राजस्थान के प्रतीक चिन्ह

 राजस्थान के प्रतीक चिन्ह

राज्य पक्षी

राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावण है -



गोडावण मूल अफ्रीकन पक्षी है ।

गोडावण को 21 मई 1981 को राज्य पक्षी का दर्जा दिया गया ।

भारत में सबसे ज्यादा गोडावण राजस्थान में पाए जाते हैं राजस्थान के अलावा गुजरात व महाराष्ट्र में भी पाए जाते हैं ।

राजस्थान में निम्न जिलो मे पाया जाता है -- -- -















गोडावण जैसलमेर का जिला शुभंकर है ।

गोडावण की हाइट लगभग 4 फीट होती है।

गोडावण के उपनाम - सोहन चिड़ी , मालमोरड़ी , गुदनमोर , चर्मीला पक्षी , धोरो का चीता आदि I

इंग्लिश में इसे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के नाम से जाना जाता है ।

वर्तमान में इसकी संख्या लगभग 128 है ।

तारामीरा व मूंगफली इसका प्रमुख भोजन है ।

5 जून 2013 मे जैसलमेर से प्रोजेक्ट गोडावण शुरू किया गया ।
अक्टूबर नवंबर मे प्रजनन करता है ।

सेवण घास इसका आश्रय स्थल है ।

इसका प्रतिमान केंद्र जोधपुर जंतुआलय है l

IUCN द्वारा रेड डाटा पुस्तक में यह पक्षी संकटग्रस्त श्रेणी में सम्मिलित है ।

वन्य जीव अधिनियम 1972 के अनुसूची 1 में इसका वर्णन है ।

1980 जयपुर में गोडावण पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजन किया गया ।

राज्य पशु :-चिंकारा



चिंकारा को 22 मई 1981 को राज्य पशु का दर्जा दिया गया ।

इसे छोटा हिरण भी कहा जाता है ।

 इसके सीग आजीवन बने रहते हैं ।

इसका वैज्ञानिक नाम " गजेला गजेला " है ।

जोधपुर में सर्वाधिक पाया जाता है ।

श्री गंगानगर का जिला शुभंकर है l

नाहरगढ़ अभयारण्य में सर्वाधिक पाया जाता है ।

राज्य वृक्ष:-खेजड़ी



खेजड़ी को 31 अक्टूबर 1983 को राज्य वृक्ष का दर्जा दिया गया ।

खेजड़ी का वैज्ञानिक नाम प्रोसेपिस सिनरेरिया है।

इसे राजस्थान का कल्पवृक्ष या राजस्थान का गौरव कहा जाता है ।

यह सर्वाधिक शेखावाटी प्रदेश में पाया जाती है !

यह सर्वाधिक नागौर जिले में पाई जाती है।

इस वृक्ष के नीचे गोगा जी व झुंझार जी के थान होते हैं ।

दशहरे व विजयदशमी पर इसकी पूजा की जाती है ।

समी , जाटी वृक्ष , सीमलो , पेयमेय , बन्नो बन्नी , सोकड , आदि इसके उपनाम है ।

सन 1899 (विक्रम संवत 1956 )को छप्पनिया अकाल के समय यह प्रदेश के लोगों के लिए जीवनदाई साबित हुई ।

1991 मे ऑपरेशन खेजड़ी चलाया गया ।

सेलेरेटोना व गलाइको ट्रेना जीव खेजड़ी को नुकसान पहुंचाते हैं ।

खेजड़ी के पुष्प को मीझर कहा जाता ।
खेजड़ी के फल को सांगरी ( खोखा )कहा जाता है ।
इसकी पत्तियों को लूम / लूंग कहा जाता है।

विक्रम संवत 1787 में अभ्य सिंह के काल में अमृता देवी के नेतृत्व में 363 लोगों इस वृक्ष की रक्षा हेतु बलि चढ़ गए ।

प्रतिवर्ष 12 सितंबर को खेजड़ी दिवस मनाया जाता है।

भाद्रपद शुक्ला दशमी को जोधपुर के खेजड़ली गांव में मेला भरता है ।

वृक्षों की रक्षा हेतु अमृता देवी पुरस्कार सबसे पहले गंगाराम विश्नोई को दिया गया ।

राज्य पुष्प :-रोहिडा

                        इसका नाम टेकोमेला अण्डुलेटा है।

31 अक्टूबर 1983 को इसे राज्य पुष्प का दर्जा दिया गया ।

यह राजस्थान का सागवान कहलाता है ।

इसके पुष्प पीले ,केसरिया ,गुलाबी रंग के होते हैं ।

यह फूल अप्रैल व मार्च में अधिक खिलते हैं ।

रोहिड़ा का पुष्प


गणतंत्र दिवस पर पुष्प का उपयोग ध्वजारोहण के समय किया जाता है ।

बाड़मेर , जोधपुर, जालौर, जैसलमेर, नागौर आदि जिलों में सर्वाधिक मिलते हैं ।

रोहिडा की लकड़ी इमारती लकड़ी है ।

राज्य पशु : -ऊंट (पालतू पशु )



ऊंट का वैज्ञानिक नाम कैमलिन है ।

30 जून 2014 को इसे राज्य पशु बनाने की घोषणा की गई बाद में 19 सितंबर 2014 को इसे राज्य पशु ( पालतू )दर्जा दिया गया ।

भारत में सर्वाधिक राजस्थान पाए जाते हैं ।

ऊंटो देवता पाबूजी है ।

दिसंबर 2014 को ऊंट वध अधिनियम लगाया गया ।

ऊंट की खाल पर की जाने वाली कला उस्ता कला कहलाती है ।

इस लाहौर से भारत लाया गया ।

बीकानेर के शासक अनूप सिंह के द्वारा उस्ता कला लाई गई ।

इस की पीठ पर पीलाण रखी जाती है ।

नाक में गिर बाण होती है।

ऊँट के गले में गोरबंद नामक आभूषण बांधा जाता है ।

ऊंट को सबसे ज्यादा राईका या रबारी जाति के लोग पालते हैं ।

ऊंट के बच्चे को तोरड़ी / टोडिया कहा जाता है ।

ऊंटों का पहला अस्पताल दुबई में खोला गया ।

ऊंट अनुसंधान केंद्र बीकानेर में स्थित है ।

ऊंट की प्रमुख नस्लें -नाचना ,गोमठ ,गुर्रा ,बीकानेरी आदि ।

राजस्थान में बीसवीं पशु गणना के अनुसार 2 लाख 13 हजार ऊँट है जबकि पिछली रिपोर्ट में 3 लाख 26 हजार ऊँट थे ।
इसमे 34.69% गिरावट दर्ज की गई है l

सर्वाधिक ऊंट जैसलमेर जिले में तथा सबसे कम प्रतापगढ़ जिले में होते है।

कर्नल जेम्स टॉड ने ऊंट को रेगिस्तान का जहाज का है ।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राजस्थान के लोक देवता

राजस्थान मे सड़क परिवहन

राजस्थान की लोक देवियां