राजस्थान के त्योहार
हिंदुओं के प्रमुख त्यौहार
त्यौहार :-
राजस्थान में एक कहावत प्रचलित है - 7 वार 9 त्यौहार अर्थात सप्ताह के 7 दिनों में यहां 9 त्योहार आते हैं ।
यह त्यौहार उत्सव वह मिले इस प्रकार दिखाई देते है कि मौसम समय तथा लोक भावना सब का संतुलन इनमें दिखाई देता है ।
अक्सर फसलों की कटाई व बदलते मौसम के साथ आमजन को एक नवीन ऊर्जा प्रदान करते हैं। यूथ सो त्यौहार और मेले शारीरिक उन दिनों में फंसे लोगों को कुछ समय के लिए शारीरिक व मानसिक शांति तथा आनंद प्रदान करते हैं ।
राजस्थान में एक कहावत प्रचलित है -
तीज त्योहार बावरी, ले डूबी गणगौर ।अर्थात त्यौहारो के चक्र की शुरुआत श्रावण माह में तीज से होती है तथा इसका अंत गणगौर से होता है ।
त्यौहार तिथि
श्रावणी तीज (छोटी तीज) श्रावण शुक्ला तीज
रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा
बड़ी तीज/सातुड़ी तीज/ भाद्रपद कृष्णा तीज
कजली तीज (स्त्रियों द्वारा नीम की पूजा)
बूढ़ी तीज भाद्रपद कृष्णा तीज
ऊब छठ भाद्रपद कृष्णा 6
हल पष्ठी (बलराम का भाद्रपद कृष्णा 6
जन्मोत्सव) हल की पूजा
कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद कृष्णा 8
गोगा नवमी भाद्रपद कृष्णा नवमी
गवरी उत्सव भाद्रपद कृष्णा दशमी
बछबारस (पुत्र के लिए व्रत) भाद्रपद कृष्ण 12
सतियाँ अमावस भाद्रपद अमावस्या
गणेश चतुर्थी भाद्रपद शुक्ला 4
ऋषि पंचमी (सप्त ऋषि व
अरुंधति की पूजा, संवत्सरी भाद्रपद शुक्ला 5
माहेश्वरी समाज की राखी)
हरतालिका तीज भाद्रपद शुक्ला 3
राधाष्टमी भाद्रपद शुक्ला 8
जलझूलनी एकादशी भाद्रपद शुक्ला 11
श्राद्ध पक्ष (मृत बुजुर्गों को भाद्रपद पूर्णिमा से
श्रद्धापूर्वक तर्पण) अश्विन अमावस्या तक
साँझी (कुँवारी कन्याओं का भाद्रपद पूर्णिमा से
त्योहार) अश्विन अमावस्या तक
नवरात्रा ( नौ दिन तक चैत्र शुक्ल एकम से नवमी पुजा ) तक तथा अश्विनी शुक्ला एकम से नवमी तक
दुर्गाष्टमी आश्विन शुक्ला 8
दशहरा आश्विन शुक्ला 10
शरद पूर्णिमा (रास पूर्णिमा) आश्विन पूर्णिमा
करवाचौथ कार्तिक कृष्णा 4
अहोई अष्टमी (पुत्र के कार्तिक कृष्णा 8
लिए व्रत)
तुलसी एकादशी कार्तिक कृष्णा 11
(तुलसी की पूजा)
धनतेरस कार्तिक कृष्णा 13
रूप चतुर्दशी (स्वच्छता व कार्तिक कृष्णा 14 सौंदर्य से संबंधित) (छोटी दीपावली)
दीपावली कार्तिक अमावस्या
गोवर्धन पूजाव अन्नकूट कार्तिक शुक्ला एकम
भैयादूज कार्तिक शुक्ला दूज
गोपाष्टमी कार्तिक शुक्ला 8
आँवला नवमी/अक्षय नवमी कार्तिक शुक्ला 9
(आंवले की पूजा)
देव उठनी ग्यारस कार्तिक शुक्ला 11
(प्रबोधिनी एकादशी) (मांगलिक कार्यों का प्रारम्भ)
कार्तिक स्नान (पुष्कर मेला) कार्तिक पूर्णिमा
मकर संक्रान्ति 14 जनवरी
तिल चौथ (सकट चौथ) माघ कृष्णा 4
षट्तिला एकादशी माघ कृष्णा 11
मौनी अमावस . माघ अमावस्या
बसंत पंचमी (वसंत काआगमन) माघ शुक्ला 5
शिवरात्रि (शिवजी का फाल्गुन कृष्णा 13
जन्मोत्सव)
ढूंढ फाल्गुन सुदी11
होली (होलिका दहन ) फाल्गुन पूर्णिमा
धुलंडी चैत्र कृष्णा प्रतिपदा
घुड़ला का त्योहार चैत्र कृष्णा 8 (मारवाड़ में)
शीतलाष्टमी (ठंडा भोजन, चैत्र कृष्णा अष्टमी
वास्योड़ा) (होली के 8वें दिन)
नव वर्ष चैत्र शुक्ला एकम
गुडी पड़वा चैत्र शुक्ला एकम
अरूधति व्रत चैत्र शुक्ला एकम से तृतीयातक
सिंजारा गणगौर व तीज से एक दिन पूर्व
गणगौर (जयपुर व चैत्र शुक्ला तीज
उदयपुर की गणगौर (चैत्र कृष्णा 1 से पूजन प्रारम्भ)
की सवारी प्रसिद्ध)
अशोकाष्टमी (अशोक चैत्र शुक्ला 8
वृक्ष का पूजन)
रामनवमी चैत्र शुक्ला 9
(भगवान राम का जन्मदिवस)
आखा तीज या अक्षय वैशाख शुक्ल तीज
तृतीया (विवाह का (कृषि पर्व)(हजारों एकमात्र अबूझ सावा) बाल विवाह )
बुद्ध पूर्णिमा / पीपल पूर्णिमा वैशाख पूर्णिमा
बड़ अमावस ज्येष्ठ अमावस्या
निर्जला एकादशी ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी
योगीनी एकादशी आषाढ कृष्णा एकादशी
रथ यात्रा आषाढ शुक्ला बीज
देवसयनी एकादशी आषाढ शुक्ला एकादशी (मांगलिक कार्य बंद )
गुरु पूर्णिमा आषाढ़ पूर्णिमा
( व्यास पूर्णिमा )
नाग पंचमी श्रावण कृष्णा पंचमी
( नांगों की पूजा )
निडरी नवमी श्रावण कृष्णा नवमी
(नेवलो की पूजा)
कामिका एकादशी श्रावण कृष्णा एकादशी
(विष्णु की पूजा)
हरियाली अमावस श्रावण अमावस्या
● श्रावणी तीज-त्योहारों का आगमन एवं गणगौर त्योहारों का समापन। इस संबंध में कहावत है- 'तीज त्योहाराँ बावड़ी, ले डूबी गणगौर ।'
● श्रावणी तीज के दिन जयपुर में तीज माता की सवारी निकलती है।
● गणगौर के दिन जयपुर व उदयपुर में गणगौर की सवारी निकलती है।
● सांगोद (कोटा) का न्हाण, ब्यावर का बादशाह मेला, महावीर जी की लट्ठ मार होली, भिनाय (अजमेर) की कोवड़ामार होली प्रसिद्ध हैं।
● मेवाड़ में होली के अवसर पर भीलों द्वारा गैर नृत्य किया के जाता है व आदिवासियों में भगोरिया खेला जाता है।
● मकर संक्रान्ति का त्योहार असम में भोगली बिहू के रूप में
तथा तमिलनाडु में पोंगल के रूप में मनाया जाता है। जयपुर व कोटा में यह दिन पतंगबाजी के लिए प्रसिद्ध है।
● जैसलमेर में गणगौर पर केवल गवर की पूजा की जाती है। ईसर की नहीं तथा यहाँ गणगौर की सवारी चैत्र शुक्ला तृतीया के स्थान पर चैत्र शुक्ला चतुर्थी को निकाली जाती है।
● महाकुंभ हर बारह वर्ष बाद आयोजित होता है। कुंभ मेले हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन व नासिक में आयोजित होते हैं। 21वीं सदी का प्रथम महाकुंभ नासिक (महाराष्ट्र) में आयोजित हुआ।
जैन समाज के त्योहार
ऋषभ जयन्ती - चैत्र कृष्णा नवमी। यह तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्मदिवस है।
महावीर जयन्ती - चैत्र शुक्ला त्रयोदशी
पर्युषण (श्वेताम्बर जैन ) - भाद्रपद कृष्णा बारस से भाद्रपद शुक्ला पंचमी तक ।
संवत्सरी (श्वेताम्बर जैन ) - भाद्रपद शुक्ला पंचमी (अगले दिन क्षमायाचना दिवस होता है।)
रोट तीज - भाद्रपद शुक्ला तृतीया ।
दशलक्षण पर्व (दिगम्बर जैन ) - भाद्रपद शुक्ला पंचमी से चतुर्दशी (अनन्त चतुर्दशी) तक ।
सुगन्ध दशमी - भाद्रपद शुक्ला दशमी ।
पड़वा ढोक - आश्विन कृष्णा एकम् (दिगम्बर जैन समाज का क्षमायाचना दिवस ।
सिंधी समाज के पर्व
थदड़ी या बड़ी सातम - भाद्रपद कृष्णा 7 - सिंधी समाज का बासोड़ा।
चालीहा महोत्सव - 16 जुलाई से 24 अगस्त तक प्रतिवर्ष चालीसवाँ दिन झुलेलाल के अवतार का दिन होता है।
चेटीचण्ड या झूलेलाल जयंती - चैत्र शुक्ला द्वितीया। झूलेलाल वरुण देवता के अवतार।
असूचंड पर्व - शुक्ल पक्ष चौदस के दिन भगवान झूलेलाल के अन्तर्धान होने के उपलक्ष्य में यह पर्व मनाया जाता हैं ।
सिक्ख समाज के पर्व
लोहड़ी - मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या (13 जनवरी) को यह त्योहार मनाया जाता है।
वैशाखी - 13 अप्रैल 1699 ई. को 10वें गुरु गोविन्द सिंह ने आनन्दपुर साहिब, रोपड़ (पंजाब) में खल पंथ की स्थापना की थी। तभी से 13 अप्रैल को यह त्योहार मनाया जाता है।
गुरुनानक जयन्ती - गुरुनानक सिक्ख धर्म के प्रवतक थे। इनकी जयन्ती कार्तिक पूर्णिमा को (गुरु पर्व के रूप में) मनाई जाती है।
गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती - गुरु गोविन्द सिंह सिक्खों के 10वें व अंतिम गुरु थे। इन्होंने उत्तराधिकारी गुरु परम्परा समाप्त कर 'गुरु ग्रंथ साहिब' को गुरु घोषित किया। पौष शुक्ला सप्तमी को इनका जन्म दिवस मनाया जाता है।
महत्त्वपूर्ण तथ्य : -
● गुरु गोविन्द सिंह के पिता गुरु तेगबहादुर ने औरंगजेब की नीतियों का कठोरता से विरोध किया था परिणामस्वरूप उन्हें शहीद होनापड़ा। गुरु गोविन्द सिंह का जन्म पटना में 1666 ई. में हुआ।
● खालसा पंथ : 'गुरु गोविन्द सिंह ने 13 अप्रैल, 1699 को सिख समुदाय के 'खालसा पंथ' की स्थापना की।
● लंगर : सिक्ख धर्मगुरुओं द्वारा प्रारम्भ किसी जाति-पाँति के भेदभाव रहित निःशुल्क सामूहिक भोज प्रथा
●अमृतसर : सिक्खों के चौथे धर्मगुरु श्री रामदासजी द्वारा खुदवाया गया सरोवर जिसमें अमृतसर का स्वर्ण मंदिर स्थित है।
मुस्लिम समाज के त्योहार
इस्लाम धर्म के प्रवर्तक पैगम्बर हजरत मोहम्मद थे। मुस्लिम सम्प्रदाय प्रमुख रूप से निम्न त्योहार उल्लासपूर्वक मनाता है।
मोहर्रम - हिजरी सन् का पहला महीना जिसमें हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान में शहादत पाई थी। उसी की याद में मोहर्रम मनाया जाता है। इस दिन ताजिए निकाले जाते हैं।
इद-उल-मिलान-दुलनबी (बारावफात) - रबी उल अव्वल को यह त्योहार पैगम्बर हजरत मोहम्मद के जन्म दिन की याद में मनाया जाता है। मोहम्मद साहब का जन्म 570 ई. में मक्का (सऊदी अरब) में हुआ था।
ईद-उल-फितर - इसे 'सिवैयों की ईद' (मीठी ईद) भी कहा जाता है। मुस्लिम बन्धु रमजान के पवित्र माह में 30 रोज तक रोजे करने के बाद शव्वाल माह की पहली तारीख को शुक्रिया के तौर पर इस त्योहार को मनाते हैं।
इदुलजुहा (बकरा ईद) - यह कुर्बानी का त्योहार है जो 'जिलहिज' माह की दसवीं तारीख को पैगम्बर हजरत इब्राहीम द्वारा अपने लड़के हजरत इस्माइल की अल्लाह को कुर्बानी देने की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन मुसलमान प्रतीक के रूप में बकरे की कुर्बानी देते हैं। इदुलजुहा के माह में ही मुसलमान हज करते हैं।
शबे बारात - माना जाता है कि इस दिन हजरत मुहम्मद साहब की आकाश में ईश्वर से मुलाकात हई थी। इस दिन मुसलमान भाई अपनी भूलों व पापों की माफी के लिए खुदा से प्रार्थना करते हैं।
शबे कद्र - यह रमजान की 27वीं तारीख को मनाया जाता है। इस दिन कुरान उतारा गया था।
अन्य उर्स :-
उर्स गरीब नवाज,अजमेर - ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की मृत्यु की बरसी के रूप में रज्जब माह की 1 से 6 तारीख तक उर्स मनाया जाता है। उर्स में साम्प्रदायिक सद्भाव व राष्ट्रीय एकता का अनूठा संगम दिखाई देता है।
गलियाकोट काउर्स, डूंगरपुर - माही नदी के निकट स्थित गलियाकोट दाऊदी बोहरों का प्रमुख तीर्थ स्थान है। यहाँ फखरुद्दीन पीर की मजार है। यहाँ प्रतिवर्ष उर्स आयोजित किया जाता है।
तारकीन का उर्स - यह नागौर में सूफियों की कादरिया शाखा के संत काजी हमीदुद्दीन नागौरी की दरगाह में भरता है।
नरहड़ की दरगाह का मेला, झुंझुनूँ - झुंझुनूं जिले के नरहड़ गाँव में 'हजरत हाजिब शक्कर बार पीर बादशाह' की दरगाह है जो शक्कर पीर (इन्हें बांगड़ का धणी कहते हैं।) यहाँ कृष्ण जन्माष्टमी के दिन विशाल मेला लगता है।
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