राजस्थान का भौतिक प्रदेश (भूगोल)
राजस्थान का भौतिक प्रदेश
राजस्थान में उत्तरी पंश्चिमी मरू प्रदेश व पूर्वी मैदान इसी टेथिस महासागर के अवशेष माने जाते हैं जो कालांतर में नदियां द्वारा लाई गई तलछट मिट्टी के द्वारा काट दिए गए हैं।
राजस्थान विश्व की प्राचीनतम भूखंडों का अवशेष हैं।
प्रागैतिहासिक काल (इयोसीन काल व प्लीस्टोसीन काल) मैं विश्व 2 भूखंडों: -1. आगरालैंड व 2. गोंडवाना लैंड में विभक्त था, जिनके मध्य टेथिस सागर (इयोसीन काल व प्लीस्टोसीन काल के प्रारंभ तक) विस्तृत था।
राज्य के अरावली पर्वत एवं दक्षिण पूर्व पठारी भाग गोंडवाना लैंड के हिस्से हैं। राजस्थान को जलवायु और धरातल के अंतरों के आधार पर मुख्यत: निम्न 4 भौतिक विभागों में बांटा जा सकता हैं।
भारत में आए 1912में वेगनर महा विद्वान के अनुसार कार्बोनिफरस युग में पृथ्वी पर स्थलीय भाग पैजिया व जलीय भाग 2 भाग होते हैं थ।
जुरेसिक काल में धुर्वीय व ज्वारीय बल के कारण पैंजिया दो भागों में बंट गया-- 1.अंगारा लैंड 2. गोंडवाना लैंड इन दोनों के बीच में टेथिस सागर का जल विस्तृत था।
टेथिस सागर से राजस्थान में थार का मरुस्थल व पूर्व मैदान का निर्माण हुआ धीरे-धीरे सूख गया।
वी.सी. मिश्रा (1967) के अनुसार राजस्थान को सर्वप्रथम 7 भौतिक प्रदेशों में विभाजित किया।
डॉ रामलोचन सिंह (1971) के अनुसार राजस्थान को तीन भौतिक प्रदेशों में विभाजित किया:-1 बड़े भौतिक प्रदेश 2. मध्यम भौतिक प्रदेश 3. उप प्रमुख या गौण भौतिक प्रदेश
1. बड़े भौतिक प्रदेश:-
बड़े भौतिक प्रदेश दो भागों में विभाजित किया जाता है पंश्चिमी राजस्थान व पूर्वी राजस्थान।
2. मध्यम या प्रमुख भौतिक प्रदेश:-
मध्यम भौतिक प्रदेश को चार भागों में विभाजित किया जाता है - थार का मरुस्थल, अरावली, पूर्वी मैदान, दक्षिणी पूर्वी मैदान।
3. उप प्रमुख या गौण भौतिक प्रदेश:-
उन्हें 12 भागों में विभाजित किया जाता है।
1. उत्तर पश्चिमी मरुस्थलीय भाग:
क्षेत्र में 12 जिले आते हैं:-
जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, नागौर, जालौर, चूरू, सीकर, झुंझुनू, पाली जिले का पंश्चिमी भाग।
राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 61.11% भाग (लगभग 209000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र)।
यह प्रदेश उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व में 640 किलोमीटर लंबा एवं पूर्व से पश्चिम में 300 किलोमीटर चौड़ा है
राज्य की कुल जनसंख्या लगभग 40% निवास करती है।
जनसंख्या घनत्व सबसे कम।
20 सेमी से 50 सेमी वर्षा। अतः न्यून वर्षा के कारण इसे शुष्क बालू का मैदान भी कहते हैं।
गर्मियों में उच्चतम तापमान 49 डिग्री सेल्सियस तक तथा सर्दियों में -3 डिग्री सेल्सियस तक।
जलवायु शुष्क व अत्यधिक विषम। मिट्टी रेतीली बलूई।
यह भूभाग अरावली पर्वतमाला के उत्तर पश्चिम एवं पश्चिम में विस्तृत हैं।
अरावली का वृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण दक्षिणी पश्चिमी मानसून अरब सागर और बंगाल की खाड़ी का मानसून सामान्यतया वर्षा बहुत कम करता है। अतः वर्षा का वार्षिक औसत 20 से 50 एमी रहता है।
यह मरुस्थल ग्रेट अफ्रीका मरुस्थल का ही एक विस्तृत भाग है जो पंचमी एशिया के फिलिस्तीन और अरब एवं इरान होता हुआ भारत में विस्तृत हो गया।
इस प्रदेश का सामान्य ढाल पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर या पूर्व पश्चिम से दक्षिण पश्चिम की ओर है।
इस की समुद्र तल से सामान्य ऊंचाई 200 से 300 मीटर है।
रेत का विशाल बालुका स्तूप इस विभाग की प्रमुख विशेषताएं हैं।
इस प्रदेश में लिग्नाइट, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस व लाइम स्टोन के विशाल भंडारे है।
प्रमुख नमक स्त्रोत: पचपदरा, डीडवाना वह लूणकरणसर।
यह भूभाग टेथिस सागर (इथोसीन व पलिस्टोसीन काल में विद्यमान था) अवशेष है।
यह क्षेत्र अग्र दो भागों में बांटा जा सकता है। 25 सेमी सम वर्षा रेखा इन दोनों क्षेत्रों को करती है
*पश्चिमी विशाल मरुस्थल या रतीला शुष्क मैदान या महान मरूभूमि:-
इसमें वार्षिक वर्षा औसत 20 सेमी तक रहता है। (बाड़मेर ,जैसलमेर ,बीकानेर ,गंगानगर आदि) वर्षा अत्यधिक कम होने के कारण इस प्रदेश को शुष्क बालूका मैदान भी कहते हैं।
यह बालुका स्तूपों से ढका भूभाग पाकिस्तान की सीमा के सहारे- सहारे कच्छ, गुजरात से पंजाब तक विस्तृत है।
यह प्रदेश रेडक्लिफ रेखा से 25 सेंटीमीटर सम वर्षा रेखा तक विस्तृत है।
पश्चिमी रेतीले शुष्क मैदान के दो उपविभाग है:-
1. बालुका स्तूप युक्त मरुस्थलीय प्रदेश।
2. बालुका स्तूप मुक्त क्षेत्र।
बालुका स्तूप
स्थाई मिट्टी के टीले जिसके निर्माण के लिए पवन उत्तरदाई है जिसे बरखान या बालुका स्तूप कहते हैं।
इसकी आकृति अर्धचंद्राकार होती है।
यह सर्वाधिक गतिशील होते हैं।
यह सर्वाधिक शेखावटी क्षेत्र में पाए जाते हैं।
यह वनस्पति विहीन होते हैं।
शेखावटी क्षेत्र
1. जिला चूरू
2. भालेरी (चूरू)
3. रावतसर (हनुमानगढ़)
4. सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर)
5. लूणकरणसर (बीकानेर)
6. देशनोक (बीकानेर)
7. बालोतरा (बाड़मेर)
8. ओसियां (जोधपुर)
अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप
यह बालुका स्तूप जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर में सर्वाधिक विस्तृत है। यह बालुका स्तूप अधिक स्थाई है।
यह बालुका स्तूप पवन के समांतर बनते हैं।
दो बालुका स्तूप के मध्य परिवहन मार्ग होता है।
इन बालुका स्तूपों की हवाएं पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है। इस बालुका स्तूप में वनस्पति आने वालों का स्तूप की तुलना में अधिक होता है।
अनुप्रस्थ बालुका स्तूप
यह बालुका स्तूप बाड़मेर, जोधपुर ,जैसलमेर में सर्वाधिक विस्तृत है।
इस बालुका स्तूप में कम वनस्पति पाई जाती है।
यह स्तूप हवा के समकोण पर लंबवत बनेंगे।
तारानुमा बालुका स्तूप
पवन के नियत वाही होने की अलग-अलग दिशाओ
के कारण यह तारा नुमा बालुका स्तूप बनते हैं।
यह बालुका स्तूप सर्वाधिक पोकरण (जैसलमेर), मोहनगढ़ (जैसलमेर), सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर) में पाए जाते हैं।
इसे हम्मादा मरुस्थल भी कहते हैं।
हमादा मरुस्थल में चारों ओर से पवन के कारण बालुका स्तूप बनते हैं वो एक साथ होने के कारण तारा नुमा दिखाई देते हैं।
पैराबोलिक
राजस्थान के जैसलमेर में सर्वाधिक पाए जाते हैं।
इनकी आकृति महिला के हेयर पिन (तीब) जैसी होती है।
सीफ
इनका निर्माण बरखान का पूर्ण विकास नहीं होने पर होता है।
यह स्तूप शेखावटी प्रदेश व पश्चिमी मरुस्थल में सर्वाधिक पाए जाते हैं। इनमें बालू की मात्रा कम होने के कारण पवन अनुदैर्ध्य के रूप में इनको जमा देती है।
शब्र काफीज
पवन के अवरोध के कारण पवन विमुखी ढाल शब्र काफीज कहलाता है।
नेटवर्क बालुका स्तूप
उत्तरी पूर्वी राजस्थान में व हरियाणा में पाए जाते हैं।
राजस्थान में हनुमानगढ़ में पाए जाते हैं।
लाठी सीरीज
यह मोहनगढ़ से पोकरण तक भूगर्भ जल पट्टी है।
जिस पर सेवण घास पाई जाती है और इसी घास में गोडावण पक्षी पाया जाता है।
मोहनगढ़ से पोकरण के बीच एक नलकूप है जिसका नाम है चांदन नलकूप है। इसे थार का घड़ा भी कहा जाता है।
यह जैसलमेर में है।
64 से 80 किलोमीटर लंबी है इसे मरुस्थल का मरुउद्यान / नखलिस्तान कहा जाता है।
मरुस्थल में पारिस्थितिकी तंत्र का सबसे बढ़िया उदाहरण है।
मिलते हैं अगले टॉपिक में मरुस्थल की विशेषताओं के साथ। ✍️✍️✍️✍️💪💪
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