राजस्थान की प्रमुख रस्में

 विवाह की रस्में :-

सोटा-सोटी खेलना: -

एक वैवाहिक रस्म जिसमें दूल्हा-दुल्हन गीत गाती स्त्रियों के झुण्ड के बीच गोलाकार घुमते हरे नीम की टहनी से एक-दूसरे को मारते हैं। दूल्हे के बाद दुल्हन अपने देवर के साथ साटकी खेलती है।

बरी :-

राजपूतों में बारात के साथ वधु के लिए कपड़े आदि ले जाए जाते हैं जिसे बरी कहते हैं।

भात :-

वर/वधू के ननिहाल वालों की तरफ से दिए जाने वाले वस्त्राभूषण।।

जात देना :-

विवाह के दूसरे दिन वर व वधु गाँव में माताजी व क्षेत्रपाल,अपने लोक देवताओं के थान पर नारियल चढ़ाते हैं इसे जात देना कहते हैं।

मुकलावा (गौना): -

 बाल विवाह होने पर जब वधु वयस्क होने पर पीहर से दुबारा ससुराल जाती है तब वर व उसके भाई बंधुओं को गहने, कपड़े, मिठाई आदि भेजे जाते हैं इसे मुकलावा या गौना कहते हैं।

कंवर कलेवा :-

1. दूल्हे को तोरण द्वारा पर कराया जाने वाला स्वल्पाहार । 
2. दूल्हे का नास्ता ।    

कांकण-डोर :-
विवाह के समय वर-वधु के बाँधे जाने वाले मांगलिक सूत्र।

चाक पूजन :-

इस प्रथा में विवाह से पूर्व घर की महिलाएँ गाजे-बाजे के साथ कुम्हार के घर जाती हैं। उसके 'चाक' का पूजन करती हैं और लौटते समय सुहागिनें अपने सिर पर 'जेगड़' रखकर लाती हैं। घर पहुँचने पर 'जंवाई' इन जेगड़ों को उतारता है।

छोळ :-

दुल्हन की झोली भरने की रस्म ।

जूवाछवी :-

परात में छाछ भरकर उसमें चाँदी का छल्ला डालकर वर-वधू को खेलाया जाने वाला एक खेल।

पगधोई :-

शादी के अवसर पर वर-वधु के पिता के पांव धोने की एक प्रथा।

पहरावणी / रंगवरी: -

विवाह कर, विदाई के समय कन्या के पिता की ओर से दिए जाने वाले वस्त्रादि ।

टीको :-

मंगनी के समय कन्या पक्ष की ओर से दूल्हे को दी जाने वाली भेंट ।

बांदरवाल :-

मांगलिक शुभ अवसरों पर घर के प्रवेश द्वार एवं मंडप आदि पर पत्तों से बनी बांदरवाल लटकाई जाती है।

पीठी :-

'वर' व 'वधु' का सौंदर्य निखारने हेतु स्त्रियों द्वारा उनके शरीर पर लगाया जाने वाला हल्दी व आटे का उबटन। 

फेरा :-

वर वधू परिणय सूत्र में अग्नि के समक्ष सात फेरे (चक्कर) लगाकर एक-दूसरे को सात वचन देते हैं।

सीख : -

विवाह बाद वर-वधू एवं बारातियों को सीख (भेंट) देकर विदा किया जाता है। 

बिंदोली :-

विवाह के एक दिन पूर्व वर या वधू को मांगलिक गीत गाते हुए गाँव या मोहल्ले में घुमाना।

बढ़ार :-

विवाह के अवसर पर दिया जाने वाला सामूहिक प्रीतिभोज ।

कांकनडोर बाँधनाः -

विवाह के पूर्व वर व वधू के हाथ में बाँधा गया मोली का धागा कांकन डोर बाँधना।

तोरण मारना : -

विवाह के अवसर पर दूल्हे द्वारा दुल्हन के घर के मुख्य द्वार पर लटके तोरण पर छड़ी लगाना।

बंदोळी :-

विवाह के पहले दिन की संध्या को होने वाला उत्सव या कार्यक्रम ।

बागपकड़ाई :-

दूल्हे की घोड़ी की लगाम पकड़ने का नेग।

सप्तपदी :-

विवाह में चतुर्थ फेरे के बाद वर द्वारा वधू के दाहिने कंधे पर हाथ रख कर वेदी के उत्तर की तरफ ईशान कोण में एक-एक पद आगे बढ़ाने की क्रिया।

सामेळा :-

कन्या पक्ष की ओर से, नगर या गाँव के प्रांगण में दूल्हे व बारातियों का, तोरण पर आने से पूर्व किया जाने वाल स्वागत।

सावौ :-

विवाह का शुभ मुहूर्त। 

सुहागथाळ :-

भोजन का थाल जिसमें कुछ सुहागिनी स्त्रियाँ नवागंतुक वधू के साथ भोजन करती है।

हथलेवौ :-

विवाह में वधू का हाथ वर के हाथ में पकड़ाने की रस्म। पाणिग्रहण संस्कार ।

हल्दहात :-

विवाह के समय वर-वधू के हल्दी लगाने की प्रथा ।

हीरावणी :-

ससुराल में नव वधू को दिया जाने वाला कलेवा ।

सांकड़ी की रात': - 

बारात विदा होने से एक दिन पहले रात को 'मेल की गोठ' होती थी जिसे सांकड़ी की रात' कहते थे।

विवाह की अन्य रस्में: - 

बान बैठाना या पाट बैठाना, रातीजगा, रोड़ी पूजन, मुट्ठी भराई, बरात चढ़ना, निकासी या दुकाव, पाणिग्रह संस्कार, मिलणी, वारणा (दरवाजा) रोकना आदि।

मृत्यु की रस्में :-

मौसर/औसर :-

मृत्यु भोज को मौसर कहते हैं। इसे औसर या नुक्ता भी कहते हैं। 

उठावणा :-

मृतक के पीछे रखी जाने वाली तीन या बारह दिवसीय बैठक की समाप्ति ।

बिखेर : -

शव पर पैसे उछालने की क्रिया।

मूकांण :-

मृतक के पीछे उसके संबंधियों के पास संवेदना प्रकट करने की क्रिया ।

बरसी :-

मृतक का वार्षिक दिन।

सगातेड़ौ :-

मृतक के पीछे किया जाने वाला भोज/नौसर ।

साथरवाड़ौ :-

किसी की मृत्यु के उपरांत परिवार वालों के पास संवेदना प्रगट करने का स्थान व उस पर बिछाने का वस्त्र। ऐसे स्थान पर बैठने की क्रिया।

बैकुंठी :-

यह लकड़ी की होती है जिसमें मृतक को बैठाकर जलाया जाता है ।

लांपा :- 

मृतक को आग बेटा या निकट का भाई या भतीजा देता है जिसको लांपा कहते हैं।

• हुक्का भरने जाना : - 

मृत्यु के बाद सातरवाड़ा में बैठने के लिए जाने को 'हुक्का भरने जाना' कहते है

फूल चुगना :-

मृत्यु के तीसरे दिन श्मशान में जाकर मृतक की कुछ हड्डियां चुनकर लाई जाती है जिसको फूल चुगना है। ये हड्डियाँ बाद में हरिद्वार गंगा में प्रवाहित करने हेतु भेजी जाती है।

पगड़ी बाँधना :-

मृत्यु के बारहवें दिन मौसर के बाद बड़े बेटे के पगड़ी बाँधी (परिवार का उत्तरदायित्व सौंपना) जाती है।

गंगाजळी ( गंगथाळी ) :-  

मृतक की अस्थियाँ गंगा प्रवेश के उपरांत निश्चित समय पर दिया जाने वाला भोज ।

तीयौ :-

मृतक का तीसरा दिन व इस दिन किया जाने वाला संस्कार ।

धोवण : -

मृतक की भस्मी नदी या तीर्थस्थान में डालकर संबंधियों को दिया जाने वाला भोज ।

पिंडदान :-

मृतक के पीछे किए जाने वाले पुण्यदान, तर्पण आदि के संस्कार ।

अन्य रस्में :-

ओडावणी -

विशेष अवसरों पर कन्या के पिता द्वारा कन्या व उसके पति के परिवार को दिया जाने वाला वस्त्राभूषण।

जलवा या कुआँपूजन :-

एक सांस्कृतिक धार्मिक अनुष्ठान जिसमें पुत्र जन्म के दस दिन बाद शुभ मूहूर्त में निर्धारित तिथि को महिलाएं बच्चे को पारम्परिक वेशभूषा में गाजे-बाजे के साथ कुएँ पर ले जाती हैं और कुएँ की तरह परिवार भी भरा-पूरा रहने की कामना के साथ विधिवत रूप से कुएँ का पूजन करती हैं।

ढूंढ :-

बच्चे के जन्म की प्रथम होली पर किया जाने वाला संस्कार ।

न्हावण :-

प्रसूता का प्रथम स्नान व उस दिन का संस्कार ।

रियाण :-

यह पश्चिमी राजस्थान में खुशी अथवा गम के अवसरों पर निकटस्थ सम्बन्धियों एवं मित्रों के मेल मिलाप हेतु किया जाने वाला आयोजन है।

 पंथारौ :-

जैन मत में शरीर त्याग हेतु किया जाने वाला अन्न-जल आदि का त्याग।

सवामणी :-

इसमें सवामण यानी कुल 51 किलो सामग्री (आटा, शक्कर, घी, दाल) आदि लेकर दाल-बाटी-चूरमा या अन्य सामग्री तैयार करके देवताओं को चढ़ाई जाती है जिसे श्रद्धालु प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं।

सिंझारी : -

श्रावण कृष्णा तृतीया पर्व तथा इस दिन कन्या या वधू के लिए भेजा जाने वाला सामान।

सूतक :-

संतान के जन्म पर गृह परिवार में होने वाला अशौच ।

सोने की निसरनी चढाना :- 

इस रिवाज में अपने वंश की चौथी पीढ़ी के पुत्र प्राप्ति के पश्चात् प्रपितामह अपने प्रपौत्र को गोदी में बिठाकर अपने पैर का अगूंठा सोने की निसरनी से छुआता है। रस्म के पूर्ण होने पर स्वर्ण सीढ़ी का सोना बहन-बेटियों में बतौर नेग के बराबर बाँट दिया जाता है

हरवण गायन : - 

बागड़ क्षेत्र (डूगरपुर-बाँसवाड़ा) में मकर संक्रांति पर गायी जाने वाली श्रवण कुमार की गाथा।

जातकर्म संस्कार :-

यह बच्चे के जन्म पर होने वाले इस संस्कार में नवजात शिशु को विमलीकृत मक्खन चटाना, उसके दाहिने कान में तीन बार 'वाक्' शब्द कहना, सुनहली चम्मच से उसे दही, मधु व घृत चटाना आदि क्रियाएँ शामिल हैं।

छठी जगाना : -

बालक के जन्म के छठे दिन यष्ठी देवी की पूजा करना तथा गीत गान करते हुए सारी रात जागरण करना। 

जामणा :-

पुत्र जन्म पर नाई बालक के पगल्ये लेकर उसके ननिहाल जाता है। तब उसके नाना या मामा उपहार स्वरूप वस्त्राभूषण, मिठाई आदि लाते हैं, जिसे 'जामणा' कहा जाता है।

नांगल :- 

नवनिर्मित गृह के उद्घाटन की रस्म नांगल कहलाती है।


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