राजस्थान के प्रमुख वैष्णव संप्रदाय
राजस्थान के प्रमुख वैष्णव संप्रदाय
रामानुज संप्रदाय :-
प्रवर्तक - रामानुजाचार्य ।
जन्म :- 1117 ई. तमिलनाडु में ।
प्रमुख स्थान - तिरुपति (आंध्र प्रदेश) ।
ग्रन्थ - यमुनाचार्य ( आलवार संत ) ।
भारत में भक्ति आंदोलन के जनक के प्रथम संत ।
रामानुज संप्रदाय के राजस्थान में प्रमुख मंदिर :-
1 . लक्ष्मी नारायण मंदिर बीकानेर ।
2. लक्ष्मीनाथ मंदिर जैसलमेर ।
3. लक्ष्मीपति मंदिर भीलवाड़ा ।
4.लक्ष्मी नारायण बिङला मंदिर भीलवाड़ा ।
उपासना - इसमें राम की पूजा अर्चना की जाती ।
रामानंदी संप्रदाय :-
प्रवर्तक - संत रामानंद आचार्य ।
प्रमुख स्थान - वाराणसी (उत्तर प्रदेश) ।
राजस्थान में प्रमुख पीठ - गलता जी जयपुर ।
गुरु- राघनंद आचार्य ( सामानुजी संत ) श्री पंथ के पांचवे आचार्य
उपासना - सीताराम युगल स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है।
उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन के जनक सर्वाधिक लोकप्रिय संत, सगुण निर्गुण विचारधारा का आरंभ के प्रमुख 12 शिष्य :-
कबीर, धन्ना जी, पीपाजी, सेना नाई, सदन जी, रैदास जी सहित 12 शिष्य ।
राजस्थान में रामानंदी संप्रदाय के प्रमुख संस्थापक संत कृष्णदास पियहारी थे ।
रामानंदी संप्रदाय के प्रमुख मंदिर :-
1.गलता तीर्थ जयपुर,निर्माता दीवान कृपाराम जी (सवाई जयसिंह )
2.जानकीनाथ बड़ा मंदिर रेवासा सीकर,निर्माता अग्रदेव आचार्य (रसिक पंत प्रवर्तक) ।
निंबार्क संप्रदाय :-
उपनाम - हंस / सनक सम्प्रदाय ।
प्रवर्तक - आचार्य निंबार्क द्वारा 12वीं सदी में प्रवर्तित ।
राजस्थान में प्रधान पीठ - किशनगढ़ अजमेर के समीप सलेमाबाद में जो आचार्य परशुराम द्वारा स्थापित की गई थी ।
इसे हंस संप्रदाय भी कहते हैं ।
मुख्य पर्व - राधा अष्टमी / निंबार्क जयंती (भाद्र शुक्ल अष्टमी) ।
द्वितीय पीठ - कचोरियां गांव किशनगढ़ अजमेर ।
मुख्य मंदिर -
निंबार्क तीर्थ सलेमाबाद किशनगढ़ (अजमेर)
वृंदावन धाम मंदिर ।
ब्रह्म या गौड़ीय संप्रदाय :-
स्वामी माध्वाचार्य द्वारा 12वीं सदी में प्रवर्तित ।
प्रवर्तक - इस संप्रदाय को जन जन तक फैलाने का कार्य बंगाल के गौरांग महाप्रभु चैतन्य ने किया, इन्होंने रासलीला एवं संगणनों को कृष्ण भक्ति का माध्यम बनाया ।
जयपुर में सवाई जयसिंह के समय चन्द्र महल के पीछे गोविंद राज जी का मंदिर बनवाया गया ।
करौली में बनाम मदन मोहन जी का मंदिर इसी संप्रदाय का है ।
दर्शन - अचिन्त्य भेदाभेदवाद ।
ग्रन्थ - 1.चैतन्य सरितामृत कवि कृष्ण दास ।
2 .चैतन्य भागवत कवि वृंदावन दास ।
3.चैतन्य मंगल कवि लोचन दास ।
वल्लभ संप्रदाय :-
प्रवर्तक - वल्लभाचार्यजी ।
उपनाम - पुष्टीमार्गीय रुद्र संप्रदाय ।
उपासना - श्री कृष्ण बाल स्वरूप की ।
गुरु - विल्वमंगलाचार्य जी।
दर्शन - शुद्धाद्वैतवाद ।
ग्रन्थ - अणु भाष्य ।
प्रधान पीठ - श्री नाथद्वारा राजसमंद
इस संप्रदाय में अष्ट स्वरूप दर्शन एवं शोध ग्रंथों का महत्व ।
वृंदावन में वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने अष्टछाप कवि मंडली का संगठन किया ।
वृंदावन में वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ में "अष्टछाप कवि मंडली " का संगठन किया ।
वल्लभ संप्रदाय के अष्ट स्वरूप दर्शन :-
1.श्रीनाथ प्रभु - सिहाड़ गांव श्री नाथद्वारा राजसमंद ।
2.विट्ठल नाथ जी - नाथद्वारा राजसमंद ।
3.द्वारकाधीश जी - कांकरोली राजसमंद ।
4. मथुराधीश / मथुरेश जी - पाटनपोल कोटा ।
5. मदनेशजी/ मदन मोहन - कांमा भरतपुर ।
6. गोकुलेस जी / गोकुलनाथजी - गोकुल (मथुरा उतर प्रदेश)
7.गोकुल चंद्र /चंद्रा जी - कामा भरतपुर
8.बालकृष्ण /बालेरा प्रभुजी - सूरत गुजरात ।
माध्व संप्रदाय :-
प्रवर्तक - माध्वाचार्य ।
उपनाम - आनंद तीर्थ, वायू अवतार ।
उपासना - श्री कृष्ण चतुर्भज स्वरूप ।
गुरू - अच्युतप्रक्ष स्वामी ।
दर्शन - द्वैतवाद ।
ग्रन्थ - ब्रह्मसुत्रभाष्य ।
प्रधानपीठ - उडुपी (कर्नाटक) ।
इस संप्रदाय में श्री विष्णु को चतुर्भुज स्वरूप में शंख, गदा, चक्र, बदनधारी, रुप में पूजा जाता है जिन्हे राजस्थान में चारभुजा नाथ कहते हैं ।
अन्य मंदीर - चारभुजा नाथ - मेड़ता नागौर
कोटडी श्याम -भीलवाड़ा
सिंगोली श्याम -भीलवाड़ा ।
रसिक संप्रदाय :-
प्रवर्तक - पियहारी जी के शिष्य अग्रदास जी ।
प्रमुख पीठ - रैवासा ग्राम सीकर ।
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