राजस्थान में थार के मरुस्थल की विशेषता

राजस्थान में थार के मरुस्थल की विशेषता 

थार का मरुस्थल विश्व में सर्वाधिक जैव विविधता रखता हैै।

लाठी सीरीज

थार का मरुस्थल सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला  है।
मोहनगढ़ से पोकरण तक भूगर्भ जल पट्टी है जिस पर सेवन घास (वैज्ञानिक नाम=लिज्युरिक सिडिकस) पाई जाती है।


सेवण घास में गोडावण पक्षी पाया जाता है, जो राजस्थान राज्य का राज्य पक्षी है, और जिला शुभंकर जैसलमेर में है।

मोहनगढ़ और पोकरण के बीच जल पट्टी में एक नलकूप है जिसका नाम चांदन नलकूप है और इसे थार का घड़ा भी कहा जाता है।
यह जैसलमेर जिले में 64 से 80 किलोमीटर लंबी है इसे मरुस्थल का मरू उद्यान या नखलिस्तान जाता है।

मरुस्थल पारिस्थितिकी तंत्र का सबसे बढ़िया उदाहरण है।

खड़ीन

यह जल संरक्षण की परंपरागत विधि है।

यह सर्वप्रथम पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई।


ऊंचे भाग से ढलान की तरफ वर्षा जल को एकत्रित करते हैं, एक पत्थर की पक्की दीवार और दो मिट्टी की कच्ची दीवार बनाई जाती है और पानी सूखने के बाद रबी की फसल बोई जाती है।

खड़ीन जैसलमेर में सर्वाधिक पाई जाती है।

राष्ट्रीय मरू उद्यान

राष्ट्रीय मरू उद्यान बाड़मेर जैसलमेर जिले में है।

राष्ट्रीय मरू उद्यान का क्षेत्रफल 3162 वर्ग किलोमीटर है।

राष्ट्रीय मरू उद्यान में आकल वुड फॉसिल पार्क है, जो बाड़मेर से जैसलमेर जाने वाली एनएच 68 पर  बना हुआ है।

अकल वुड फॉसिल पार्क में लकड़ी का जीवाश्म पाया गया जो 18 करोड़ वर्ष पुराना है और यह वर्तमान में कठोर पत्थर में बदल गया है।

रण

रण को टाट या ढांढ भी कहा जाता है।

ऐसा प्रदेश जा उस लवणता के कारण बंजर भाग हो जाता है उसे रण कहा जाता है।

रण में कहीं-कहीं प्लाया बनता है, प्लाया वर्षा ऋतु में बनने वाली अस्थाई झील है।

राजस्थान के प्रमुख रण:-

1. पोकरण जैसलमेर ‌‌‌-भारत का प्रमुख परमाणु परीक्षण केंद्र, पहला परमाणु परीक्षण 1974 और दूसरा परमाणु परीक्षण 1998 में किया गया।


2. बाप रण (जोधपुर)

3. थोब रण (बाड़मेर)

4. ताल छापर (चुरु)

5. परिहारी (चूरू)

पीवणा सांप

पीवणा सांप अंतर्राष्ट्रीय सीमावर्ती प्रदेश (बाड़मेर) में ज्यादा पाए जाते हैं।

 पीला सांप की व्याख्या मैथिलीशरण गुप्त ने की थी।

कैक्टस पार्क

यह मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए बनाए जाते हैं।

बाड़मेर के विशाला ग्राम और जैसलमेर के कुलधरा ग्राम कैक्टस पर पार्क पाया जाता है।


सेम की समस्या

इंदिरा गांधी नहर पर रावतसर में ज्यादा सिंचाई करने के कारण भूतल में जिप्सम की मात्रा के कारण सारी जमीन दलदली और बंजर हो जाती है जिसे सेम की समस्या कहते हैं।

सेम की समस्या को कम करने के लिए "यूकेलिप्टस" पौधे को लगाया जाता है।

सेम की सर्वाधिक समस्या श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में होती है।

मरुस्थलीकरण या मरुस्थल का मार्च

मरुस्थल का विस्तार होना मरुस्थलीकरण कहलाता है।

मार्च/अप्रैल/मई/जून (ग्रीष्म ऋतु) में मरुस्थल का विस्तार सबसे ज्यादा होता है।

बबलू व दक्षिण पश्चिम मानसून पौधों के कारण मरुस्थल का विस्तार होता है।

अरावली के मध्य भाग से अजमेर जिले में सर्वाधिक मरुस्थलीकरण होता है।

सरकार द्वारा एक संस्था का निर्माण किया गया जिसका नाम काजरी संस्था है।

कजरी (राष्ट्रीय शुष्क अनुसंधान केंद्र)-जोधपुर में इसकी स्थापना 1959 में की गई इसका उद्देश्य मरुस्थलीकरण को रोकना है।

मरुस्थलीकरण के कारण:-

वनोन्मूलन
अति सिंचाई
अति पशु चारण
वैज्ञानिक ढंग से कृषि कार्य का आभाव
मेड़बंदी का अभाव (माठ या कणा का अभाव)

बाप बोलर्डस

जोधपुर में स्थित है। जोधपुर के बाप ग्राम में गोलाश्म पाया गया है जो हिम के निक्षेय  से अपरदन का साक्ष्य है।

गोलाश्म 34 करोड़ वर्ष पुराना है।

पर्मो कार्बोनिफरस काल का है।


अर्ध शुष्क मरुस्थल

अर्ध शुष्क मैदान महान  शुष्क रेतीले प्रदेश के पूर्व में अरावली की पहाड़ियों के पश्चिम में लूनी नदी के जल प्रवाह क्षेत्र में अवस्थित है।

 यह आंतरिक प्रवाह क्षेत्र है इसका उत्तरी भाग घग्गर का मैदान उत्तर पूर्वी भाग शेखावाटी का आंतरिक जल प्रवाह  क्षेत्र व दक्षिण पश्चिम भाग लूनी नदी बेसिन तथा मध्यवर्ती भाग नागौरी उच्च भूमि है ।

यह संपूर्ण क्षेत्र शुष्क एवं अर्ध शुष्क जलवायु के मध्य  का संक्रमणीय या परिवर्ति जलवायु वाला क्षेत्र है ।

इस संपूर्ण प्रदेश को चार भागों में विभाजित किया जाता है---

1. घग्गर का मैदान:-यह मुख्यतः हनुमानगढ़ एवं गंगानगर जिलों में विस्तृत है।

इस क्षेत्र में वर्तमान में घग्गर नदी प्रवाहित होती है जो मृत नदी के नाम से भी जानी जाती है।
यह नदी भटनेर के पास रेगिस्तान में लगभग विलुप्त हो जाती है।

वर्षा ऋतु में बाढ़ आ जाने पर इसका पानी फोर्ट अब्बास (पाकिस्तान) तक पहुंच जाता है।

2. लूनी बेसिन या गोड़वाड़ क्षेत्र: -लूनी एवं उसकी सहायक नदियां के इस अपवाह क्षेत्र को गोड़वाड़ प्रदेश कहते हैं  ।
इसमें जोधपुर, जालौर, पाली एवं सिरोही के क्षेत्र शामिल है।
इस क्षेत्र में जालौर - सिवाना की पहाड़ियां स्थित है जो ग्रेनाइट के लिए प्रसिद्ध है।

3. नागौरी उच्च भूमि प्रदेश:-राजस्थान बागड़ प्रदेश के मध्यवर्ती भाग को नागौर की उच्च भूमि कहते हैं।
इस क्षेत्र में डीडवाना, कुचामन, सांभर, नावां आदि खारे पानी की झीले है जहां नमक उत्पादित होता है।

 4. शेखावटी आंतरिक प्रवाह क्षेत्र:-बागड़ प्रदेश के इस भू-भाग में चुरू, सीकर, झुंझुनू, नागौर का कुछ भाग आता है। इसके उत्तर में घग्गर का मैदान तथा पूर्व में अरावली पर्वत श्रृंखला है तथा पश्चिम में 25 सेमी सम वर्षा रेखा है। इस प्रदेश में बरखान प्रकार के बालुका स्तूपों का बाहुल्य है।

मुख्य फसलें
बाजरा, मोठ और ग्वार।

वनस्पति
बबुल, फोग, खेजड़ा, कैर, बेर व सेवण घास।

राष्ट्रीय मरू उद्यान प्रमुख वन्य जीव अभ्यारण है जो राज्य का सबसे बड़ा वन्य जीव अभ्यारण है।

थार मरुस्थल थली या शुष्क बालू का मैदान के नाम से भी जाना जाता है जो ग्रेट पेलियोंआकरटिक अफ्रीकी मरुस्थल का पूर्वी भाग है। संपूर्ण थार मरुस्थल का लगभग 62% अकेले राजस्थान में है। इसे महान भारतीय मरुस्थल या थार का मरुस्थल भी कहते हैं।

यहां मरुस्थल विश्व की सर्वाधिक आबादी वाला मरुस्थल है। यही नहीं सबसे अधिक जैव विविधता बी स में पाई जाती है
 यह वनस्पति एवं पशु संपदा की दृष्टि से विश्व के मरुस्थल में सर्वोत्कृष्ट हैं। यहां का जनसंख्या घनत्व भी सभी मरुस्थल में सर्वाधिक है। इस संपूर्ण मरुस्थल में बालुका स्तूप ओं के बीच में कहीं-कहीं निम्न भूमि मिलती है जिसमें वर्षा का जल भर जाने से अस्थाई झीलें वह दलदली भूमि का निर्माण होता है जिसे रन कहते हैं।







टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राजस्थान के लोक देवता

राजस्थान मे सड़क परिवहन

राजस्थान की लोक देवियां