राजस्थान की मृदा
राजस्थान की मृदा / मिट्टी
राजस्थान भारत में सर्वाधिक बंजर भू-भाग वाला राज्य है यह भारत की कुल बंजर भूमि का लगभग 16% भाग रखता है तथा 105 लाख हेक्टेयर भूमि बंजर है ।
राजस्थान में सर्वाधिक बंजर भूमि वाला जिला जैसलमेर है ।
डी जोशी महोदय के अनुसार राजस्थान की मिट्टियों को 10 भागों में बांटा गया है ।
राजस्थान कृषि विभाग के अनुसार राजस्थान की मिट्टीयों को 14 भागों में बांटा गया है ।
राजस्थान में सबसे ज्यादा मिट्टी रेतीली है।👇
राजस्थान में मिट्टियों का सामान्य वर्गीकरण :-
रेतीली / बलुई मिट्टी
यह .राजस्थान में सर्वाधिक क्षेत्र में पाई जाती है ।
यह शुष्क प्रदेश क्षेत्र में जैसलमेर,बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, नागौर, चूरू, झुंझुनू जिलों में पाई जाती है ।
इस मिट्टी के मोटे कण होते हैं तथा नमी धारण करने की नियम क्षमता होती है ।
नाइट्रोजन एवं कार्बनिक लवणों की अल्पता तथा कैल्सियम लवणों की अधिकता पाई जाती है ।
खरीफ की फसलों के लिए उपयुक्त ।
फसलः - बाजरा, मोठ तथा मूंग की फसल हेतु उपयुक्त ।
पवनों के द्वारा इस प्रदेश में मिट्टी का अपरदन होता है ।
सिरोजम मिट्टी/भूरी रेतीली मिट्टी
मिट्टी अरावली के पश्चिम भाग में पाई जाती है ।
यह मिट्टी वागड़ प्रदेश में सर्वाधिक पाई जाती है ।
नागौर, पाली, जालौर, चूरू व झुंझुनूं में पाई जाती है।
पीले व हल्के भूरे रंग की मिट्टी है।
नाइट्रोजन व जीवाश्म की कमी के कारण अनउपजाऊ मिट्टी है।
पर्वतीय मिट्टी
अरावली प्रदेश में पाई जाती है ।
उदयपुर राजसमंद सिरोही अजमेर अलवर पाली कोटडी जिला में पाई जाती है ।
संहतर का आभावपाया जाता है ।
मिट्टी की गहराई बहुत कम होती है ।
जीवाश्म की मात्रा सामान्य होती है ।
समोच्च कृषि जाती है ।
इस मिट्टी में पौधे की पत्तियां व वनस्पति को चड़ने व गलानेकी क्षमता होती है ।
इस मिट्टी में मक्का की फसल बोई जाती है l
लाल लोमी मिट्टी
लोह ऑक्साइड के कारण इसका रंग लाल होता है ।
इस मिट्टी के बारीकी कण होते है ।
नमी धारण करने की अद्भुत क्षमता होती है ।
नाइट्रोजन फास्फोरस एवं कैल्शियम लवणों की अल्पता पाई जाती है ।
पोटाश एवं लौह तत्व की अधिकता के कारण मक्का की फसल के लिए उपयुक्त ।
फास्फेटिक चट्टानों के उपलक्ष में उसका निर्माण होता है ।
काली मिट्टी
यह राज्य के दक्षिणी पूर्वी भाग हाडोती के पठारी क्षेत्र में पाई जाती है ।
कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़ जिला में काली मृदा पाई जाती है ।
इस मिट्टी के बारीकी कण होने के कारण नमी धारण करने की उच्च क्षमता ।
फास्फेट नाइट्रोजन एवं जैविक पदार्थों की अल्पता पाई जाती है।
कैल्शियम व पोटाश की मात्रा में अधिकता ।
यह स्वतःजुदाई वाली ,कपासी आदि नामों जानी जाती है ।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे सर्वोजन मिट्टी के नाम से जानी जाती है ।
विश्वव्यापी वर्गीकरण में यह मिट्टी वर्टिसोल कहलाती है।
इस मिट्टी को मेवाड़ में लीलड़ी, सुकड़वी, करमोई, करमोन आदि नामों से जानी जाती है ।
जलोढ़ मिट्टी
जलोढ़ मिट्टी को दो भागों में बांटा जाता है :-
1. खादर मिट्टी :-यह नवीन मिट्टी है ।
2. बागर मिट्टी :- प्रिया पुरानी मिट्टी है जिसका निर्माण प्लीस्टोनी काल में हुआ ।
यह मिट्टी पूर्वी राजस्थान में पाई जाती है ।
यह राज्य के अलवर, भरतपुर, धौलपुर, जयपुर, टोंक, सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी आदि जिलों में पाई जाती है ।
यह राज्य की सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी है ।
यह मिट्टी नदियों के द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी है ।
फास्फेट एवं कैल्शियम तत्वों की कमी तथा नाइट्रोजन तत्वों बहुलता ।
जल धारण की पर्याप्त क्षमता व अत्यधिक उपजाऊ ।
यह मिट्टी चावल, गेहूं, गन्ना, कपास व तंबाकू के लिए प्रसिद्ध ।
इस मिट्टी को दोमट मिट्टी , कच्छारी मिट्टी भी कहते हैं l
मिश्रित लाल-काली मिट्टी
यह मिट्टी लालबाग काली मिट्टी के मध्य पाई जाती है ।
यह मिट्टी उदयपुर, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा एवं भीलवाड़ा जिलों में पाई जाती है ।
फास्फेट, नाइट्रोजन , कैल्शियम तथा कार्बनिक पदार्थों की अल्पता ।
कपास तथा मक्का की फसल हेतु उपयुक्त ।
भूरी मिट्टी
यह बनास नदी के प्रवाह प्रदेश में पाई जाती है ।
यह मिट्टी भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक, सवाई माधोपुर आदि जिलों में पाई जाती है ।
यह मिट्टी कपास, गन्ना, मक्का के लिए प्रसिद्ध है ।
बनास नदी का सर्वाधिक अफवाह प्रदेश भीलवाड़ा जिले में है ।
मिश्रित लाल पीली मिट्टी
यह मिटिलो ऑक्साइड की बहुलता के कारण लाल है ।
यह मिट्टी अजमेर, टोंक, सवाई माधोपुर, जोधपुर, राजसमंद, सिरोही में पाई जाती है ।
नाइट्रोजन ,कैल्शियम एवं कार्बनिक यौगिकों की अल्पता I
लवणीय मिट्टी
यह अनुभव मिट्टी है ।
लवणीय की अम्लीय व क्षारीय मात्रा को कम करने के लिए रॉक फास्फेट, जिप्सम, चूना पत्थर का उपयोग किया जाता है ।
गंगानगर, बीकानेर, बाड़मेर, जालौर, सवाई माधोपुर जिलों में यह मृदा पाई जाती है ।
मृदा का वैज्ञानिक वर्गीकरण
उपरोक्त दोनों वर्गीकरण के अतिरिक्त विश्व के समस्त मरदा वैज्ञानिकों का यह प्रयास रहा है कि मर्दा एक ऐसा वर्गीकरण हो जिसमें सभी देशों की मिट्टियों को सहजता में समाविष्ट किया जा सके। परिणाम स्वरुप अमेरिकी कृषि विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा कुछ वर्ष पूर्व एक नई पद्धति को अंतिम रूप दिया गया। पूर्ण निरीक्षण के बाद अब उसे विश्व के सभी प्रमुख मृदा वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकृत कर लिया गया है । इस नई पद्धति में मृदा की उत्पत्ति के कारकों को आवश्यकतानुसार महत्व देते हुए अधिक महत्व मृदा के मौजूदा गुणों को दिया जाता है इसलिए विभिन्न क्षेत्रों , देशों तथा प्रदेशों की मृदा को निम्न वर्गों में विभक्त किया जा सकता है : -
एरिडीसोल्स
यह वह खनिज मृदा है जो अधिकतर शुष्क जलवायु में ही पाई जाती है ।चूरू
चूरू सीकर झुंझुनू नागौर जोधपुर पाली और जालौर जिले में क्षेत्र में यह मर्दानी विस्तृत है । उप मृदाकण ऑरथिड है जिसके अंतर्गत कैंबोऑरथिड्स , कैल्सीऑरथिडस , सेलोरथिडस और पेलिऑरथिइसराजस्थान में पाए जाते हैं ।
अलफिसोल्स
जयपुर दोसा अलवर भरतपुर सवाई माधोपुर टोंक भीलवाड़ा चित्तौड़गढ़ बांसवाड़ा राज्य संबंध उदयपुर डूंगरपुर बूंदी कोटा 12 और झालावाड़ जिला में अधिकांश क्षेत्र में मुदाओं से ढंका है । अलफिसोल्स की प्रोफाइल मध्यम से लेकर पूर्ण विकसित तक होती है । इन मृदाओ मे ऑरजिलिक संस्तर अवश्यउपस्थित होते हैं जिनमें की ऊपरी सतह की तुलना में मटियारी मिट्टी का प्रतिशत मात्रा अधिक होती है ।स्काउट मर्दा करण केवल हेप्लुस्तालफस ही है जिसके अंतर्गत राज्य की अलफिसोल्स मृदा करण की सभी मृदाए आ जाती है ।
एंटिसोल्स
एंटिसोल्स ही एक ऐसा मृदा वर्ग है अंतर्गत भिन्न भिन्न प्रकार की जलवायु में स्थित मृदाओ का समावेश होता है । पंचमी राजस्थान के लगभग सभी जिलों मैं इस समूह की मृदाए पाई जाती है । इनका रंग प्राय हल्का पीला व भुरा होता है इसके दो उपमृदा कण होते हैं - सोमेंट्स और फ्लूवेन्टस । सामेन्ट्स के कई वृहत वर्ग है जिनमें से केवल टोरीसामेन्ट्स में राज्य की मृदाओंँ का समावेश होता है । फ्लूवेन्टस के दो वृहत वर्ग है -
1. टोरीफ्लूवेन्ट्स 2. उस्टीफ्लूवेन्ट्सजिनमें राज्य की कुछ मर्दाव का समावेश होता है ।
इनसेप्टिसोल्स
अर्ध शुष्क से लेकर आर्द्र जलवायु तक कहीं भी यह मृदाए पाई जा सकती है लेकिन शुष्क जलवायु में कभी नहीं पाई जाती है । यह मृदाएं सिरोही, पाली, राजसमंद, उदयपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ जिला में विस्तृत है । इनके अतिरिक्त इस किस्म की मृदाएं जयपुर, दोसा, अलवर, सवाई माधोपुर और झालावाड़ जिलों की जलोढ़ मृदा के मैदान में भी कहीं-कहीं पाई जाती है इस मृदाकणके एक वृहत वर्ग उस्टोक्रेप्टस के अंतर्गत राज्य की मृदा सम्मिलित हैं ।
वर्टीसल्स
यह मृदाएँ झालावाड़ बांरा, कोटा, बूंदी, जिला में अधिकतर क्षेत्रों में विस्तृत हैं इनके अंतर्गत कुछ क्षेत्र सवाई माधोपुर, भरतपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ जिलो में भी है इनमें अत्यधिक अनुपस्थित होने से मटियारी मृदाएँ भी सभी विशेषताएं वर्टिसोल्स में पाई जाती है वर्टिसोल्स के अंतर्गत राज्य में स्थित इस किस्म की सभी मृदाए आती है जो कई वृहत वर्गों में विभाजित है परंतु इनमें से पेल्युस्टर्टस और क्रोमस्टर्टरस् का राज्य में विशेष महत्व है।
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