राजस्थान में संस्कार
सोलह संस्कार
यह हिन्दू धर्म की सनातन और हिन्दू संस्कृति पर आधारित है।हमारे ऋषियों ने मानवीय जीवन को शुद्ध करने और सीमित करने के लिए संस्कारों का आविष्कार किया।इन कर्मकांडों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है, न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी।इन धार्मिक अनुष्ठानों ने भारतीय संस्कृति की महत्ता में महत्वपूर्ण योगदान किया है।
हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों (षोडश संस्कार) का उल्लेख किया जाता है जो मानव को उसके गर्भाधान संस्कार से लेकर अन्त्येष्टि क्रिया तक किए जाते हैं। इनमें से विवाह, यज्ञोपवीत इत्यादि संस्कार बड़े धूमधाम से मनाये जाते हैं। वर्तमान समय में सनातन धर्म या हिन्दू धर्म के अनुयायी में गर्भाधन से मृत्यु तक १६ संस्कारों होते है।
1.गर्भधान संस्कार
2. पुंसवन संस्कार
3. सीमंतोन्नयन संस्कार
4. जातकर्म संस्कार
5. नामकरण संस्कार
6. निष्क्रमण संस्कार
7. अन्नप्राशन संस्कार
8.चूड़ाकर्म संस्कार
9. कर्णवेध संस्कार
10. विद्यारंभ संस्कार
11. उपनयन संस्कार
12. वेदारम्भ संस्कार
13. केशान्त या गोदान संस्कार
14. समावर्तन या दीक्षांत संस्कार
15. विवाह संस्कार
16. अंतिम संस्कार
• गर्भाधान
गर्भाधान के पूर्व उचित काल और आवश्यक धार्मिक क्रियाएँ।
• पुंसवन
गर्भ में स्थित शिशु को पुत्र का रूप देने के लिए देवताओं की स्तुति कर पुत्र प्राप्ति की याचना करना। यह गर्भाधान के तीसरे मास में किया जाने वाला संस्कार है।
• सीमन्तोन्नयन
गर्भवती स्त्री को अमंगलकारी शक्तियों से बचाने के लिए किया गया संस्कार। यह गर्भाधान के चौथे, छठे व आठवें मास में होता है।
• जातकर्म
बालक के जन्म पर किया जाने वाला संस्कार।
• नामकरण
शिशु का नाम रखने के लिए जन्म के दसवें अथवा 12वें दिन किया जाने वाला संस्कार । कराना।
• निष्क्रमण
जन्म के चौथे मास में बालक को पहली बार घर से निकालकर सूर्य और चन्द्र दर्शन
• अन्नप्राशन
जन्म के छठे मास में बालक को पहली बार अन्न का आहार देने की क्रिया।
• चूडाकर्म
शिशु के पहले या तीसरे वर्ष में सिर के बाल पहली बार मुण्डवाने (जडूला) पर किया जाने वाला संस्कार।
• कर्णवेध
शिशु के तीसरे एवं पाँचवे वर्ष में किया जाने वाला संस्कार, जिसमें शिशु के कान बींधे जाते हैं।
• विद्यारम्भ
देवताओं की स्तुति कर गुरु के समक्ष बैठकर अक्षर ज्ञान कराने हेतु किया जाने वाला संस्कार ।
•उपनयन
बालक को शिक्षा के लिए गुरु के पास ले जाना एवं ब्रह्मचर्याश्रम प्रारम्भ। इसे 'यज्ञोपवीत संस्कार' भी कहते थे। ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों को ही उपनयन का अधिकार था।
• वेदारम्भ
वेदों के पठन-पाठन का अधिकार लेने हेतु किया गया संस्कार।
• केशान्त या गोदान
सामान्यत: 16 वर्ष की आयु में ब्रह्मचारी के बाल कटवाने का संस्कार।
• समावर्तन या दीक्षान्त
शिक्षा समाप्ति पर किया जाने वाला संस्कार, जिसमें विद्यार्थी अपने आचार्य को गुरुदक्षिणा देकर उसका आशीर्वाद ग्रहण करता था तथा स्नान करके घर लौटता था।
● विवाह संस्कार
गृहस्थाश्रम में प्रवेश के अवसर पर किया जाने वाला संस्कार।
●अंत्येष्टि
यह मृत्यु पर किया जाने वाला दाह संस्कार है।
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