निर्गुण भक्ति धारा के महिला संत

 निर्गुण भक्ति धारा की महिला संत

मीराबाई :-

जन्म - कुड़की गांव जैतारण पाली में सन् 1498 में ।

उपनाम - राजस्थान की राधा ।

जन्म नाम - पेमल बाईसा ।

पिता - राव रतन सिंह राठौड़ (मेड़तिया ) ।
माता - वीर कुंवर ।

गुरु - संत चतुर्भुज दास (वैष्णव आचार्य) ।

अध्यात्मिक प्रेरक - संत रैदास (निर्गुणी संत) ।

रचनाएं - पदावलियां, रुकमणि मंगल,गीत गोविंद पर टीका, सत्यभाना जी नु रूसणो ।

प्रमुख शिष्य - रत्ना सुथार ।

प्रमुख तीर्थ - मेड़ता, चितोड, वृदावन, द्वारिका । 

यह मेड़ता के राव दूदा की पौत्री थी जिनका विवाह राणा सांगा के जेष्ठ पुत्र कुंवर भोजराज से हुआ ।

मीरा के अनुयाई रत्ना जी सुथार ने नरसी मेहता हुण्डी व नेनी बाई रो मायरो की रचना की ।
     
        कृष्ण भक्त कवित्री गायिका मीराबाई सोलवीं सदी के भारत के महान संतों में से एक थी ।  मीरा को राजस्थान की राधा भी कहा जाता है । इनका जन्म मेड़ता के राठौड़ राव दूदा के पुत्र रतन सिंह के घर में कुरकी नामक ग्राम पाली जिले में सन् 1948 ईस्वी में लगभग हुआ ।  इनके पिता रतन सिंह राठौड़ बाजोली के जागीरदार थे ।  मीरा का लालन-पालन अपने दादाजी के यहाँ मेड़ता में हुआ ।  इनका विवाह 1516 ईसवी में राणा सांगा के जेष्ठ पुत्र युवराज भोजराज के साथ हुआ था, पर विवाह के कुछ समय पश्चात ही पति की मृत्यु हो जाने से यह तरुण अवस्था में ही विधवा हो गई ।  मीरा का साधु संतों में उठना बैठना और उनके साथ भजन कीर्तन करना इनके देवर राणा विक्रमादित्य को पसंद नहीं आया विक्रमादित्य ने मीरा को जहर देने तथा सांप से कटवाने का प्रयत्न किया किंतु मीरा की कृष्ण भक्ति कम नहीं हुई ।
     कृष्ण भक्ति का विचार मीरा को अपनी दादी से प्राप्त हुआ था ।  एक बार एक बारात को दुल्हे सहित जाते देखकर बालिका मीरा अत्यधिक प्रभावित हुई और अपनी दादी के पास जाकर उत्सुकता से अपने दूल्हे के बारे में पूछने लगी। दादी ने तुरंत ही गिरधर गोपाल का नाम बता दिया । मीरा तो तभी से ही गिरधर गोपाल की लगन में लग गई । उन्होंने अपना पति श्री कृष्ण भगवान को ही माना ।
     मीरा अपने अंतिम समय में गुजरात मैं द्वारिका के डाकोर स्थित रणछोड़ मंदिर में चली गई और वही 1547 ईस्वी में अपने गिरधर गोपाल में विलीन हो गई मीरा जी की पदावलीयां प्रसिद्ध है ।
       इनकी भक्ति की मुख्य विशेषता यह थी कि उन्होंने ज्ञान से अधिक , भावना व श्रद्धा को महत्व दिया मीरा की भक्ति कांता भाव की भक्ति रही है।

राना बाई :

उपनाम - नागौर की राधा, राजस्थान की दूसरी मीरां ।

जन्म - सन 1504 ईस्वी में हरना गांव परबतसर नागौर ।

पिता - रामगोपाल ।
माता - गंगाबाई ।
दादा - जालम जी जाट ।
भाई - भुवन जी ।
गुरु - संत चतुरदास ।

समाधी - फागुन शुक्ला त्रयोदशी सन 1570 ई. में ।

राजस्थान की दूसरी मीरा संत राना बाई का जन्म मारवाड़ के मकराना के पास हरनावा गांव में वैशाख शुक्ल तृतीया को 1504 ईसवी में एक जाट परिवार में हुआ । इनके पिता का नाम राम गोपाल था तथा माता का नाम गंगाबाई था । पालड़ी के संत चतुरदास की शिष्य रानाबाई कृष्ण भक्त थी । 66 वर्ष की उम्र में हरनावा गांव में फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी को 1570 ईसवी में रानाबाई ने जीवित समाधि ली । यहां प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी को एक विशाल मेला आयोजित किया जाता है।

करमा बाई : -

उपनाम - शेखावटी की राधा ।

जन्म - खंडेला गांव सीकर ।

पिता - परशुराम कांधरिया (पुरोहित) ।

गवरी बाई :-

उपनाम - वागड़ की मीरां ।

डूंगरपुर के नागर ब्राह्मण कुल में जन्म ।

प्रसिद्ध कृष्ण उपासिका थी ।

महारावल शिव सिंह द्वारा बालमुकुंद मंदिर का निर्माण करवाया गया ।

ताजबेगम :-

फतेहपुर (सीकर) के नवाब फतन खां कायमखानी की बेगम ।

प्रसिद्ध कृष्ण उपासिका ।

डांग की राधा - मोली गुजरी । 

राजस्थान की गांधारी - समाना बाई ।

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