत्रफल में न्यूनतम वन वाले जिले :-
चुरु 82 वर्ग किलोमीटर
हनुमानगढ़
जोधपुर

प्रतिशत में न्यूनतम वन वाले जिले :
जोधपुर  0.47%
चुरू  0.69%
नागौर 0.83 %


राज्य में वन 4 .86% है ,1672 .56 वर्ग किलोमीटर में वन पाए जाते हैं ।
राज्य में वनावरण 2.37%है , 8122 वर्ग किलोमीटर में वनावरण ।
कुल वन 7.22% है ,सभी क्षेत्र 24741 वर्ग किलोमीटर मैं वन व वनावरण पाए जाते हैं ।

राजस्थान में 16 वी द्विवार्षिक वन रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 16 जिले ऐसे है जहां वनों में में वृद्धि हुई है और 13 जिलों में वनों में ऋणात्मक वृद्धि (कमी) हुई है , तथा 4 जिलों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है :-- 1. चुरु 2. करौली 3. दौसा 4. धोलपुर
 
16 वी द्विवार्षिक वन रिपोर्ट के अनुसार 54 . 51 वर्ग किलोमीटर वनो  में वृद्धि हुई है ।
वनों में सर्वाधिक वृद्धि वाले जिले :-बाड़मेर 16 वर्ग किलोमीटर
2.जैसलमेर 12 वर्ग किलोमीटर 3.डूंगरपुर 11 वर्ग किलोमीटर

वनों में सर्वाधिक कमी होने वाले जिले :-
1.उदयपुर 6.46 वर्ग किलोमीटर 2.प्रतापगढ़ 6 .9 वर्ग किलोमीटर 3.झालावाड़ 3 .42 वर्ग किलोमीटर । 

राजस्थान में झाड़िया लगभग 4760 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई जाती है ।और प्रतिशत के अनुसार 1.39% है
सर्वाधिक झाड़ियां 1.पाली 2.जयपुर 3.करौली में पाई जाती है।
न्यूनतम झाड़ियां :- 1.हनुमानगढ़ 2.श्रीगंगानगर 3. चूरू

राजस्थान में सघन वन 0. 02%
मध्य सघन वन 1.27%
खुले सघन वन 3.57%
राजस्थान में कुल सघन वन 4.86%

वनों का प्रशासनिक वर्गीकरण

प्रशासनिक वर्गीकरण के आधार पर वनों को तीन भागों में बांटा गया है :-
1.आरक्षित वन
2.सरक्षित या रक्षित वन
3.अवर्गीकृत वन

आरक्षित वन :

वे वन प्रदेश जहां समस्त प्रकार की मानवीय गतिविधियों को पूर्ण रूप से प्रतिबंध किया गया हो उसे आरक्षित वन कहते हैं ।
यह वन 38 .11 प्रतिशत भाग पर पाए जाते हैं ।

सरक्षित वन या रक्षित वन :

वे वन प्रदेश जहां कुछ मानवीय क्रियाकलापों को छूट दी गई है उसे सरक्षित वन का जाता है ।
यह वन लगभग 55 .64 प्रतिशत भाग पर पाए जाते हैं ।

अवर्गीकृत वन :

विभिन्न प्रदेशों जो सरक्षित व आरक्षित वन में उल्लेखित नहीं है उसे अवर्गीकृत वन कहा जाता है ।
यह वन लगभग 26.25% भाग पर पाए जाते हैं ।

जलवायू की दृष्टि से मुख्य रूप से वनों को 5 भागों में बांटा गया है : -

शुष्क मरुस्थलीय वन :

राज्य के 6.26 प्रतिशत भाग पर पाए जाते हैं ।

जहां वर्षा 30 सेमी से कम होती है ।

यहां कटीली झाड़ियां व कटीले वृक्ष पाए जाते हैं ।

यह राजस्थान के पश्चिमी भाग में पाए जाते हैं ।

जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर में मुख्य रूप से पाए जाते हैं।

इसमें नागफनी , खेजड़ी , बबूल , कैक्टस , थोर , कुंमट , रोहिडा आदि वृक्ष पाए जाते हैं ।

जैसलमेर में लाठी सीरीज क्षेत्र में सेवन घास उपलब्ध है ।

अर्ध शुष्क उष्णकटिबंधीय धोक वन :

यह राज्य के 58 .11 प्रतिशत भाग पर वन पाए जाते हैं ।

30 से 60 सेमी वार्षिक वर्षा वाला क्षेत्र ।

राज्य में सर्वाधिक यही वन है ।

यह वन अरावली के पश्चिम में पाए जाते हैं ।

यह वन नागौर, झुंझुनू, चूरू,, सीकर, पाली, जालौर, जोधपुर आदि जिलों में पाए जाते हैं ।

मुख्य वृक्ष खेजड़ी, रोहिडा, धोकड़ा, देसी बबूल आदि वृक्ष पाए जाते हैं ।

उष्णकटिबंधीय शुष्क या मिश्रित पतझड़ वन

राज्य में 28.38 प्रतिशत भाग पर ये वन पाए जाते हैं ।

50 से 80 सेमी वार्षिक वर्षा वाला क्षेत्र I

पूर्वी मैदानी भाग व हाडोती के भाग में वन पाए जाते हैं ।

यह वन जयपुर, दोसा, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, टोंक, बूंदी, बांरा, झालावाड़ जिलों में अधिक पाए जाते हैं I

मुख्य वृक्ष प्लास, धोकड़ा, बबूल, आम,बरगद, सालर, खैर, बांस, शीशम ।

शुष्क सागवान वन :

राज्य के वन में लगभग 6.86% भाग रखता है ।

75 से 110 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उपलब्ध है ।
ये वन राज्य के दक्षिणी भाग में पाए जाते हैं ।

यह वन बांसवाड़ा, डूंगरपुर दक्षिणी उदयपुर प्रतापगढ़ आदि ज़िलों में पाए जाते हैं ।

इसमें मुख्य वृक्ष सागवान, महुआ, बाँस, तेंदूआदि वृक्ष पाए जाते हैं ।

उपोष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन :

यह राज्य के वनों में 0.38 प्रतिशत भाग रखता है ।

यह 150 सेमी से अधिक वार्षिक वर्षा व ऊँचाई वाले क्षेत्रों में उपलब्ध है ।

के सर्वाधिक जैव विविधता वाला वन है ।

यह सिरोही के माउंट आबू प्रदेश में पाए जाते हैं ।

इस वन में सिरस,बॉस, बेल, जामुन आदि वृक्ष पाए जाते हैं ।

डी के लपटेरा आबू एसिस (अम्बरतरी ) काश विश्व में केवल यहीं पाई जाती है ।

यह सबसे घने वन है ।

अन्य विशेषताएं :

खेजड़ी



राज्य का राज्य वृक्ष 31 अक्टूबर 1998 को का दर्जा दिया गया

राज्य का कल्पवृक्ष

राजस्थान का गौरव

खेजड़ी को शमी वृक्ष भी कहते हैं ।

वृक्ष सर्वाधिक शेखावटी प्रदेश में होता है ।

सर्वाधिक जिलों में यह नागौर जिले में होती है ।

खेजड़ी के वृक्ष के नीचे गोगाजी के थान बनाए जाते हैं ।

खेजड़ी का वैज्ञानिक नाम प्रोसीपीस सिनरेरिया ।

स्थानीय भाषा में इसे जांटी , शमी वृक्ष के नाम से जाना जाता है।
विजयदशमी/दशहरे पर इसकी पूजा की जाती है ।

1991 में एक ऑपरेशन चलाया गया जिसका नाम खेजड़ा ऑपरेशन रखा गया ।

रोहिड़ा



राज्य का राज्य वृक्ष ।

रोहिडा को राज्य का सागवान कहां जाता है ।

रोहिडा के फुल को राज्य पुष्प का दर्जा दिया जाता है।

राज्य की मरू शोभा के नाम से भी जाना जाता है , इसके मार्च-अप्रैल में फूल आते हैं ।

इसका वैज्ञानिक नाम है :- टिकूमेला आडलेता

इसकी लकड़ी ईंमारती है ।

बबूल



इजराइल से 1970 -80 के दशक में लाया गया ।

इसको मरुस्थल की रोकथाम के लिए लाया गया I

यह वृक्ष भूमि को बंजर बना देता है ।

तेंदू




इस वृक्ष की पत्तियों से बीड़ी बनाई जाती है ।

यह सर्वाधिक प्रतापगढ़ में होता है।

टिमरू के नाम से पत्तियां जानी जाती है ।

यह वर्षा ऋतु में काला वृक्ष हो जाता है ।

1970 में इसका राष्ट्रीयकरण किया गया ।

महुआ


महुआ वृक्ष को आदिवासियों का कल्पवृक्ष कहा जाता है ।

डूंगरपुर बांसवाड़ा में यह सर्वाधिक होता है ।

यह सीता माता अभ्यारण में पाया जाता है इस वृक्ष में उड़न गिलहरी रहती है ।

आदिवासी लोग इस वृक्ष से शराब बनाते हैं जिसे मावड़ी नाम से जाना जाता है ।

इसका वैज्ञानिक नाम मधुकालोगोकोलिया ।

खेर वृक्ष



सर्वाधिक उदयपुर में ।
कत्थोड़ी जनजाति द्वारा खैर वृक्ष के साल से कत्था बनाती है ।

प्लास वृक्ष


इस वृक्ष को ढाक या खाकरा वृक्ष कहते हैं ।

यह सर्वाधिक राजसमंद जिले में होता है ।

इस  वृक्ष को जंगल की ज्वाला कहते हैं ।

इसका वैज्ञानिक नाम ब्यूटीया मोनोस्पर्मा ।

बाँस

यह एक घास है ।यह सबसे लंबी घास है ।

15वीं द्विवार्षिक वन रिपोर्ट में इसे घास क्षेत्रो में रखा गया ।

यह सर्वाधिक बांसवाड़ा जिले में होता है ।

इसे आदिवासियों का हरा सोना कहा जाता है ।

सालन वृक्ष

यह सवाई माधोपुर , उदयपुर में पाए जाते हैं ।

वृक्ष डिब्बे बनाने के उपयोग में आते हैं ।

चंदन वृक्ष



भारत में सर्वाधिक कर्नाटक में होता है ।

यह राजस्थान में दो स्थानों पर होता है :खमनोर व देलवाड़ा । 
थोड़ी बहुत करौली में होते है ।

सेवण घास

इसका वैज्ञानिक नाम लीजुरीयस सीड्रीकस

यह जैसलमेर में पाई जाती है ।

खस घास

भरतपुर, सवाई माधोपुर, टोंक में घास पाई जाती है ।

यह घास बहुत सुगंधित होती है तथा यह इत्र बनाने में काम आती है ।

बूर घास

यह घास मुख्य रूप से बीकानेर में होती है ।

अन्य घास

अंजन, डाब, धामण, करड, माचिया ।
मासिया घास सर्वाधिक ताल छापर अभ्यारण में पाई जाती है ।


विश्व वानिकी दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है ।
खेजड़ली दिवस 22 सितंबर को मनाया जाता है ।
विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को प्रतिवर्ष मनाया जाता है ।
वन महोत्सव 1 से 7 जुलाई तक मनाया जाता है । यानी की महीने के जुलाई महीने के प्रथम सप्ताह में ।
वन्यजीव महोत्सव 1 से 7 अक्टूबर या अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में मनाया जाता है ।
22 मार्च को जल दिवस मनाया जाता है ।
22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है ।
22 मई को जैव विविधता दिवस मनाया जाता है ।
9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है ।
16 सितंबर को औजोन मनाया जाता है ।
18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है ।

योजनाएं

मरुस्थल वृक्ष आवरण योजना 1970 में शुरू की गई '
राज्य आजीविका कार्यक्रम 1980 से 2016 तक चलाया गया ।

हरित राजस्थान योजना सन 2009 को शुरू की गई जो डूंगरपुर से की गई ।इस योजना में 16 वृक्ष 1 दिन में लगाए गए ।

रुख भायला नारा सन 1986 में बगदरी गांव डूंगरपुर से राजीव गांधी के द्वारा यह नारा दिया गया।

अरावली वृक्ष आवरण योजनाएं : -यो योजना 1994 में लागू की गई यह राज्य में 16 जिलों में लागू की गई ।


राज्य वानिकी व जैव विविधता योजना :

2003 में शुरू की गई जापान के JICKA के सहयोग से ।


राजसमंद के पिपलांत्री गांव में बेटी के जन्म पर 101 वृक्ष लगाए जाते हैं ।

बीड़ा :- घास वाली भूमि (भूरट)

औरणः-धार्मिक से जुड़ा वन प्रदेश ।

देव वनः - कोटा जिले में सर्वाधिक वन होते हैं ।यह राज्य का पहला सरफ वन है ।

बाड़मेर के चौहटन क्षेत्र में गोद का बहुत अधिक उत्पादन किया जाता है ।मुसलमान व मेघवाल जाति के द्वारा गोंद एकत्रित किया जाता है ।

झालाणा वन क्षेत्र जयपुर में है ।
कुलिस स्मृति वन झालाणा (जयपुर) में है ।
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