निर्गुण भक्ति धारा के संत संप्रदाय

 प्रमुख संत संप्रदाय 

जाम्भोजी :-



उपनाम - पर्यावरण वैज्ञानिक, गूंगा गहला , गुरु जंभेश्वर भगवान

जन्म - पीपासर नागौर में सन् 1451 ईसवी की भाद्रपद कृष्ण अष्टमी ।

संप्रदाय - बिश्नोई पंथ ।

धर्म ग्रन्थ - जंभ संहिता, जम्भ सागर शब्दावली, जम्भ गीता, जम्भ वाणी , बिश्नोई धर्म प्रकाश ।

पिता - ठाकुर जी परमार (पंवार) ।

माता - हंसा दे (केसर कंवर) ।

प्रमुख पीठ - मुकाम तालवा नोखा बीकानेर ।

धर्म ग्रंथ की स्थापना - सन् 1485 ई. में कार्तिक बदी अष्टमी समराथल धोरा बीकानेर ।

समाधी - सन् 1536 ई. में फाल्गुन त्रयोदशी मुकाम तालवा बीकानेर, इसे धोक धोरा भी कहते है ।

धर्म प्रवेश हेतु गुरु द्वारा दिया गया अयियत्रित जल को पाहल कहा जाता है ।

बिश्नोई पंथ में गुरु के उपदेशों के स्थल को साथरी कहते हैं ।

नियम - 29 नियम जिसमें 8 जीवन, दया, प्रेम भाव व 7 धर्म व्याख्या और 10 स्वास्थ्य सुरक्षा व 4 धर्मानुत्थान पर नियम वर्णन ।

प्रमुख तीर्थ स्थान - मुकाम तालवा (समाधि स्थल) ।
समराथल धोरा (धोक धोरा) - धर्म स्थापना ।
3.जांगलू बीकानेर  4. जय्या फलौदी जोधपुर 
5.रामदावास पीपाड़ जोधपुर 6.लालासर नागौर 
7.पीपासर नागौर - जन्म स्थान 8. लोदीपुर (सहारनपुर यूपी )

जाम्भोजी के अनुयायियों को 29 नियम के पालन का उपदेश दिया जिसमें हरे वृक्षों को काटने पर, रोक जीवो पर दया , नशीली वस्तुओं के सेवन पर , स्वच्छता का पालन करना एवं नील व निल्ले वस्त्रों का त्याग आदि प्रमुख है ।

पर्यावरण संरक्षण हेतु प्राणों का बलिदान कर देने के लिए संप्रदाय प्रसिद्ध है ।

जसनाथ जी :-



जन्म - कतरियासर बीकानेर ।

गुरु - गोरखनाथ

संप्रदाय - जसनाथी संप्रदाय(सिद्ध संप्रदाय)

कुल नियम - 36

प्रधान पीठ - गोरख मालिया कतरियासर ।

धर्म ग्रंथ - सिम्भूदडा, कोडा ।

धार्मिक नृत्य - अग्नि नृत्य ।

धार्मिक शाखाएं - 1.सिद्ध 2.सेवक 3. साधु ।

प्रमुख तीर्थ ( ठीकाने ) - लिखमादेसर, पूनरासर,पांचला, लीला सर, बंगालु ।

जन्म - कार्तिक शुक्ल एकादशी विक्रम संवत 1539 सन् 1482 ईसवी में कतरियासर बीकानेर ।

पिता - हमीर जी जाट ।
माता - रूपादे का पोष्य पुत्र ।

धर्म संप्रदाय - 1504 ई में सिद्ध संप्रदाय की स्थापना की ।

समाधी - 1506 ई. में अश्विन शुक्ला सप्तमी को गोरख मालिया में 24 वर्ष की आयु में जीवित समाधि ली ।

जसनाथ जी ने 12 वर्ष तक कठोर तपस्या की ।

जाल वृक्ष, मोर पंख, सफेद पशु, एवं गंगा स्नान का विशेष महत्व ।
लोक मान्यताओं के अनुसार "सती दादी कालकी" को जसनाथ जी की पत्नी के रूप में माना जाता है तथा उनकी समाधि कतरियासर बीकानेर में बनी हुई।

जसनाथ जी ने " लोहपागल " नामक तांत्रिक का घमंड चकनाचूर किया ।

राव लूणकरण को बीकानेर का राजपद पाने का वरदान दिया।

सिकंदर लोदी ने 500 बीघा भूमि का दान किया ।

वर्तमान में 5 ठिकाने 12 धाम और 84 बाड़ बनी हुई है ।

वाद्य यंत्र - नगाड़ा, मंजीरा ।
अग्नि नृत्य के स्थान को धूणा कहते हैं तथा नृत्य करने वाले कलाकारों को साधक या नाचनीए कहते हैं ।

जसनाथ जी के प्रसिद्ध शिष्य - रूस्तन जी ।

संत दादू :-



जन्म - अहमदाबाद गुजरात में सन 1544 ईसवी में साबरमती नदी की बहती हुई धारा में संदूक में बंद बच्चा लोदीरामजी धुनिया को मिला ।

गुरु - वृंदावन ।

उपनाम - राजस्थान का कबीर ।

संप्रदाय - दादु पंथ / पारब्रह्म / निपख सम्प्रदाय ।

उपासना स्थल - अलख दरीबा ।

प्रधान पीठ - नरेणा / नारायणा जयपुर ।

धर्म ग्रन्थ - दादू वाणी, दादु दुआ ।

प्रमुख शिष्य - 152 शिष्य ( प्रधान शिष्य -52 , एकान्तवासी - 100 )

धार्मिक शाखाएं - 1. खालसा 2. विरक्त 3. खाकी 4. नागा 5. उतरोद ।

प्रमुख तीर्थ - नरेणा, भैराणा, सांभर, सांगानेर ।

उतराधिकारी - गरीब दास
दुसरा पुत्र - मिस्कीना ।

11 वर्ष की आयु में गुरु वृंदावन से दीक्षा ली ।

19 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर देशाटन का आरंभ किया ।
सांभर में निवास के दौरान दादू पंथ की स्थापना की ।

भेराणा पहाड़ी नारेणा (जयपुर) में स्थान पर समाधि ली ।

फतेहपुर सीकर में दादू जी ने अकबर से धर्म चर्चा कि उस स्थान को "इबादत खाना" कहते हैं ।

दादू जी के उपदेशों की भाषा - सधुकड़ी मिश्रित हिंदी भाषा ।

आजीवन दूल्हे के रूप में दादू वाणी का प्रचार प्रसार करने वाले शिष्य रज्जबदास थे।

नारायणा में भैराणा पहाड़ी पर स्थित गुफा जिसमें दादू जी ने समाधि ली उस स्थान को "दादूखोल " कहा जाता है ।

दादू पंथ के सत्संग को "अलख दरीबा " कहा जाता है ।

संत हरिदास निरंजनी :-



जन्म - का कापड़ोद गांव नागौर में सन् 1555 ईस्वी में हुआ ।

गुरु - संत राजगीरी ।

उपनाम - राजस्थान का वाल्मीकी ।

सम्प्रदय - निरंजनी संप्रदाय ।

प्रधान पीठ - गाढा गांव (डीडवाना नागौर )

धर्म ग्रन्थ - हरि पुरुष वाणी व मंत्रराज प्रकाश ।

प्रमुख शिष्य - जगन्नाथ, मोहनदास, ध्यानचंद, कान्हड़, तुलसीदास सहित 12 प्रमुख शिष्य थे ।

धार्मिक शाखाएं - 1 निहंग 2 घरबारी ।

प्रमुख तीर्थ - तिथि डूंगरी ।

मूल नाम - हरीसिंह सांखला ।

1513 ईस्वी में ज्ञान की प्राप्ति हुई ।

इस संप्रदाय में ईश्वर को अलख निरंजन या हरि निरंजन कहते हैं ।
प्रारंभ में लूटमार करना इनका पेशा था लेकिन एक सन्यासी के उपदेशों से इनका जीवन बदल गया ।

संत मावजी :-



उपनाम - कंलकी अवतार, पागलपन अवतार ।

जन्म - साबला ग्राम डूंगरपुर 1714 ईस्वी में ।

संप्रदाय - निष्कलंकी संप्रदाय ।

प्रधान पीठ - हरि मंदिर साबला ग्राम डूंगरपुर ।

धर्म ग्रंथ - चौपड़ा , चौपड़ा में छन्दों की संख्या 72 लाख 96 हजार है।

इन्होंने सोम माही जाखम नदीयों के संगम पर बेणेश्वर में खंडित शिवलिंग की स्थापना की ।

ज्ञान की प्राप्ति - विक्रम संवत 1784 में माघ शुक्ला एकादशी को गुरुवार के दिन ।

मुख्य पर्व - माघ शुक्ला पूर्णिमा को त्रिवेणी संगम पर मेला भरता है ।

संत माव जी के अनुयाई इन्हें विष्णु का दसवां अवतार "कल्कि अवतार" मानते हैं ।

संत मावजी की शंख चक्र गदा और पद्म सहित घोड़े पर सवार चतुर्भुज मूर्ति है ।

संत लाल दास जी :-

जन्म - धोलीदुब गांव अलवर में श्रावण कृष्ण पंचमी को 1504 ईस्वी में हुआ ।

पिता - चांदमल।
माता - समदा ।

गुरु - फकीर गदन चिश्ति ।

संप्रदाय - लालदास संप्रदाय ।

कुटिया - बंदोली ग्राम में सिहसिला पहाड़ पर ।

धर्म ग्रंथ - लाल दास जी की वाणीया ।

प्रमुख शिष्य - भक्त डूंगरसी ।

अन्य तीर्थ - नंगला गांव भरतपुर ।

उपदेश- हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों को अच्छाईयों से अपनाने का उपदेश दिया ।

मेव के मुसलमान लालदास जी को पीर के रूप में मानते हैं ।

समाधि स्थल - शेरपुर अलवर जहां अश्विन एकादशी व माघ पूर्णिमा को मेला लगता है ।

नगला गांव भरतपुर में सन 1648 ईस्वी को 108 वर्ष की दीर्घ आयु में निधन हुआ ।

इन्होंने लसाड़ा के पटेल भगत की दान राशि से अहमदाबाद से कागज मंगवाया और धोलागढ़ में एकांतवास में बैठकर पांच बड़े ग्रंथों की रचना की जिन्हें चोपड़ा कहते हैं ।

संत रामचरण जी :-

जन्म - साडा गांव टोंक में माघ शुक्ल चतुर्दशी को 1719 ईसवी में हुआ ।

पिता - बखताराम ।
माता - देऊजी ( वैश्य कुल में जन्म हुआ )

मूल नाम - रामकिशन ।

गुरु संत कृपाराम जी गुदड़िया ।

रचनाएं - अनभे वाणी / अर्णय वाणी ।

उपासना स्थल - रामद्वारा

प्रधान पीठ - शाहपुरा भीलवाड़ा ।

प्रमुख तीर्थ - कूआड़ा भीलवाड़ा ।

राजस्थान में रामस्नेही संप्रदाय की शेयर शाखाएं -
1.शाहपुरा भीलवाड़ा 2. रैण शाखा भीलवाड़ा
3. सिंहथल शाखा बीकानेर 4.खेड़ापा शाखा जोधपुर ।

1798 ईस्वी में शाहपुरा में इनका निधन हुआ ।

उपासना - रामनाम स्मरण ।

रामसनेही संप्रदाय का फूलडोल महोत्सव इस संप्रदाय की विशिष्टता है ।

आचार्य भिक्षु :-

जन्म - कंटालीया मारवाड़ में ।

वास्तविक नाम - भीखमजी ओसवाल ।

गुरु - आचार्य रघुनाथ ।

संप्रदाय - तेरापंथी जैन ।

नियमों की संख्या - 13

प्रधान शिष्य - 13

प्रधान पीठ - सिरयारी गांव पाली ।

प्रसिद्ध अनुयाई शिष्य - आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ आचार्य महाश्रमण ।

राजस्थान के अन्य लोक संत 

संत पीपाजी :-

जन्म - गागरोन झालावाड़ में ।
गुरु - संत रामानंद जी ।

दर्जी समुदाय के आराध्य देव ।

प्रमुख मंदिर - समुद्री ग्राम बाड़मेर विशाल मेला भरता है ।

संत पीपा जी कुछ समय टोडा ग्राम पाली में भी रहे जहां पीपा जी की गुफा है जिसमें वह भजन संध्या किया करते थे ।

कबीर, रैदास, धन्ना सेना के समकालीन गुरु भाई ।

रैदास ने पीपा के त्याग सबसे बड़ा त्याग बताया ।

संत धन्ना जी :-

संत रामानंद के शिष्य ।

जन्म - धुवन ग्राम टोंक मेें संवत् 1972 में ।

जाट जाति में जन्मे प्रसिद्ध संत राजस्थान में भक्ति आंदोलन का जनक ।

खरीफ की फसलों में महामारी से बचाने हेतु एवं अधिक उत्पादन हेतु धन्ना भगत की दुवाई दी जाती है ।

भक्त कवि दुर्लभजी :-

वागड़ क्षेत्र बांसवाड़ा व डूंगरपुर के संत ।

उपनाम - "राजस्थान का नरसिंह " के नाम से प्रसिद्ध ।

जन्म - डूंगरपुर के नागर ब्राह्मण कुल में ।

सम्प्रदाय - नृसिंह पंथ ।

उपासना स्थल - नृसिद्वारा ।

प्रधान पीठ - डूगरपूर ।

संत प्राणनाथ जी :- 

परनामी सम्प्रदाय से सिंधी समाज में प्रसिद्ध संत।

राजस्थान में मुख्य पीठ अमरापुर धाम (जयपूर ) ।

संत सुंदरदास जी :-

जन्म - दौसा ।

दादू जी के परम शिष्य ।

निधन - सांगानेर ।

प्रमुख ग्रंथ - ज्ञान समुद्र, ज्ञान सवैया, सुन्दर ग्रंथावली आदि ।

संत रज्जब जी :-

विवाह के लिए जाते समय दादू जी के उपदेश सुन कर ये उनके शिष्य बन गए और जीवनभर दूल्हे के वेश में रहते हुए दादू के उपदेशों का बखान किया ।

प्रमुख ग्रन्थ - रज्जबवाणी व सर्वंगी ।

संत रैदास :-

संत रैदास की वाणियों को "रैदास की पर्ची " कहते हैं ।

गुरु - संत रामानन्द ।

मीरा के समय चितौड़ आए ।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कुंभ श्याम मंदिर में रैदास की छतरी बनी हुई ।

संत शिरोमणी :-

जन्म - सन 1948 में कुंडकी ग्राम (तत्कालीन नागौर रियासत में व वर्तमान में पाली जिले) में हुआ ।

संत नवलदास जी :-

नवलदासी पंथ चलाया ।

ग्रन्थ - नवलेश्वर अनुभव वाणी ।

प्रधान पीठ - जोधपुर ।

खेतेश्वर बाबा :-

मूल नाम - संत खेता राम राजपुरोहित समाज में ब्रह्म संप्रदाय से प्रसिद्ध संत ।

आसोतरा बाड़मेर में इनका का मंदिर बना हुआ है ।

संत राजाराम जी

आंजना पटेल समाज में ग्रामवासी संप्रदाय से प्रसिद्ध संत शिकारपुरा (जोधपुर )  में इनका थान बना हुआ है ।






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