राजस्थान में मुस्लिम संत संप्रदाय
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती :-
जन्म - सनी 1135 ईस्वी में संजरी गांव फारस में ।
गुरु - शेख उस्मान हारुनी ।
संप्रदाय - चिश्ती संप्रदाय ।
तराइन के प्रथम युद्ध 1191 के बाद सम्राट पृथ्वीराज चौहान के समय भारत आए थे ।
चिश्ती सिलसिला का प्रमुख संत ।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का कर्म स्थली अजमेर जिला था।
अजमेर में इनकी प्रसिद्ध दरगाह है, जहाँ उर्स का विशाल मेला लगता है ।
सांप्रदायिक सद्भाव का सर्वोत्तम स्थल है ।
मृत्यु - ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मृत्यु 1233 ईस्वी में अजमेर जिले में हुई ।
नरहड़ के पीर :-
हजरत शक्करबार पीर की दरगाह नरहड़ ग्राम चिड़ावा झुंझुनू में बनी हुई ।
उपनाम - वागड़ का धनी के रूप में प्रसिद्ध ।
विशेषता :-
यहां सभी धर्मों के लोगों को अपनी अपनी धार्मिक पद्धति से पूजा-अर्चना करने का अधिकार है ।
कौमी एकता के प्रतीक के रूप में ही यहां प्राचीन काल से श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशाल मेला लगता है ।
पीर फखरुद्दीन :-
दरगाह - गलियाकोट डूंगरपुर में इनकी दरगाह बनी हुई है ।
सम्प्रदाय - दाउदी बोहरा सम्प्रदाय ।
गलियाकोट में दाऊदी बोहरा संप्रदाय का प्रमुख धार्मिक स्थल है।
गलियाकोट राजस्थान के डूंगरपुर जिले में भारत का एक जनगणना शहर है । यह राजस्थान शहर उदयपुर से लगभग 168 कि॰मी॰ दक्षिण-पूर्व स्थित है। इस शहर का नामकरण स्थानीय भील राजा गलियाकोट के नाम के आधार पर हुआ है। यहाँ दाऊदी बोहरा तीर्थ स्थल है। यह शहर बाबाजी मुल्ला सय्यदी फखरुद्दीन की कब्र के लिए प्रसिद्ध है जो 10 वीं शताब्दी में वहाँ रहता था। कई दाऊदी बोहरा मुस्लिम श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल कब्र पर जाते हैं। गलियाकोट का नामकरण यहाँ के स्थानीय भील राजा के नाम पर किया गया है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें